सीधी सपाट बात : अपने निजी एंजेडों के लिए महावर सभा के ड्रीम प्रोजेक्ट को खंडहर में तब्दील कर रहे कुछ लोग

रणघोष अपडेट. रेवाड़ी


वैश्य समाज का महत्वपूर्ण घटक महावर सभा रेवाड़ी के अंतर्गत सेक्टर चार में निर्माणधीण भवन को  समाज के कुछ लोगों ने अपने निजी एजेंडें, पद की लालसा, एक दूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता के चलते खंडहर में तब्दील कर दिया है। 2019 से इस भवन का निर्माण कार्य नई कार्यकारिणी का गठन नहीं होने की वजह से बंद  पड़ा हुआ है। काफी मशक्कत के बाद पिछले कुछ दिनों से जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई तो फिर इसमें छोटी छोटी वजह बनाकर  इसे रोकने के लिए आगे आ गए हैं।  24 मार्च को फमर्स एंड सोसायटिज, रेवाड़ी के रजिस्ट्रार की तरफ से नियुक्त प्रशासक सतीश कुमार जोशी ने जैसे ही चुनाव का शैडयूल जारी किया। कुछ देर  बाद ही उस पर आपत्ति दर्ज होना शुरू हो गईं। शिकायतकर्ता आनंद गुप्ता का तर्क है कि चुनाव प्रक्रिया में अनेक तरह की खामियां है। मसलन चुनाव शैडयूल में फाइनल वोटर सूची का डिस्पले 18 मार्च दिखाया है। उस दिन धुलंडी थी। सरकारी अवकाश पर वोटर सूची कैसे चस्पा हो सकती है। छह दिन बाद चुनाव घोषणा 24 मार्च को जारी किया गया। दूसरी आपत्ति चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए निर्धारित की गई 2100 रुपए की राशि को लेकर है जो वापस नहीं होकर समाज के खाते में ही जमा होनी है। शिकायतकर्ता का कहना है कि यह राशि ज्यादा है  जो आम आदमी के बजट से बाहर है। तीसरा चुनाव मतदान का समय बहुत कम मिला है। ऐसे में उम्मीदवार इतने कम समय में जनसंपर्क कैसे कर पाएगा लिहाजा चुनाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए। यहां अब कई सवाल खड़े होते हैं। पहला महावर सभा रेवाड़ी के चुनाव की प्रक्रिया 22 फरवरी को ही आधिकारिक तौर पर शुरू हो गई थी। जिसकी सूचना समाज के स्थापित नेटवर्क व समाचार पत्रों के माध्यम से संचारित कर दी गई थी। चुनाव शैडयूल जारी करने से पहले वोटर सूची की जांच, वैधता एवं आपत्ति को लेकर महावर सभा के धौला कुआं स्थित भवन में निर्वाचन अधिकारी ने मीटिंग कर फाइनल सूची को नोटिस बोर्ड पर चस्पा दिया गया था। निर्वाचन अधिकारी सेक्टर चार स्थित समाज के  निर्माणधीन भवन में चुनाव कराना चाहते थे। बाद में मौके पर जाकर देखा तो भवन में कोई सुविधा नहीं होने की वजह से उन्होंने स्थान धौला कुआं फाइनल कर दिया। इसी दौरान प्राप्त हुई शिकायतों का संबंधित समाज के पदाधिकारी से जवाब तैयार कराने व चुनाव का स्थान बदलने की प्रक्रिया में समय लग गया। इस वजह से शैडयूल को 24 मार्च को जारी करना पड़ा ताकि पहले से निर्धारित किए समय के अनुसार चुनाव कराए जा सके। चूंकि यह गैर राजनीतिक एवं गैर सरकारी संगठन है इसलिए इसकी कार्यप्रणाली में समाज के आपसी भाईचारे को प्राथमिकता दी जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह ऐसा चुनाव नहीं है जिस पर देश प्रदेश की सरकारों, नेताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों की नजरें टिकी हुई हैं। इस चुनाव का असर समाज के अन्य वर्ग पर भी नहीं पड़ने वाला है।  जीतने वाले उम्मीदवारों को ऐसी कोई शान शौकत मिलने वाली नहीं है जो विधायक- सांसदों को मिलती है। महज समाज में चौधरी बनने की लालसा जरूर पूरी होती है। इस चुनाव को कराने  का मूलत: प्रमुख उद्देश्य सेक्टर चार स्थित निर्माणधीन भवन का जल्द से जल्द जन सहयोग से निर्माण कार्य शुरू करवाना था ताकि इसका फायदा समाज के सभी वर्ग को भी मिले।

