रेवाड़ी शहर के 22 पार्षदों के आरोप पर रणघोष की सीधी सपाट बात

फाइलों को लटकाना अगर भ्रष्टाचार है तो पूरे सिस्टम में बचा कौन..


-यहां समझ में नहीं आ रहा कि फाइलों में लगे कागजात भ्रष्टाचार की स्याही से भरे हुए हैं या फिर उन हस्ताक्षरों के होने या नहीं होने की वजह से जिसकी वजह से यह शोर मचा हुआ है।


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


बुधवार को रेवाड़ी शहर के करीब 22 नगर पार्षदों ने महानिदेशक भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को पत्र भेजकर डीएमसी सुभिता ढाका पर जानबूझकर फाइलों को रोकने का आरोप लगाते हुए इसे भ्रष्टाचार बता जांच कराने की मांग की है। पत्र में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिसके आधार पर यह साबित हो सके कि डीएमसी फाइल को आगे पीछे करने के अपने निजी इरादों को पूरा कर रही है। इस पत्र पर डीएमसी ने हैरानी जताई कि ऐसा करने वाले पार्षद एक फाइल ऐसी बताए जिसे जानबूझकर रोका गया है। उनके गलत इरादों व मंसूबों को वह किसी सूरत में पूरा नहीं होने देगी। नप में कार्य नहीं हो पाने की वजह लगातार तीन ईओ का भ्रष्टाचार में सस्पेंड हो जाना, एक्सईएन समेत अनेक पदों का खाली होना है जिसकी कमी से फाइलें गति नहीं पकड़ पा रही है। उन्होंने कहा कि उनके पास फाइलें या तो डीसी की तरफ से आती है या बनाए गए नप चैनल के माध्यम से। उन्होंने कहा कि उनकी टेबल पर एक भी फाइल ऐसी नहीं है जो सभी नियमों को पूरा करती हुई जानबूझकर रूकी हुई है।

ऐसे में सवाल उठता है कि पार्षदों का डीएमसी पर भ्रष्टाचार का आरोप सही है तो वे सबूतों के साथ उसे सार्वजनिक करें। अगर फाइलों का लटकाना ही भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है तो कोर्ट से लेकर सभी जांच एजेंसी, तमाम विभागों में कई सालों से धूल फांकती फाइलें, मंत्री विधायकों के विकास को लेकर किए जाने वाले वायदे व दावें समय पर नहीं होने की स्थिति में  भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते माने जाएंगे। नगर पार्षद प्रवीण चौधरी, दिलीप माटा, चंदन यादव, सुरेश शर्मा, बबीता यादव, रमेश कुमार, सुचित्रा चांदना, निहाल सिंह, पूनम सतीजा, रंजना भारद्वाज, रेखा, राधा सैनी, सुमन खरेरा, कुसुमलता, मोनिका यादव, राजबाला राव, भूपेंद्र गुप्ता, सरिता सैनी, सुरेश कुमार, नीलम समेत 22 से ज्यादा पार्षदों का कहना है कि 17 सितंबर 2022 को डीएमसी पद पर सुभिता ढाका ने कार्यभार संभाला है। उसके बाद से आज तक सभी कार्य एक के बाद एक ठप होते चले गए। उनके पास जितनी भी फाइलें जाती हैं उसे वहीं टेबल पर रोक दिया जाता है। फाइलों को जानबूझकर रोकना सीधे तौर पर भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। हालांकि पार्षदों के पत्र में किसी भी कार्य की फाइलों के बारे में कुछ नहीं बताया गया। ऐसे में पार्षदों का आरोप हकीकत में कम आवेश में ज्यादा नजर आ रहा है। इस पत्र पर डीएमसी सुभिका ढाका ने रणघोष को बताया कि एक भी पार्षद यह बताए कि उनकी कौनसी फाइल को रोका हुआ है। उनके इरादों से नप चलेगी यह हरगिज नहीं होगा। वे शिकायत की परवाह नहीं करती। फाइलें नीचे से चलकर नियमों को पूरा करती हुईं चेयरपर्सन के माध्यम से उनके पास आती है। बकायदा टेंडर प्रक्रिया होती है। ऐसे में फाइलें बिना वजह से  कैसे रूक सकती है। उन पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं उसके साक्ष्य पेश करें। कुल मिलाकर नगर पार्षद एवं डीएमसी के बीच छिड़ी इस जंग का खामियाजा एक बार फिर जनता को भुगतना पड़ रहा है। यहां समझ में नहीं आ रहा कि फाइलों में लगे कागजात भ्रष्टाचार की स्याही से भरे हुए हैं या फिर उन हस्ताक्षरों के होने या नहीं होने की वजह से जिसकी वजह से यह शोर मचा हुआ है।

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