सरकार आसान इनकम टैक्स की व्यवस्था लाने की तैयारी में

–लेकिन एक बुनियादी जटिलता बनी हुई है


एक अस्पताल में नौकरी करने वाला और सैलरी पाने वाला डॉक्टर और एक खुद की प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टर के लिए अलग-अलग प्रावधान क्यों है? यही सवाल हर दूसरे पेशे के लिए है.


रणघोष अपडेट. देशभर से दि प्रिंट से  

वित्त मंत्रालय लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए काफी हद तक आगे बढ़ गया है कि उसने नए टैक्स स्लैब की शुरुआत के माध्यम से भारत में आयकर व्यवस्था को सरल बना दिया है. वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह अपने बजट भाषण में इसका उल्लेख किया था और तब से मंत्रालय के कई सचिवों ने कर नीति के इस चीज़ के बारे में विस्तार से बात की है.जहां तक पॉलिसी के सरल होने का संबंध है, छूटों को हटाना और कर स्लैबों की संख्या को कम करना निश्चित रूप से सही दिशा में उठाया गया कदम है. लेकिन एक और बुनियादी जटिलता है जिसे भारत की व्यक्तिगत कर नीति ने पेश किया है, जिसके समाधान से सरलता में काफी वृद्धि होगी. सवाल यह है कि दो लोग जो बिल्कुल समान आय स्तर के साथ एक ही काम कर रहे हैं, उन पर अलग-अलग कर क्यों लगाया जा रहा है?इस जटिलता का स्रोत फॉर्म 16 और फॉर्म 16A करदाताओं के बीच के अंतर से उपजा है. सीधे शब्दों में कहें तो फॉर्म 16 करदाता वेतनभोगी कर्मचारी हैं, जबकि फॉर्म 16ए करदाताओं में डॉक्टर, वकील, सलाहकार आदि जैसे स्व-रोजगार वाले लोग शामिल हैं. और भी आसान शब्दों में कहें, तो फॉर्म 16 वेतन आय के लिए है, जबकि फॉर्म 16ए ‘अन्य आय’ के लिए है जो कि कोई व्यक्ति कमाता है.एक अस्पताल में नौकरी करने वाला और सैलरी पाने वाला डॉक्टर और एक खुद की प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टर के लिए अलग-अलग प्रावधान क्यों है? यही सवाल हर दूसरे पेशे के लिए है. कई मीडिया घरानों में पत्रकार होते हैं जो अपने वेतनभोगी सहयोगियों के समान ही काम करते हैं, लेकिन आयकर विभाग द्वारा उनके साथ अलग-अलग तरीके से व्यवहार किया जाता है.

वर्कप्लेस के चरित्र को बदलने के लिए नीतिगत बदलाव की जरूरत

अब, कोई यह तर्क दे सकता है कि स्व-नियोजित लोग जैसे डॉक्टर, वकील और एकाउंटेंट, जिनकी अपनी प्रैक्टिस है, व्यवसाय से संबंधित विभिन्न खर्चों जैसे कि कार्यालय चलाने, क्लाइंट्स को डील करने आदि को करना पड़ता है, जो कि एक विशिष्ट वेतनभोगी डॉक्टर, वकील या एकाउंटेंट को खर्च करने की जरूरत नहीं है.

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