जिस अंदाज़ में बॉब विलिस जैसे धुरंधर को यशपाल ने फ्लिक किया उसे देखकर आप हैरान हो जायेंगे। उस शॉट्स में भी आपको वही दिलेरी देखने को मिलेगी जैसी कि 1979 वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में विवियन रिचर्ड्स ने माइक हैंड्रिक्स की गेंद को फ्लिक किया था या फिर 2011 में एम एस धोनी ने जीतने वाला छक्का जड़ा था।
रणघोष खास. विमल कुमार
टेस्ट क्रिकेट में ऑस्ट्रेलियाई विजय के अश्वमेघ को रोकने के लिए राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण की जोड़ी ने क्रिकेट इतिहास में अपनी महानता को स्थायित्व दे दिया। लेकिन, क्या कभी आपने इस बात पर पलटकर भी सोचा है कि वन-डे वर्ल्ड कप में कैरेबियाई अश्वमेघ को रोकने वाले यशपाल शर्मा को कभी वह तारीफ़ क्यों नहीं मिली जिसके वह हकदार थे?भारत ने पहला वर्ल्ड कप 1983 में जीता और फ़ाइनल मैच का हर एक लम्हा हर पीढ़ी को शायद याद हो लेकिन कितने लोगों को याद है कि वेस्टइंडीज़ को वर्ल्ड कप में हराया भी जा सकता है, इस बात का भरोसा सबसे पहले यशपाल शर्मा ने ही दिया था? बेहद शक्तिशाली क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज़ टीम को वर्ल्ड कप के इतिहास में पहली हार दिलाने में सबसे अहम भूमिका निभायी थी यशपाल शर्मा की 89 रनों की पारी ने। इसके लिए उन्हें मैन ऑफ़ द मैच का ख़िताब भी मिला था। वह दौर भारतीय क्रिकेट में मुंबई के प्रभुत्व का दौर था और इसलिए मीडिया में कभी भी उस बेजोड़ पारी की वैसी चर्चा नहीं हुई। 1983 वर्ल्ड कप के दौरान ही इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में भी यशपाल शर्मा ने 61 रन की एक यादगार पारी खेली। लेकिन, यशपाल शर्मा की इन दो पारियों को उनके आलोचक हमेशा कम करके आँकते रहें क्योंकि उनके करियर के आँकड़ें उतने चमकदार नहीं थे।निश्चित तौर पर यह तर्क दिया जा सकता है कि 37 टेस्ट में 33.45 का औसत और महज 2 शतक किसी बल्लेबाज़ को महानता का दर्जा नहीं दिला सकता। ठीक उसी तरह से 42 वन-डे मैचों में 28.48 का औसत भी किसी शानदार खिलाड़ी की योग्यता के साथ मेल नहीं खाते हैं। लेकिन, वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा होना और उस टीम की जीत में अहम किरदार निभाना कई बार करियर के बड़े से बड़े आँकड़ों पर भी बहुत भारी पड़ता है। यक़ीन न हो तो द्रविड़ और लक्ष्मण से ही कभी पूछ लिजियेगा जिनके आँकड़ें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ज़बरदस्त हैं लेकिन वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा होने के लिए वो सब कुछ त्यागने के लिए आपको तैयार दिखेंगे। शायद किसी ने सही ही कहा है कि महानता हर समय आँकड़ों की मोहताज नहीं होती है।