सैनी सभा चुनाव में यह कैसा भाईचारा, कैसी समाजसेवा और यह कैसा विश्वास

 मीडियों में लाखों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर करोड़ों के घोटाले उजागर कर रहे दोनों धड़े


 -सैनी समाज में सेवा करने वाले ही लूटेरे बने, यह कैसी चौधरी, चुनाव के समय ही एक दूसरे की पोल क्यों खोलते हैं।


रणघोष खास. रेवाड़ी


रविवार को जब सैनी सभा प्रबंधन समिति की नई टीम को लेकर मतदान चल रहा था उस समय अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन में चुनाव लड़ रहा पूर्व प्रधान चेतराम सैनी का धड़ा लाखों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर दूसरे धड़े शशिभूषण सैनी के कार्यकाल में हुए करोड़ों रुपए के घोटाले की तस्वीर उजागर कर रहा था। इससे एक दिन पहले शशी सैनी गुट ने इसी तरह लाखों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर अपने कार्यकाल में कराए गए विकास कार्यों का बखान किया था। अब सवाल यह उठता है कि दोनों धड़े भ्रष्टाचार के दाग से सने एक दूसरे के कपड़े उतारने के लिए पानी की तरह जो पैसा बहा रहे हैं वह ईमानदारी के रास्ते से आ रहा है या फिर सभा को भष्टाचार का गोदाम बनाकर वहां से सप्लाई हो रहा है। यह समाज की अदालत में निष्पक्ष जांच का मसला है। सभी जागरूक पाठकों को यह बताना जरूरी है कि विज्ञापन किसी भी मीडिया को दबाने, चुप करने और अपने इरादों को शातिर ढंग से पूरा करवाने का सबसे मजबूत औजार है। खासतौर पर किसी भी छोटे बड़े चुनाव में तो मीडिया खुद बाजार में अपनी बोली लगवाने के लिए सबसे आगे रहता है। इसलिए ऐसे चुनाव में सही उम्मीदवार का चयन करते समय मतदाता का खुद के प्रति ईमानदार होना जरूरी है।

रविवार को जिस तरह चेतराम सैनी गुट ने शशिभूषण सैनी गुट पर संस्था में रहकर करोड़ों रुपए का गोलमाल करने का लिखित में जो दावा किया है क्या वह चुनाव में समाज के लोगों का अपने गुट के प्रति विश्वास कायम करने का प्रयास है या वास्तव में चेतराम सैनी की आत्मा जाग गई है। यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि चेतराम सैनी का शशिभूषण सैनी से 25 साल से पुराना याराना है। आज भी है और चुनाव के बाद भी रहेगा। यहीं आरोप पिछले चुनाव 2019 में भी लगाए गए थे जब दोनों एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे। तीन साल हो गए घोटाले का असली चेहरा सामने नहीं आया लेकिन दोनों की दोस्ती मजबूत रही। चेतराम सैनी खुद यह कबूल रहे हैं कि वे दिन में लड़ते हैं रात को मेरे पास आते हैं। इन दोनों धड़ों के अलावा इस बार तीसरी नई टीम ने तो सामने आकर सबूतों के साथ यह दावा भी किया कि दोनो धड़ों ने सोची समझी साजिश के तहत समाज को बांटकर अपना खेल खेला है। अगर यह झूठ है तो पिछले चुनाव में चेतराम सैनी पर जो आरोप लगे थे वे सभी दबा क्यों दिए। दोनों धड़े चाहते हैं कि चुनाव में समाज को गुमराह करने के लिए पहले एक दूसरे के कपड़े उतारो और चुनाव के बाद दोनों एक दूसरे को नए कपड़े पहनाकर कर  पुराने दागदार पुराने कपड़ों को जला दो। इसकी चुनाव के एक दो माह तक चर्चा रहती है उसके बाद धीरे धीरे सबकुछ भूला दिया जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं चुनाव छोटा हो या बड़ा आधे से ज्यादा मतदाता अपने विवेक से नहीं इधर उधर कहने से, या अलग अलग तरह के प्रभाव में आकर वोट डालता है इसी वजह से समाज की यह हालत कर दी जाती है कि भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए भी उम्मीदवारों को लाखों रुपए प्रचार प्रसार में खर्च करने पड़ते हैं यानि खुबसूरत ढंग से एक ओर नए भ्रष्टाचार का जन्म। सोचिए समाज के इस तरह के चुनाव में जीते गए उम्मीदवार को ना तो कोई पेंशन, भत्ता या वेतन मिलता है और ना हीं कोई सुविधा। सिर्फ चौधर के नाम पर चुनाव में लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं तो समझ जाइए उम्मीदवार खुद के प्रति कितना ईमानदार होगा और उसका असल में इरादा क्या है।  मंथन करिए समाज में जो भी राशि आती है वह समाज के लोगों की खून पसीने की कमाई का अंश होती है। जिसे चंदे के तौर पर देकर समाज के लोग आपसी भाईचारे व विश्वास की सुगंध बिखरते हैं लेकिन सैनी सभा के चुनाव में तो दुर्गंध ज्यादा फैलाई जा रही है। चुनाव परिणाम के बाद जो तस्वीर सामने आएगी वह समाज का सुंदर चेहरा होगी या फिर गुमराह करने वाली एक ओर सफल चाल.. यह देखने वाली बात होगी।

