सैनी समाज में सत्ता के लिए आपसी भाईचारे व प्रेम को भी चुनाव की मंडी में बेच दिया

 रणघोष खास. रेवाड़ी

शहर की सबसे बड़ी सामाजिक संस्थाओं में शामिल सैनी समाज के हुए चुनाव ने समाजसेवा, आपसी भाईचारे व एक दूसरे के प्रति सम्मान की संस्कृति एवं सोच को बेनकाब कर दिया है। हालात यह हो चुकी है कि जिस तरह दो धड़े सत्ता पर आसीन होने के लिए साम दंड भेद के रास्ते एक दूसरे को सार्वजनिक तौर पर निवस्त्र करने में लगे हुए हैं। उससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि इन धड़ों का नेतृत्व करने वालों को समाज के सम्मान व स्वाभिमान से कोई सरोकार नहीं है। इनका मकसद किसी तरह सत्ता पर काबिज होकर अपने छिपे एजेंडे केा पूरा करना है। यहां स्पष्ट कर दें कि दोनों धड़ों में मीडिया के प्लेटफार्म पर हो रही इस लड़ाई का अंत कॉलेजियम सदस्यों द्वारा प्रधान मनोनीत करने के तुरंत बाद हो जाएगा। तमाशा देख रहे समाज के लोग अपने काम धंधे में व्यस्त हो जाएंगे और एक दूसरे के कपड़े पर कीचड़ उछालने वाले चोरी छिपे  बंद कमरे में एक दूसरे के दाग को साफ करते हुए आगामी तीन साल तक इस लड़ाई को ड्रामें की तरह चलाते रहेंगे। 2019- 2022 में ड्रामें का पहला मंचन हो चुका है।

पिछली 10 जुलाई को सैनी सभा के हुए चुनाव में चेतराम सैनी गुट से 24 कालेजियम सदस्यों ने जीतकर अपनी दावेदारी पेश कर दी थी। शशिभूषण सैनी गुट ने अपनी हार स्वीकार कर ली थी। एकाएक चुनाव में फर्जी आधार कार्ड का आडियो व विडियो सामने आने से दोनों धड़ें अचानक एक दूसरे के सामने आ गए। इस चुनाव में तीसरे धड़े ने इस फर्जी आधार कार्ड के मामले को एक्सपोज किया था। यह सीधे तौर पर विजयी हुए चेतराम सैनी धड़े पर हमला था। उसके बाद फिर तीनों तरफ से एक दूसरे पर गंभीर आरोप के हमले शुरू हो गए। यहां बता दें कि  चुनाव में विजयी हुए कॉलेजियम सदस्यों द्वारा प्रधान का चुनाव होना अभी बाकी है। इसलिए यह लड़ाई तब तक रहेगी जब तक किसी तरह प्रधान मनोनीत नहीं हो जाए। कमाल की बात यह है कि समाज के चुनाव में समाजसेवा करने वाले इन उम्मीदवारों एवं दावेदारों को ना तो सेवा करने के नाम पर कोई भत्ता, पेंशन या वेतन मिलना है और ना हीं विशेष अधिकार जो समाज को अपने दिमाग से चला सके। इसके बावजूद जिस तरह करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे उससे जाहिर होता है कि इस तरह के चुनाव ने समाज के अंदर सालों से चलते आ रहे भाईचारे को भी ध्वस्त कर दिया है। समाज में एक दूसरे के प्रति रिश्तेदारी, संबंध, परस्पर सम्मान भी चुनाव इस के खेल में टूटते बिखरते नजर आए। सबसे बड़ा सवाल 6 हजार से ज्यादा मतदाता वाले इस चुनाव में अब बेशक कोई प्रधान या किसी भी पद पर आसीन हो जाए वह अब समाज में आपसी एकता एवं भाईचारे कहने का हक खो चुका है। ऐसे में जिस समाज के चुनाव में चौधर ही सर्वोपरि हो जाए  तो वह समाज ना होकर सत्ता हो जाती है जिस पर कब्जाने के लिए उन सभी हदों को पार किया जाता है जो अभी तक मर्यादा में बंधी हुई थी। कुल मिलाकर सैनी सभा का यह चुनाव समाज के नाम पर दाग लगा गया जिसे धोने में काफी समय  लगेगा।

 

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