हरियाणा की राजनीति में इस नेता की चर्चा करना जरूरी है

हरियाणा की राजनीति में पारले जी की तरह है अशोक तंवर 


–  राजनीति के शतरंज में सीधे राजा को चुनौती देता रहा यह नेता


 रणघोष खास. सुभाष चौधरी

  हरियाणा राजनीति में ऐसा चेहरा जिसका अंदाज उस पारले जी बिस्कुट की तरह है जिसकी बाजार में डिमांड हमेशा बनी रही रहती है। यह बिस्कुट झोपड़ी में रहने वाले परिवार की प्लेट में भी नजर आएगा तो  संपन्न लोगो की टेबल पर अलग अंदाज में दिखेगा। बाजार में कई तरह के उतार चढ़ाव आते रहे पारले जी अपना मिजाज नहीं बदला।

हम बात कर रहे हैं अशोक तंवर की। वर्तमान में वे आम आदमी पार्टी हरियाणा में चुनाव कैंपेन कमेटी चेयरमैन की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। पारलेजी ओर तंवर में काफी समानता है। इस बिस्कुट ने अपना स्वाद नहीं बदला तो इस नेता ने अपना मिजाज। महंगाई का दबाव आया तो पारलेजी ने वजन कम कर लिया लेकिन रेट आम आदमी की हैसियत में रहे  ताकि मार्केट वैल्यू बनी रहे। इसी तरह कांग्रेस हाईकमान ने पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट बांटते समय तंवर की अनदेखी की तो उसने तुरंत जगह बदल ली लेकिन जनता में अपनी मौजूदगी को पहले की तरह बनाए रखा। पारलेजी हर छोटी बड़ी  दुकान पर आसानी से मिल जाता है उसी तरह यह नेता भी एक आवाज में अपने छोटे बड़े समर्थकों के बीच हर समय नजर आता है।  

 रेवाड़ी में अपने अजीज मित्र माडल टाउन निवासी नवीन अरोड़ा के घर पर रणघोष से बातचीत में 47 साल के इस नेता ने प्रदेश ओर देश की राजनीति पर खुलकर चर्चा की। तंवर ने पहली बार साफ किया उन्होंने कांग्रेस हाईकमान की कमजोरियत की वजह से छोड़ी ना की पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा से चलते रहे टकराव के कारण। भाजपा के बारे में कहा की बेशक वह अपने एजेंडे में कामयाब नजर आ रही है लेकिन इसकी कीमत प्रत्येक भारतीय को चुकानी पड़ रही है । 2024 के चुनाव में उनका होमवर्क तैयार है। इसका खुलासा नहीं करेंगे। इतना दावा है कि वे सत्ता में भागीदार रहेंगे। किस तौर तरीकों में रहेंगे यह अभी नहीं बताएंगे।  लोकसभा- विधानसभा चुनाव साथ भी हो सकते हैं। जेजेपी का साथ लेकर भाजपा चुनाव में नहीं उतरेगी। डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की स्थिति बलि के बकरे जैसी रहेगी। हुडडा से उनका राजनीति टकराव जारी है। उन्होंने पिछला चुनाव भाजपा से मिलकर हरवाया। आने वाले दिनों में आप जन यात्रा निकाल रही है।    

  राजनीति के शतरंज में सीधे राजा को चुनौती देता रहा यह नेता

अशोक तंवर की राजनीति का बायाडोटा शुरूआत से शानदार रहा है। वे राजनीति की शतरंज में सीधे राजा को चुनौती देते रहे हैं। कांग्रेस में हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष रहकर तवंर ने सबसे ताकतवर नेता एवं 10 साल सीएम रह चुके भूपेंद्र सिंह हुडडा से सीधे लड़ाई लड़ी। उनके विरोधी उसे गलती से संगठन का पदाधिकारी समझ बैठे जबकि तंवर अपने व्यवहार, कुशल वक्ता की बदौलत हरियाणा में कम ज्यादा अपनी जमीन तैयार कर चुका था। तंवर प्रदेश के ऐसे दलित नेता है जिसकी 36 बिरादरी में सीधी पकड़ है।  झज्जर में जन्में, सिरसा लोकसभा सीट से 2009 में कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने तंवर का युवाओं में आज भी सीधा असर है। इसलिए किसी भी जिले में 24 घंटे की कॉल पर जलसा कर देते हैं।  हाजिर जवाब उसके शानदार नेता होने का अहसास करा देता है। मीडिया में उनके चुटीले अंदाजों को अच्छी खासी सुर्खियां मिलती है।  कांग्रेस यूथ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर तंवर ने कांग्रेस में छात्र राजनीति को इतना मजबूत कर दिया था कि भाजपा को भी अपनी छात्र राजनीति रणनीति को बदलना पड़ा। कांग्रेस में जब तक अशोक तंवर रहे गांधी परिवार से उनकी नजदीकियां रही। हुडडा से जबरदस्त टकराव के चलते कांग्रेस छोड़ने  के बाद उसे  वापस लाने के  लिए गांधी परिवार ने काफी प्रयास किए लेकिन हुडडा के प्रभाव व बदलते राजनीतिक हालात में दूरियां बनती चली गईं। राजनीति जानकारों की माने तो 2019 के चुनाव में अगर तंवर कांग्रेस में पूरी तरह तालमेल के साथ सक्रिय होते तो राजनीति का गणित दूसरा ही होता। कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई की वजह से भाजपा एवं अन्य दलों को सीधा फायदा हुआ। इस चुनाव में जेजेपी का समर्थन कर तंवर ने भाजपा व कांग्रेस को कुछ सीटों पर सीधा नुकसान पहुंचाया। उधर आप के लिए हरियाणा में अशोक तंवर एक बड़ा और मजबूत चेहरा है। आप के मुखिया एवं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल यह बखूबी जानते हैं कि तंवर में वह तमाम खुबियां है जो जमीनी स्तर के नेता में होती है। इसलिए उन्हें 2024 चुनाव की तैयारी के मददेनजर चुनाव कैंपेन कमेटी को चेयरमैन बनाया । जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है इस नेता की डिमांड विशेष तौर से कांग्रेस में ज्यादा शोर मचाने लगी है।  कुल मिलाकर अशोक तंवर हरियाणा की राजनीति में ऐसे नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं जो छोटे छोटे टुकड़ों में राजनीति का मिजाज बदलने की क्षमता रखते हैं। 2019 के चुनाव में कांग्रेस का सत्ता से कुछ कदम दूर रह जाना और  जेजेपी में जान आ जाना  यह तंवर की मौजूदगी का असर था।

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