 सैनी समाज की तीसरी नई टीम के सवालों में दम इसलिए बच रहे हैं

समाज की इस नई टीम के सदस्य प्रीतम सैनी, दयाराम सैनी, हर्ष सैनी, प्रीतम, किशन सैनी, मनोज सैनी ने बताया कि दोनों धड़ों द्वारा समाज के साथ साइबर क्राइम की तरह ठगबाजी की जा रही है जो लच्छेदार बातों में फंसाकर लूटकर चले जाते हैं। 2016-2019 में चेतराम सैनी जब प्रधान थे उस समय शशि सैनी उनके मैनेजर व सलाहकार होते थे।  उस समय चेतराम सैनी के गलत कार्यो के खिलाफ आवाज उठाई तो हमें मीटिंग बुलाना बंद कर दिया। हमने कानूनी लड़ाई लड़ी और चेतराम सैनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुईं। समाज ने पूरा साथ दिया। 2019 में चुनाव हुआ तो शशि सैनी चेतराम सैनी के खिलाफ हमारे समर्थन में आ गया। वायदा किया गया कि चुनाव जीतने के बाद चेतराम सैनी के समय में हुई अनियमिताओं की ऑडिट कर जांच कराई जाएगी। ऐसा कुछ नहीं किया। अंदरखाने सभी एक हो गए और कोई ऑडिट नहीं हुईं। यहां तक आपसी सांठगांठ कर चेतराम सैनी के खिलाफ दर्ज एफआईआर की कोई पैरवी नहीं करके उसे खारिज करवा दिया। पूरा कार्यकाल भाईचारे में निकाल दिया। इस दौरान यह खुलासा भी हो गया कि 2019 में शशिभूषण सैनी को प्रधान बनने के लिए 22 वोट मिले थे उसमें चेतराम सैनी गुट  ने  प्रीतम सैनी को प्रधान उम्मीदवार बना दिया लेकिन अदंरखाने कालेजियम सदस्यों के वोट शशि सैनी गुट को दिलवा दिए थे। इस नई टीम का आरोप है कि दोनो धड़े बड़ी चतुराई से चुनाव के समय एक दूसरे के खिलाफ खड़े होने का नाटक रचते हैं उसके बाद मंसूबे पूरे होते ही एक हो जाते हैं। समाज का राजनीतिक तौर पर फायदा उठाकर अपने निजी एजेंडों को पूरा करते हैं।

 इन सवालों में छिपा हुआ है सच

  1. इस बार वार्डबंदी इस चतुराई से कर दी गई कि कोई नया उम्मीदवार जल्दी से जीत नहीं पाए इसलिए पति-पत्नी को भी अलग अलग वार्ड में डाल दिया
  2. एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे प्रमुख दावेदार गांव बीकानेर जमीन की प्रोपर्टी डीलिंग में बिजनेस पार्टनर है
  3. खुद चेतराम सैनी का आरोप है कि विरोध धड़ा दिन में खिलाफ बोलता है रात को काम कराने के लिए घर आता है
  4. ऐसे कॉलेजियम सदस्यों को मैदान में उतारा जाता है जो एक दिन मजदूरी ना करें तो रोटी के लाले पड़ जाए। ऐसे सदस्य डमी होते हैं जो आगे चलकर बिना पढ़े किसी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दें। इस सदस्य को जीताने में धड़े झुंड में अभियान चलाते हैं
  5. इस चुनाव में प्रमुख दावेदारों के खिलाफ दोनों धड़ों ने रणनीति के तहत उम्मीदवार नहीं उतारना सबकुछ साबित करता है
  6. चेतराम सैनी के खिलाफ शशि सैनी गुट ने कमजोर उम्मीदवार उतारा तो हमें मैदान में उतरना पड़ा
  7. चेतराम गुट ने शशि सैनी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा, मतलब सांठगांठ साबित हो रही है।
  8. शशिसैनी गुट के जगदीश सैनी के खिलाफ चेतराम सैनी ने क्या सोचकर उम्मीदवार नहीं उतारा यह बताया जाए।
  9. शशि सैनी गुट के पूर्व प्रधान रोशनलाल सैनी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा
  10. शशि सैनी गुट के हरि सिंह सैनी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा

 प्रधान चुनते समय समाज सिखाएगा सबक

इस नई टीम का कहना है कि मीडिया के माध्यम से एक दूसरे का आरोप का नाटक करके इन दोनों धड़ों ने समाज की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया है। कायदे से उन्हें अपनी बात समाज में बैठकर करनी चाहिए थी। इन्हें चुनाव में ही एक दूसरे पर आरोप नजर आते हैं उसके बाद तीन साल तक आपस में बैठकर समाज की ठेकेदारी लेकर अपने आर्थिक एजेंडों को राजनीति के प्लेटफार्म पर पूरा करते हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य समाज को गुटों में बांटना है ताकि अपने मंसूबों को पूरा किया जा सके।  इस बार प्रधान चुनते समय ऐसा हरगिज नहीं होगा। समाज इनके खेल को समझ चुका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *