वरिष्ठ साहित्यकार प्रो.रमेशचंद्र शर्मा पर विशेष.. .. ..

रेवाड़ी साहित्य जगत के वट वृक्ष हैं प्रो. शर्मा


भाव, भाषा व दर्शन की त्रिवेणी है उनकी कृतियाँ
शब्द शिल्पी बन साहित्य को गहन चिंतन एवं दर्शन से बांधा


रणघोष खास. गोपाल शर्मा


ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं जब कोई व्यक्ति वाणिज्य शास्त्र का ज्ञाता होने के साथ हिंदी साहित्य का भी सिरमौर बन जाए। रेवाड़ी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रमेशचंद्र शर्मा भी एक ऐसे ही वट वृक्ष हैं जिनकी छाया में रहकर रेवाड़ी साहित्य जगत नित नए आयाम स्थापित कर रहा है। यह संयोग ही है कि जिस दिन पूरा देश 2080 वें नवसंवत्सर की खुशियाँ मना रहा होगा, उसी दिन प्रो. शर्मा भी 80 बसंत पूरे कर चुके होंगे। दोनों अवसरों की पूर्व संध्या पर रेवाड़ी की प्रमुख साहित्यिक संस्थाएँ उनके सम्मान में साहित्यिक उत्सव आयोजित कर एक मिसाल कायम करेंगी। प्रो. शर्मा की कृतियां जहाँ भाव, भाषा व दर्शन की त्रिवेणी हैं, वहीं शब्द शिल्पी के रूप में उनकी रचनाओं में गहन चिंतन एवं दर्शन दिखाई पड़ता है।
जिले के बावल अंचल में गांव तिहाड़ा में श्रीबंसीधर शर्मा और श्रीमती अनन्ती शर्मा के घर २२ मार्च 1943 को जिस बालक का जन्म हुआ वह आज रेवाड़ी ही नहीं देश के साहित्य जगत का चमकता सितारा बनकर उभरा है। वाणिज्य का प्राध्यापक होने के बावजूद हिंदी अध्ययन व लेखन में उनका कोई सानी नहीं है। वर्तमान में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष के पद को सुशोभित करने वाले प्रो. शर्मा को यदि परिषद् का जनक कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वह साहित्य परिषद् के साथ-साथ विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं में निर्विवाद रूप से अग्रणी हैं। उनकी छाया में रहकर अनेक रचनाकारों ने अपनी कृतियों को आकार दिया है। बहुत कुछ लिखने की बजाय कुछ अच्छा लिखने में विश्वास करने वाले प्रो. शर्मा की तीन कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें उन्होंने अपने काव्य शिल्प की अनूठी छाप छोड़ी है।
आकाशवाणी रोहतक व दिल्ली से अनेक वार्ताएँ एवं परिचर्चाओं में शामिल रहे प्रो. शर्मा को अनेक सामाजिक, साहित्यिक, शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्कारों र्में हंस कविता सम्मार्न एर्वं बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्यिक पुरस्कार्र भी शामिल है। वे हरियाणा साहित्य अकादमी के मानद सदस्य भी रह चुके हैं। वर्ष 2000 में प्रकाशित उनका पहला काव्य संग्रहर्- निस्सीम होते शब्र्द में शब्द की सत्ता का उल्लेख करते हुए जहाँ गीत और गजल का सुंदर समावेश किया गया है, वहीं काव्य कुंज भाग में दूषित सामाजिक परिवेश व राजनीति पर करारा व्यंग्य भी किया है। 2011 में प्रकाशित दूसरी कृतिर्- दीप और दर्पर्ण के माध्यम से भारतीय संस्कृति व इतिहास में विशेष स्थान रखने वाले सेनानियों और कलमकारों को एक साथ काव्यात्मक भावांजलि देकर एक नजीर पेश की है। 2018 में प्रकाशित तीसरी कृति र्- ओ री ललाट की धवल रेर्ख चिंतन और दर्शन का अनूठा संगम है। परिषद् के राष्ट्रीय संरक्षक एवं व्योवृद्ध साहित्यकार डॉ. शिव कुमार खंडेलवाल ने तो इस कृति को अनुभूतिपरक महाकाव्य कहा है। नवसंवत् 2080 और प्रो. शर्मा के 80वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर होने वाले साहित्यिक कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार इसी पुस्तक पर चर्चा करेंगे।

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