गांव डहीना के नवजीत की कहानी हर किसी को पढ़नी चाहिए

बचपन में खुब दौड़ा, जिम्मेदारियों ने रोक लिया, मौका मिलते ही मारी छंलाग, बटोर लिए 20 से ज्यादा नेशनल- स्टेट मैडल, अब लक्ष्य वर्ल्ड चैंपियनशिप पर


रणघोष खास.  डहीना की कलम से


जिले के सबसे बड़े गांवों में शामिल डहीना का 42 साल के नवजीत की कहानी हर किसी को पढ़नी चाहिए। वह ऐसा किरदार है जो बचपन से लेकर अभी तक अपने अंदर की बैचेनी को प्रयोग के तोर पर इस्तेमाल करता आ रहा है।  बचपन में वह सबसे तेज दौड़ने वाला खिलाड़ी बनना चाहता था। माहौल ऐसा नहीं था। परिवार ने उसके लिए कुछ ओर ही सपने देखे हुए थे। नवजीत ने दिल्ली में कार्यरत स्वास्थ्य अधिकारी पिता दलजीत यादव एवं माता प्राध्यापक रविबाला की बात मानी। साथ ही अपने अंदर के खिलाड़ी को कुछ समय के लिए शांत कर लिया। दौड़ना उसका जुनुन था। गांव के सरकारी स्कूल से 10 वीं करने के बाद वह इंजीनियर बनने के लिए महाराष्ट्र चला गया। वहां उसका मन नहीं लगा और वापस झज्जर के पोलीटैक्नीक कॉलेज में दाखिला ले लिया वह भी ऐसा विषय चुना जिस पर आमतोर पर किसी कोई दिलचस्पी नहीं होती। टाइल्स से जुड़ा कुम्हारी कला का कोर्स में पढ़ाई की। वह कॉलेज में भी हर साल तेज दौड़ने वाला खिलाड़ी बना। पढ़ाई को करने के बाद नवजीत ने बहादुरगढ़ की सोमाणी टाइल्स एवं अंततराज टाइल्स कंपनी में नौकरी की। इसी दौरान उसकी शिक्षिका कविता से शादी हो गईं। वह अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाना चाहता था। इसलिए नौकरी छोड़ गोपाल देव चौक स्थित रेवाड़ी में भाई टाइल्स के नाम से व्यवसाय शुरू कर दिया। उसने पांच साल की होते ही अपनी बेटी राशि को खेतों की पंगड्‌डी पर दौड़ाना शुरू कर दिया। आगे चलकर राशि का देश के सबसे टॉप राई इंटरनेशनल स्पोट्रर्स स्कूल में दाखिला हो गया। राशि ने अपने पिता के अधूरे सपनों को उड़ान दी और वह आईपीएससी में ऑल इंडिया लेवल पर दो बार सबसे तेज दौड़ने वाली खिलाड़ी बनी। नवजीत के दादा जगजीत सिंह स्वतंत्रता सेनानी व ताऊ कर्नल जयनारायण सिंह थे। इसलिए उसने अपने बेटे युगजीत को भारतीय सेना अधिकारी बनाने के लिए मेहनत की।

ऑल इंडिया लेवल पर परीक्षा क्लीयर कर उसका सैनिक स्कूल रेवाड़ी में दाखिला हो गया। यहां से पढ़ाई करते हुए युगजीत ने  एनडीए की लिखित परीक्षा भी पास की। स्कूल में पढ़ाई करते हुए युगजीत ने स्विमिंग, जैवलिंग थ्रो एवं हार्स राइडिंग में मैडल बटोरे। बच्चों को बेहतर दिशा मिलने के बाद नवजीत फिर मैदान में उतर आया। 35 साल होने के  बाद खिलाड़ी सीनियर गेम्स में ही भाग ले सकता है। नवजीत ने पहले गांव में बाबा जिंदा क्लब खोला जिसका मकसद युवाओं को बुरी आदतों से दूर खेलों के प्रति रूझान पैदा करना था। क्लब ने क्षेत्रीय खेल कूद प्रतियोगिता शुरू की। 27 से ज्यादा टूर्नामेंट कराए। उसकी मुलाकात 60 साल पार कर चुके मगन सिंह चौहान, रामदत, देशराज सिंह चौहान, चांद सिंह समेत अनेक दौड़ धावकों से हुई जिनके हौसले और लगन को देखकर नवजीत में अचानक दौड़ने की फिर आग पैदा हो गईं। वह 39 साल की उम्र में बिजनेस संभालते हुए उनके साथ देश- विदेश में होने वाली राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगा। अभी तक वह पांच नेशनल मैडल, 12 स्टेट स्वर्ण पदक समेत 20 से ज्यादा मैडल हासिल कर चुका है। इतना ही नहीं मलेशिया में हुई एशियाड प्रतियोगिता में उसका मैरिट सूची में नाम दर्ज हुआ। नवजीत का अब लक्ष्य वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेकर देश के नाम का डंका बजवाना है। इसलिए वह रोज अल सुबह उठकर अपनी प्रेक्टिस करता है। उसके बाद अपना व्यवसाय संभालता है। यहां गौर करने लायक बात यह है कि राज्य सरकार के खेल युवा कार्यक्रम विभाग को उसकी उपलब्धियों पर नाज है लेकिन सम्मान और मदद के नाम पर देने को कुछ नहीं है। नवजीत का कहना है कि देश में चौतरफा खेल प्रतिभाएं बिखरी पड़ी हैं वह समय पर आर्थिक अभाव एवं मार्गदर्शन नहीं मिलने से दम तोड़ देती है। इस खिलाड़ी का मानना है कि छोटे एवं बड़े स्तर पर होने वाली राजनीति भी खेल में वायरस बनकर उसे वहीं खत्म कर देती है। वह कभी बार उपेक्षा के चलते आहत भी हुआ लेकिन अपने अंदर छिपे इरादों को कमजोर नहीं होने दिया। अब उसका एक ही लक्ष्य है वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए मैडल लाना है।

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