विशेष आलेख: सरकार ने एक हाथ देकर, दूसरे हाथ सारा सौदा वापस ले लिया

WhatsApp Image 2020-11-07 at 17.44.01 रणघोष खास. एडवोकेट हेमंत यादव की कलम से

..देखा जाए तो 67% वोट भी बहुत ज्यादा होते है, बस यही पर ऐसा लगता है कि सरकार ने एक हाथ देकर, दूसरे हाथ सारा सौदा वापस ले लिया। मेरे एक बात समझ नही आई कि जब शुरू में शिकायत 33% को ही करनी हैं, और इस कहानी की शुरुआत भी गांव के 33% असहमत लोगो से ही शुरू हुई, तो इस बिल में सरपंच को हटाने का आखिरी निर्णय सरकार ने गांव के सिर्फ उन 33% लोगो की बजाए, 67% लोगो के हाथ मे क्यों दे दिया?? .ये तो ऐसे हो गया जैसे सीधा सीधा यू कह दीजिए कि गांव के 33% की बजाए, गांव के 67% लोग सरपंच से खुश नही होंगे, तो ही सरपंच को हटाया जा सकता है। सरकार ने शुरू में 33% का अंक प्रतिशत दिखा कर इस बिल को लुभावना और अच्छा बिल दिखाने की कोशिश की है, परंतु सच्चाई तो इसके विपरीत 67% लोगो के हाथ मे है, सही मायने में तो।एक और बात, सरपंच को हटाने की प्रक्रिया में भी खामियां है, जो समय के साथ नज़र आ जाएंगी।

इस पूरी प्रक्रिया में सरकार ने कही न कही 2 बार वोटिंग को महत्व दिया है, पहली बार जो 33% असहमत लोग शिकायत (प्रस्ताव) देंगे, वो उन 33% लोगो की तो वोटिंग ही मान लीजिए सरपंच के खिलाफ, और दूसरी बार तो 67% लोगों वाली वोटिंग होनी ही है फिर से। इस पूरी प्रक्रिया में जो समय लगेगा, उसमे भी सरपंच को कही न कही सांठ गांठ करके, रुसे हुए लोगों को मनाने का मौका मिल जाएगा, जिसका लाभ उसको दूसरी 67% वाली वोटिंग में मिल जाएगा। असल मे ये दूसरी बार 67% वाली वोटिंग करवाने को, इस प्रक्रिया में शामिल करना ही इस सारे बिल का तोड़ है। देखिए आपको ये लग रहा होगा कि जो 33% लोग शुरू में शिकायत देंगे, वो सारे लोग दूसरी बार 67% वाली वोटिंग में भी सरपंच के खिलाफ वोटिंग करेंगे। जी नही ऐसा नही है, आप गलत है।

बुरे से बुरा उदाहरण लेते है। मान कर चलिए कि शुरूआत में ही गांव के 67% लोगों ने सरपंच की शिकायत दी (जबकि ऐसा संभव होगा नही साधारण स्थिति में कि किसी गांव के 67% लोग असहमत हो अपने ही द्वारा चुने गए सरपंच से, क्योंकि 67% लोग असहमत होते तो, वो व्यक्ति सरपंच ही नही बनता …तो असल मे तो 67% से कम लोग ही असहमति में शिकायत देंगे सरपंच के खिलाफ ….मैं ही 67% आंकड़ा ज़्यादा से ज्यादा मान कर चल रहा हूँ)। अब जब दुबारा 67% वाली वोटिंग होगी, तब तक सरपंच उन 67% के आधे या 10 या 20% असहमत लोगों को तो मना चुका होगा साम दाम दंड भेद लगा कर। यानी कि दूसरी 67% वाली वोटिंग में सरपंच के खिलाफ मुश्किल से 33 से 55% वोटिंग ही होगी और अंततः, सरपंच का बाल भी बांका नही होगा। अब आपको लगेगा की सरपंच के खिलाफ दूसरी वोटिंग में गांव से कुछ नए लोग भी तो शामिल हो सकते है, जो शुरुआत में 33% वाली वोटिंग में सरपंच के खिलाफ शिकायत देने वालो में नही थे। हां, आप बिलकुल ठीक सोच रहे है, परंतु दूसरी 67% वाली वोटिंग के समय, नए लोगों के बढ़ने की संख्या फिर भी कम ही होगी, और 33% वाली वोटिंग में शामिल लोगों के घटने की संख्या ज्यादा होगी। मतलब दूसरी वोटिंग के समय, नए लोग (जो पहली वोटिंग के समय सरपंच के खिलाफ नही थे) कम बढ़ेंगे, और पुराने लोग, जो सरपंच के खिलाफ पहली वोटिंग में शामिल थे, वो ज्यादा घटेंगे, क्योंकि जितने लोगों को सरपंच के खिलाफ खड़ा होना था, वो पहली 33% वाली वोटिंग में खड़े हो चुके होंगे, और दूसरी 67% वाली वोटिंग से पहले, सरपंच को गांव में कितने लोग मनाने है, ये आंकड़ा (संख्या) और नाम सरपंच को दूसरी वोटिंग से पहले पता होंगे, जिसमे वो अपने पद को बचाने के लिए मेन सरपंची के चुनाव से भी ज्यादा जान फूंक देगा। और इस तरह, इस बिल के होते हुए भी, सरपंच अपने पद पर बना रह जायेगा।

“एक परिस्थिति में तो ये बिल सरपंच के लिए आफत बन सकता है, जब गांव के 67% से भी ज्यादा लोग शुरूआती वोटिंग से ही सरपंच के कामकाज की वजह से असहमत हो, और वो सब दूसरी 67% वाली वोटिंग तक अपने विचार पर अडिग रहें”, पर अफसोस, भारत मे जनता चीज़ें बड़ी जल्दी भूल जाती है। निष्कर्ष: सरकार और जनता इस बिल के आने से खुश, और सरपंच इस बिल की खामियों की वजह से खुश। सब राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी

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