श्रद्धा मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को गहराई से प्रभावित करती है। भक्ति के क्षेत्र में श्रद्धा की प्रधानता होती है। श्रद्धा व्यक्ति के जीवन का उत्कृष्ट आभूषण है। श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है। जब अंधविश्वास दूर होता है तभी श्रद्धा का उदय होता है। यह बात स्थानीय गामडी क्षेत्र स्थित जैन समाधी स्थल, गुरू मंदिर में उपस्थित जैन श्रद्धालुओं को उपप्रवर्तक महाश्रमण पंडित रतन आनंद मुनि जी तथा प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि ने कही। आज जैन समाज द्वारा आयोजित की जा रही धार्मिक
गतिविधियों के दौरान हर बृहस्पतिवार को की जाने वाली विशेष गुरू आरती के दौरान जैन मुनियों में जीवन में श्रद्धा व भक्ति के महत्व को विस्तार से सभी के सामने रखा। गौरतबल है कि जैन धर्म तथा अन्य स्थानीय श्रद्धालुओं में मान्यता है कि इस समाधी स्थल पर स्थापित जैन गुरूओं की प्रतिमाओं के समक्ष सच्चे हृदय से अगर 41 दिन ज्योति प्रज्ज्वलित करने से मनोकामना अवश्य पूरी होती है। जैन मुनियों बताया कि श्रद्धा मानव जीवन की नींव है। इसका आधार व्यक्ति के गुण व कर्म होते हैं। इसलिए जिन कर्मो की प्रेरणा से श्रद्धा उत्पन्न होती है, मनुष्य की प्रतिभा शक्ति साधन संपन्नता भी श्रद्धा का आधार हो सकती है। जैसी जिसकी श्रद्धा होती है वैसा ही उसका व्यक्तित्व बनता है। जिस तरह से सूर्य के बिना दिन नहीं होता, आंखों के बिना देखा नहीं जा सकता, कानों के बिना सुना नहीं जा सकता उसी तरह श्रद्धा के बिना जीवन गतिमान नहीं हो सकता। आज की प्रभावना का वितरण टीनू जैन ने सहपरिवार किया। महासाध्वी शक्तिप्रभा की शिष्याएं जैन साध्वी अक्षिता व रक्षिता ने कहा कि वह मनुष्य मानव नहीं जिसमें श्रद्धा न हो। श्रद्धालु व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर काबू कर तत्परता से ज्ञान प्राप्त कर सकता है। मन की चंचलता पर विजय प्राप्त कर ही सही मायनों में भक्ति के मार्ग को उदित करता है। यह भक्ति भाव तभी उत्पन्न हो सकता है जबकि हम सत्य, धर्म, समस्त प्राणियों के प्रति दया भाव को अपने जीवन में धारण करे। सही मायनों में सर्व जीव कल्याण का भाव ही श्रद्धा व भक्ति का आधार है। इस मौके पर बडी संख्या में जैन समाज के महिला, पुरूष, बच्चे व मौजिज नागरिक तथा श्रद्धालु उपस्थित थे