तीन सालों से खंडहर बन रहा भवन

पिछले तीन सालों से आपसी चौधराहट की लड़ाई में यह भवन निर्माण नहीं होने की वजह से अब खंडहर बनता जा रहा है। इस भवन का डिजाइन एवं लोकेशन इतनी जबरदस्त है कि आस पास क्षेत्र में इसके अपने स्वरूप में आने के बाद इसके बराबर कोई सुंदर भवन नहीं है।  समाज के प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि अगर इसी तरह टांग खिंचाई की मानसिकता बनी रही तो आने वाले समय में समाज के लिए समर्पित लोग भी पीछे हट जाएंगे

जिसका एक रुपए का योगदान नहीं वह चौधरी में बनने में सबसे आगे

इस पूरे मामले की सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिसने समाज के इस भवन निर्माण में अभी तक एक रुपया का योगदान नहीं किया। समय तक नहीं दिया। वे चुनाव के समय अचानक बाहर निकलकर अलग अलग तेवरों एवं स्टाइलस से चौधरी बनने के लिए आगे आ जाते हैं।

इसलिए तीन सालों में नहीं हुआ कोई चुनाव

पिछले तीन सालों से अधिक समय से चुनाव नहीं होने की वजह से समाज में धड़े बनना है। जिसका अधिकतर समय  एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में गुजर गया । समाज में सक्रिय सदस्य के तौर पर आधे से ज्यादा ऐसे हैं जो चालाकी से दोनों हाथों में लडडू लेकर चलते हैं। एक धड़ा तत्कालीन प्रधान घनश्याम डाटा पर आरोप लगा रहा है कि वे भवन के निर्माण कार्य का हिसाब नहीं दे रहे हैं जबकि डाटा का कहना है कि वे हिसाब देने को तैयार है कोई लेने के लिए तो  आए।

 ऐसी कोई वजह नहीं जिसकी वजह से चुनाव को आगे बढ़ाए

प्रशासक सतीश कुमार जोशी का कहना है कि उनके पास चुनाव प्रक्रिया में खामियों को लेकर आपत्ति आई है। उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसकी वजह से चुनाव को आगे बढ़ाया जाए। यह सामाजिक चुनाव है। छुटटी के दिन भी हम शैडयूल जारी कर सकते हैं। चुनाव लड़ने के लिए निर्धारित शुल्क की राशि समाज में जमा होनी है इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है। जहां तक समय कम मिलने का समय का सवाल है। 22 फरवरी से हमने चुनाव की प्रक्रिया शुरू की हुई थी। 10 अप्रैल को मतदान है जिसमें अभी 15 से ज्यादा दिन का समय है। कायदे से देखा जाए तो चुनाव व मतदाताओं की संख्या व उसका दायरा इतना बड़ा नहीं है कि उम्मीदवार मतदाताओं तक पहुंच ही नहीं पाए।

 चुनाव स्थगित होंगे तो प्रशासक का खर्च बढ़ेगा, समाज वहन करेगा

अगर चुनाव किसी कारणवश स्थगित होते हैं तो नई प्रक्रिया में लंबा समय लेगा साथ ही प्रशासक के तौर पर खर्च हो रही राशि भी समाज को वहन करनी पड़ेगी। यहां बता दें कि प्रशासक नियुक्त होने के बाद उसका खर्च एवं चुनाव के समय अन्य नियुक्त कर्मचारियों का खर्चा समाज को अपने फंड से चुकानी पड़ता है। सबसे बड़ी बात अगर इन्हीं वजहों से ऐसे ही चुनाव बाधित होते रहे तो सक्रिय तोर पर जिम्मेदारी निभाने वाले भी पीछे हट जाएगे।  

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