समझ में नहीं आता इलाज की सबसे ज्यादा जरूरत मरीज को है या डॉक्टर्स को

बदतमीजी करना, सच को छिपाना,  रसूक- पैसो के बल पर इतराना बन रहा इनका स्टाइल 


रणघोष खास. एक जागरूक नागरिक की कलम से


शहर के मॉडल टाउन में स्थित किडनी अस्पताल में अज्ञात कारणों से आग लग गईं। वजह का सच जानने के लिए मीडिया कवरेज करने पहुंची तो बजाय सही रिपोर्ट देने के बदतमीजी पर उतर आना क्या साबित करता है। कायदे से पत्रकार अपनी डयूटी की पालना करते हुए अस्पताल का इस घटना में सहयोग ही कर रहे थे। इसी तरह छोटे- बड़े अस्पतालों में तब्दील हो चुका शहर का सरकुलर रोड पर पर आए दिन डॉक्टरों एवं मरीजों के बीच इलाज के नाम पर होते विवाद दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। इसकी वजह इलाज के नाम पर कोताही, डॉक्टरों की तरफ से बनाए जाने वाला अनाप शनाप बिल जिसे देखकर मरीज के परिजनों की हालत भी मौके पर बिगड़ जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं की कोविड- 19 के नाम पर कुछ अस्पताल को छोड़कर अधिकांश ने इस वायरस के नाम पर मरीजों को ना केवल बेहरमी से लूटा साथ ही धरती के भगवान वाले सम्मान को भी शर्मसार कर दिया। मजाल इतना सबकुछ होने के बावजूद किसी डॉक्टर्स पर कार्रवाई हो। विराट अस्पताल में आक्सीजन की कमी से मरे मरीजों की जांच एक ऐसा राज बन चुकी है जिसके बारे में मृतक के परिजनों के अलावा सभी जानते हैं कि किसकी लापरवाही से यह घटनाएं हुईं। रसूक और पैसो के बल पर सच को चुप करा दिया जाता है। डॉक्टरों को यह पता चल चुका है कि मरीजों से वह खुद निपट लेंगे ओर उनके परिजनों से उनकी ही कमाई से अलग अलग रास्तों का सहारा लेकर चुप करा देंगे। अगर ऐसा नहीं है तो कोविड-19 में पीड़ितों को अभी तक न्याय क्यों नहीं मिला। खुलेआम नकली रेडमिशिवर इंजेक्शन का खेल चला। सबने देखा। कुछ मेडिकल स्टोर्स पर कार्रवाई के नाम पर छापे मारे। सूत्रों की माने तो वहां से भी इंजेक्शन का जखीरा पकड़ा गया जो सीधे सरकुलर रोड के अस्पतालों में जमकर सप्लाई हुआ। मजाल आज तक प्रशासन या जांच अधिकारियों ने इसे सार्वजनिक किया हो। इसकी वजह साफ है। डॉक्टर्स कभी गलत नहीं हो सकता। अगर गलत साबित हो गया तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इसे किसी सूरत में सहन नहीं करेगी। आखिर ये धरती के भगवान होते हैं। भगवान कभी गलत नहीं हो सकता..।

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