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यहां हैं दो-दो किलो के हजारों चमगादड़, ग्रामीणों को नहीं सताता कोरोना संक्रमण का भय


रणघोष खास. नवीन कुमार मिश्र


आपने कौवे या उनसे कुछ बड़े आकार के चमगादड़ों को आसमान में चील की तरह उड़ते को देखा है? झारखंड की राजधानी रांची से कोई 130-35 किलोमीटर दूर। हजारीबाग जिला के सरैया गांव में ये दिख जायेंगे। दो-चार नहीं हजारों की संख्‍या में, पेड़ों पर लटके हुए। जब कोरोना संक्रमण ( कोविड 19) की शुरुआत हुई तो चीन के लैब, मांस मंडी पर शक गया। चमगादड़ों को विशेष रूप से शक की नजर से देखा जाने लगा। वही चमगादड़ जो पुरानी हवेलियों, मंदिरों, मस्जिदों और पेड़ों के कोटरों में अपना ठिकाना बनाकर रहते हैं। गौरैया के आकार वाले चमगादड़। मगर झारखंड में हजारीबाग-पटना रोड पर ईटखोरी मोड़़ से कोई सात-आठ किलोमीटर भीतर सरैया गांव पहुंचेंगे तो पेड़ों पर बड़े आकार के ये चमगादड़ जिन्‍हें बादूर कहते हैं पेड़ों पर लटकते, आसमान में उड़़ते हुए नजर आ जायेंगे। कोई दो-चार सौ मीटर के दायरे में चंद पेड़ों पर उनका ठिकाना है। कोरोना के कारण चमगादड़ों से लोग भयभीत हुए मगर इस गांव के लोग बादुरों को लेकर विचलित नहीं हुए।इसी गांव के उपेंद्र पाठक बताते हैं कि अमूमन बादुर नियमित अंतराल पर अपना ठौर बदलते हैं मगर यहां गांव की सीमा पर चंद पेड़ों पर इनका पड़ाव है। कोई एक सौ वर्षों से। झारखण्‍ड में भी ये कम स्‍थानों पर ही दिखते हैं। इनके इनके संरक्षण की भी चिंता रहती है। फल, कीड़े आदि खाकर जीवन यापन करते हैं। जब गर्मी बढ़ती है बादुर संख्‍या में मरने लगते हैं। बचाने के लिए पेड़ों के तनों पर, नीचे मिट्टी के घड़ों में पानी रख दिया जात है। बादुर भी छाया की तलाश में पेड़ों की फुनगी छोड़ जमीन से कम दूरी पर आ जाते हैं। मान्‍यता है कि इसका मांस गठिया, अस्‍थमा और यौन शक्ति बढ़ाने में कारगर होता है। इसलिए लोग इसका शिकार करते हैा। कोई पांच साल पहले बीस-पच्‍चीस बादुरों को लोगों ने मार डाला था। विरोध करने पर उपेंद्रजी को एससी-एसटी उत्‍पीड़न एक्‍ट के तहत मुकदमा भी झेलना पड़ा था। इसी गांव के 85 साल में मोहन प्रसाद के अनुसार जब से आंख खुली तब से इन्‍हें देखते आये हैं। कोई पांच दशक पूर्व का किस्‍सा याद दिलाते हैं कि पद्मा नरेश के दो अंगरक्षक इनका शिकार करने आये थे तब उन्‍होंने उनके बंदूक जब्‍त कर लिये थे। कहते हैं कि बादुरों से हमें कोरोना को लेकर कोई चिंता नहीं। एक साल से कोरोना का प्रकोप है और जमाने से हजारों की संख्‍या में बादुर हैं मगर गांव का कोई व्‍यक्ति अभी तक शिकार नहीं हुआ। शिकार नहीं करने और प्रचुर भोजन के कारण यहां धनेश, हमिंग वर्ड सहित भांति-भांति के पक्षियों का निवास है।

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