रेवाड़ी में एसडीएम रेवाड़ी के ड्राइवर ने की खुदकुशी

इन हादसों को रोकने के लिए वजहों को पकड़ना होगा


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी

एक के बाद एक जिम्मेदार- सुलझे एवं पारिवारिक- सामाजिक तौर पर मजबूत परिवारों में हो रही सुसाइड की घटनाए ना केवल झकझोर रही है साथ ही इन घटनाओं के पीछे की वजहों को समझने ओर पकड़ने के लिए सभी को आगाह कर रही है।

रेवाड़ी शहर स्थित एम्पलाइज कॉलोनी में रहने वाले एसडीएम के ड्राइवर 27 साल के सूरतानंद उर्फ सूरज  ने फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली। शुक्रवार दोपहर वह अपने घर पर लौटा था। घटना के वक्त घर में कोई नहीं था। इसी दिन ही सूरज की शादी की सालगिरह थी।सूरज के पिता अशोक कुमार डीसी की गाड़ी चलाते हैं। सूरज द्वारा आत्महत्या करने के कारणों का पता नहीं चल पाया है। बेटे द्वारा आत्महत्या कर लेने से परिजन भी सदमे में है।

 तेजी से बढ़ रहे आत्महत्या के मामले, अलर्ट होना पड़ेगा

बीते दस साल में खासतौर से  युवाओं में आत्महत्या के मामले 200 प्रतिशत तक बढ़े हैं। इसके तेजी से बढ़ने के पीछे अब तक केवल आर्थिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन कई रिसर्च में खुलासा हुआ कि युवाओं में इसकी बड़ी वजह स्कूल के साथ साथ परिवारिक विवाद की कई वजह है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि हर आत्महत्या दुखद होती है लेकिन हर मामले में कुछ न कुछ रहस्य छिपा होता है। पर इसके पीछे एक सामान्य वजह होती है और वह है मन में निराशा। लोगों को लगता है कि वे हालात की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे। अलग-अलग उम्र वर्ग के लोगों द्वारा उठाया जाने वाला यह कदम दुनियाभर में होने वाली मौत की टॉप 20 वजहों में से एक है। आत्महत्या रोकना अक्सर संभव है और एक व्यक्ति खुद इसकी रोकथाम में सबसे अहम कड़ी होता है, क्योंकि वह समाज के एक सदस्य के रूप में, एक बच्चे के रूप में, एक माता-पिता के रूप में, एक मित्र के रूप में, एक सहयोगी के रूप में या एक पड़ोसी के रूप में अपनी सजगता से खुद के साथ अन्य लोगों को भी बचा सकता है। डॉ. देवाशीष बताते हैं, “अगर कोई इन्सान अपनी परेशानी के बारे में किसी अपने रिश्तेदार या दोस्त को बताता है और उसकी बातों से यह पता चलता है कि वह आत्महत्या करना चाहता है, तो यह उस इन्सान की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह उस परिस्थिति को समझे और समय रहते अपने मित्र और रिश्तेदार को किसी मनोचिकित्सक की सलाह लेने को कहे।” अगर बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों का किसी और बच्चें के साथ तुलना करते हैं, और बार-बार उन्हे दूसरों से बेहतर करने के लिए दबाव डालते हैं, तो ऐसी बातें बच्चों के बाल-मन पर गहरा प्रभाव डालती है। इसलिए बच्चों के साथ प्यार सें पेश आना चाहिए और उनके साथ तुलनात्मक व्यवहार नही करना चाहिए।”

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