रणघोष खास. आमना बेगम दी प्रिंट से
पाकिस्तानी क्रिकेटर अब्दुल रज्जाक ने, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड का जिक्र करते हुए घोषणा की कि भारतीय अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन से शादी करके कभी भी “अच्छे स्वभाव वाले” और “नैतिक” बच्चे का जन्म नहीं हो सकता. रज्जाक की बेहूदी टिप्पणियां, जिसे उन्होंने “जुबान का फिसलना” कहा था, वास्तव में चौंकाने वाला नहीं है; बल्कि यह केवल उस लिंगवादी यानि सेक्सिस्ट और सांप्रदायिक भावना को प्रकट करता है जो न केवल पाकिस्तान की क्रिकेट टीम में बल्कि उसके पाकिस्तानी समाज में भी व्याप्त है.यह बात काफी परेशान करने वाली है कि एक आदमी सार्वजनिक रूप से ऐश्वर्या जैसी महिला का सिर्फ इसलिए अपमान करता है क्योंकि वह उसके करियर और जीवन में उसके द्वारा चुने गए विकल्पों से सहमत नहीं है. और यह देखना और भी दुखद है कि उनके साथियों ने इसका विरोध करने के बजाय उनकी इस बात की सराहना की. कुछ लोग इन बातों को एक गलती मानकर उचित ठहरा सकते हैं, हालांकि, सच्चाई यह है कि वे ग़लत हैं; ये प्रतिक्रियाएं एक ऐसे देश के स्याह पक्ष को दर्शाती है जहां पर पुरुषों का प्रभुत्व है.एक गैर-मुस्लिम महिला को निशाना बनाकर की गई यह आपत्तिजनक टिप्पणी पाकिस्तान के सांप्रदायिक पितृसत्तात्मक सोच को उजागर करती है. और इस मानसिकता के दुष्परिणाम देश में गैर-मुस्लिम महिलाओं के अपहरण, बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन की दिल दहला देने वाली घटनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
कन्वर्ज़न नियम बन चुका है
क्या आपने कभी पाकिस्तान के संदर्भ में मियां मिट्ठू नाम सुना है? इसे गूगल पर तुरंत खोजें. यह ‘पीर’ कथित तौर पर किशोर हिंदू लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन और विवाह कराने के लिए “ऊपरी सिंध में कुख्यात” है. हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें पाकिस्तानी सत्ता भी उनके पक्ष में झुकी हुई है, अक्सर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन), और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों से समर्थन मिलता है. मिट्ठू पर लगे गंभीर आरोपों के बावजूद उन्होंने उसे गले लगाया, उसका समर्थन किया और उसकी रक्षा की.पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के लिए ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप (एपीपीजी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में हर साल 12-25 वर्ष की लगभग 1,000 लड़कियों और महिलाओं को जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया जाता है. फिर उन्हें उनको अपहरण करने वालों के साथ शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिसे “मानवाधिकार आपदा” से कम नहीं माना जा सकता. हालांकि, ये चिंताजनक आंकड़े गांवों और कस्बों में रहने वाले पाकिस्तानियों के एक छोटे वर्ग तक ही सीमित नहीं हैं; यह पूरे देश में एक महामारी के रूप में मौजूद है.जो लोग गैर-मुस्लिम महिलाओं का धर्म परिवर्तन करते हैं, उनका मानना है कि वे उन्हें मूर्ति पूजा के ‘पाप’ से बचा रहे हैं. इस कार्य को एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में माना जाता है और इसे बड़ा मानवता वाला काम माना जाता है. यह दृष्टिकोण रज्जाक जैसे क्रिकेटरों तक फैला हुआ है, जिन्होंने पाकिस्तान के लिए 2009 टी20 क्रिकेट विश्व कप जीता था. यह स्पष्ट है कि वह ऐश्वर्या जैसी महिलाओं को नैतिक रूप से भ्रष्ट मानते हैं. कला के क्षेत्र में पुरुषों के साथ काम करने वाली एक काफ़िर या गैर-मुस्लिम महिला एक नैतिक रूप से ईमानदार बच्चे को कैसे जन्म दे सकती है? यह विकृत दृष्टिकोण पाकिस्तानी मन-मानस में काफी व्याप्त है.
क्रिकेटर समाज का आईना होते हैं
शाहिद अफरीदी के व्यवहार में भी यही पैटर्न स्पष्ट रूप से दिखता है, जो रज्जाक के विवादास्पद बयान के दौरान हंसते हुए देखे गए थे. हालांकि बाद में उन्होंने टिप्पणी को अनुचित बताया और रज्ज़ाक से माफी मांगने का आग्रह किया, लेकिन अपनी बेटियों के आउटडोर खेलों में भाग लेने पर अफरीदी के विचार उनकी गहरी स्त्री विरोधी मानसिकता को प्रकट करते हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि वह अपनी चार बेटियों को “सामाजिक और धार्मिक कारणों से” क्रिकेट और अन्य खेल खेलने से रोकेंगे.