स्मृति शेष.. प्राचार्य सुनील कुमार

एक ऐसा गुरु  जो सरकारी सिस्टम में शिक्षा की सुगंध बनकर चौतरफा बिखरता रहा


 रणघोष खास. एक शिक्षक की कलम से


राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कुंड के प्राचार्य सुनील कुमार को शुक्रवार रात कोरोना ने हमसे छीन लिया। जाहिर है रूटीन की तरह कुछ समय बाद अतीत के तौर पर उन्हें कभी कभार याद कर लिया जाएगा। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। जब जब सरकारी शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने की चर्चा होगी जिले में इस शिक्षक का नाम बड़े गर्व एवं गौरव के साथ मंच पर तालियों की गूंज के साथ याद किया जाएगा। ऐसा हरगिज नहीं है प्राचार्य सुनील कुमार को दुनिया से विदा लेने के बाद उनकी अच्छाईयों को याद किया जा रहा है। 53 साल के इस शिक्षक ने अपनी 25 साल की सर्विस में सरकारी शिक्षा को बेहतर मुकाम पर पहुंचाया है। 2008 से पहले जब सुनील कुमार गांव कुंड के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में साइंस शिक्षक थे अपने विषय में बोर्ड के विद्यार्थियों को राज्य स्तर पर टॉप पोजीशन पर पहुंचा दिया। पढ़ाने में समर्पण इतना गजब का था स्कूल की छुट्‌टी के बाद भी अलग से कक्षाएं लेते थे। इतना ही नहीं जरूरतमंद विद्यार्थियों की अपनी वेतन से मदद करने में कभी पीछे नहीं हटे। ना जाने कितने विद्यार्थियों का बेहतर भविष्य बना चुके सुनील गुरुजी हर समय जिससे भी मिलते पूरे जोश के साथ नजर आते। इनकी बदौलत कुंड स्कूल ने बोर्ड की परीक्षा में राज्य भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 2008 में पदोन्नत होकर राजकीय हाई स्कूल माजरा में हैडमास्टर बनकर आए तो यह सरकारी शिक्षा जगत में उन्होंने ऐसा प्रयोग किया जिसके सामने मिशाल भी छोटी पड़ जाती है। सुनील गुरुजी ने सबसे पहले अपने स्कूल के सभी शिक्षकों के बच्चों का दाखिला अपने यहां सरकारी स्कूल में कराया। उसके बाद स्कूल को अंग्रेजी माध्यम घोषित कर दिया जो शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर बदलाव की शानदार घटना थी। देखते ही देखते स्कूल में बच्चों की संख्या 300 से सीधे 600 पार हो गईं। उनके इन प्रयासों से निजी स्कूलों में हड़कंप मच गया। इतना ही नहीं यह स्कूल भी आगे चलकर हरियाणा में टॉप-3 पोजीशन पर आ गया। 2012 के बाद सुनील गुरुजी पदोन्त होकर मेवात में स्कूल के प्राचार्य बन गए। काफी समय गुजारने के बाद वापस कुंड स्कूल में प्राचार्य बन कर आए। इसी दौरान भाग्य ने उनकी अनेक तरह की परीक्षाएं ली। चार साल पहले पत्नी की सड़क हादसे में मौत हो गईं। इस घटना उन्हें काफी विचलित कर दिया। अपने बेटे- बेटी के साथ वे अपने गांव टींट में रहकर ही स्कूल को बेहतर बनाने में जुटे रहे। काफी समय से उनके साथ रहकर उनकी वर्क स्टाइल को बखूबी समझने वाले राजकीय मिडिल स्कूल पाडला के मुखिया सुरेंद्र गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने अपनी सर्विस में ऐसे समर्पित शिक्षक को कभी नहीं देखा। ऐसे विरले प्राचार्य देखने को मिलते हैं जो स्कूल संभालने के साथ साथ बच्चों को पढ़ाने में भी आगे रहते थे। यह शख्स हमारे सरकारी शिक्षा सिस्टम् में एक प्रयोगशाला की तरह था जो हर समय कुछ ना कुछ बेहतर करने की जिद में धुना रहता था। जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा की सामग्री दिलाने की बात हो या अन्य कोई जरूरत हमेंशा आगे रहता। स्कूल दाखिला के समय बच्चों को अपने खर्चे से पुस्तकें दिलाता था। यहीं पुस्तकें अगले साल अन्य विद्यार्थी के काम आती थी। सही मायनों में वे ऐसे गुरु थे जिन्होंने सरकारी शिक्षा के स्तर को सुगंध की तरह फैलाए रखा। उनकी  कमी इसलिए पूरी नहीं हो सकती क्योंकि वे सही अर्थों में हर समय गुरु की भूमिका में नजर आते थे। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने हार्ट का आप्रेशन कराया था। डॉक्टर्स आराम की सलाह देते थे लेकिन वे छुट्‌टी में भी बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में ही डटे रहते थे। पिछले दिनों छुट्‌टी में हम उनसे मिलने स्कूल गए तो उन्होंने चार कक्षा के बोर्ड को रंगीन चॉक से साइंस के विषय से भर रखा था। बच्चे आने वाले थे। एक ऐसा प्राचार्य जिसके हाथ में हमेशा चॉक मिलता था ऐसे समर्पित गुरु को नमन..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *