शानदार उपलब्धि: रेवाड़ी में बनी चंदा इज every. Where को मिला राष्ट्रीय मंच पर सम्मान

रणघोष अपडेट. रेवाड़ी

हिसार के गुरु जंभवेश्वर विवि में पिछले दिनों हुए दी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल आफ  ग्रेट हरियाणा-2023 में दिखाई गईं  चंपा इज every. Where शार्ट मूवी को बेस्ट स्टोरी अवार्ड से नवाजा गया। इस फेस्टीवल में 150 फिल्मों में 40 को चयनित कर अलग अलग कैटेगिरी में रखा गया । पूरी तरह सत्यता पर आधारित यह स्टोरी  रेवाड़ी शहर की 75 साल की चंदा के जीवन से जुड़ी है। जिसमें चंदा का मुख्य किरदार हरियाणा फिल्मों की नामी अभिनेत्री लीना सैनी ने निभाया।  फिल्म की कहानी एवं संवाद दैनिक रणघोष के संपादक प्रदीप नारायण ने लिखे। इस फिल्म के डायरेक्शन की कमान जाने माने रंगकर्मी विजय भाटोटिया से संभाली । क्रिएटिव डायरेक्टर सुशील योगी व प्रोड्यूसर सविता देवी रहे।  इस फिल्म के निर्माता सामाजिक शख्सियत नवीन अरोडा रहे। बंजारा नाटय संस्था के मंजे हुए रंगकर्मियों में एडवोकेट विनय सैनी,  खुबराम सैनी, रिषी सिंहल,  विनोद शर्मा, सत्यप्रकाश सैनी, , हरीश सहगल, कमल दहिया, मास्टर अंश नारायण, बेबी सुमन, बेबी सोनम, मास्टर श्यामलाल, बेबी कृतिका, मास्टर शिवम, गीता शर्मा ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी। प्रोडक्शन रजत, मंयक, विनोद, डीओपी रोहित मोहन,  अस्टि. डीओपी मंयक सैनी, स्पाट बाय राजा, किशन,  मेकअप अनिल ने अपना शत प्रतिशत योगदान दिया।

 शहर के पीडब्ल्यूडी कांफ्रेस हॉल में मीडिया बंधुओं के समक्ष इस मूवी को दिखा गया। रेवाड़ी शहर के इतिहास में पहली बार इस तरह की शार्ट मूवी को राष्ट्रीय स्तर के मंच पर सम्मान मिला।

 20 लाख महिलाओं की जिंदगी से मुलाकात करा रही चंपा इज every. Where

 यह कहानी है भारत की उन 20 लाख महिलाओं की। जिसे हम कूड़े बीनने वाली कहते है। ये हर रोज कचरों के ढेर में परिवार के लिए रोटी तलाशती है। इन्हें नहीं पता बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तिकरण, महिला आरक्षण। वे इतना जानती है मां है वो..। रेवाड़ी शहर में रहने वाली 75 साल की चंदा देश के हर कोने में दिखा जाती है। ऐसी कितनी चंदा रोज हमारे पास से होकर गुजर जाती हैं। कभी अहसास हीं नहीं हुआ।  चंदा का जन्म देश की आजादी के समय हिंदू- मुसलमान की लड़ाई के वक्त हुआ था। वह इतना ही जानती है। थोड़ी सी समझदार हुई तो छुटनलाल से शादी हो गईं। तीन बच्चों की मां बनने के बाद वह वह दुनिया से चला गया। भाई के कहने पर  लालाराम से शादी हो गईं। चार बेटियां दो बेटों का परिवार। बेटियां ससुराल चली गईं। पिता की देखा देखी छोटी सी उम्र में बेटों ने चोरी छिपे शराब की दो घूंट क्या पी। सबकुछ उजाड़ता चला गया। लालाराम का शरीर भी जवाब दे चुका है। उसकी दवा का खर्चा चंदा के शरीर की हडि्डयों में बची खुची ताकत को खत्म करता जा रहा था।   सोचा था बहु घर संभाल लेगी। वो भी बच्चो को छोड़ पड़ोसी के के साथ चली गईं। पहले बेटा कभी कभार पीता था, जब से वह गई। रोज सुबह शाम नशे में कभी बाप के साथ तो कभी बच्चों से मारपीट करता। चंदा हर पल मर रही थी लेकिन फिर भी जिंदा है।  मां है वो..। 10 मिनट की इस फिल्म में चंदा की जिंदगी के तमाम पहुलओं को बेहद संजीदगी के साथ पर्दे पर उतारा गया है। फिल्म समाज की उस मानसिकता को बदलने की दिशा में एक कारगर  प्रयास है जिसे हम कूड़े बुनने वाली कहते हैं असल में वो एक ऐसी मां है जो अपने परिवार के लिए कचरों के ढेर में रोटी तलाशती है। लिखने से ज्यादा फिल्म देखकर ही इसे महसूस किया जा सकता है।

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