सुप्रीम कोर्ट को बताया गया- 300 पुराने पेड़ों से 220 करोड़ रुपए का फायदा

पश्चिम बंगाल में 5 रेलवे ओवरब्रिज निर्माण के लिए काटे जाने वाले 300 पुराने पेड़ों (धरोहर वृक्ष या हेरीटेज ट्री) की कीमत ऑक्सीजन और अन्य उत्पादों के लिहाज से 220 करोड़ रुपये है, जिसका मतलब है कि जिंदा पेड़ परियोजना से ज्यादा लाभप्रद हैं। एक विशेषज्ञ समिति ने सुप्रीम कोर्ट से यह बात कही है। धरोहर वृक्ष बड़ा पेड़ होता है, जिसे पूरी तरह तैयार होने में दशकों या सदियों लग जाते हैं।प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ से एक विशेषज्ञ समिति ने कहा कि ये पेड़ समाज और पर्यावरण की सेवा करते हैं और इनका आकलन ऑक्सीजन, मैक्रो न्यूट्रिशिएंट, कंपोस्ट और अन्य जैव उर्वरक सहित विभिन्न कारकों के आधार पर किया जा सकता है। इसने कहा कि अगर सभी कीमतें जोड़ी जाएं और पेड़ की शेष आयु से उसमें गुना किया जाए तो वर्तमान मामले में कुल कीमत प्रति पेड़ 74,500 रुपए प्रति वर्ष होता है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ”इसका मतलब है कि अगर 300 पेड़ों को सौ वर्ष या अधिक समय तक रहने दिया जाता है तो ये 220 करोड़ रुपये के उत्पाद देंगे। 300 पेड़ों की भविष्य की यह कीमत है। अगर 59.2 किलोमीटर सड़क पर विचार किया जाए तो ये एक दशक या इससे कुछ अधिक समय में भीड़भाड़ वाले होंगे और अधिकारियों को इसका चौड़ीकरण करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा और इस तरह से 4056 पेड़ों को काटने की जरूरत होगी।”

समिति ने कहा, ”उस सूरत में 100 वर्षों में उत्पादों की कीमत 3021 करोड़ रुपये होगी। इसलिए इस पर्यावरणीय आपदा से बचने के लिए नियमित ढांचे से बाहर के समाधान की जरूरत है।” 5 प्रस्तावित पुल ”सेतु भारतम मेगा परियोजना’ का हिस्सा हैं जिसकी फंडिंग केंद्र सरकार कर रही है और इसमें देश के 19 राज्यों में 208 रेल ओवर और अंडर ब्रिज बनना है। इसके लिए 20,800 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है।5 सदस्यीय समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि राष्ट्रीय महत्व की किसी परियोजना को लागू करने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की जरूरत है और पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं किया गया है। पीठ ने मामले पर सुनवाई की अगली तारीख 18 फरवरी तय की है।

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