माओवादियों से जवान को छुड़ाने वाले बस्तर के गांधी को आप जानते हैं?

रणघोष खास. पंकज चतुर्वेदी 

बीजापुर में रिहा किये गए जवान राकेश्वर सिंह मन्हास को सकुशल वापस लाने के पीछे जो शख्स हैं, वह हैं 92 साल के युवा और बस्तर के ताऊ जी धर्मपाल सैनी। उन्हें बस्तर का गांधी कहा जाता है। वे कोई 45 साल पहले बस्तर की लड़कियों से जुड़ी एक खबर पढ़ कर इतने विचलित हुए कि यहां आए और यहीं के हो गए। अपने गुरु विनोबा भावे से डोनेशन के रूप में 5 रुपये लेकर वे 1976 में बस्तर पहुंचे। वे पिछले 40 सालों से बस्तर में हैं। पद्मश्री धर्मपाल सैनी अब तक देश के लिए 2000 से ज्यादा एथलीट्स तैयार कर चुके हैं। सैनी मूलतः मध्य प्रदेश के धार जिले के रहने वाले हैं। 60 के दशक में सैनी ने एक अखबार में पढ़ा कि दशहरे के आयोजन से लौटते वक्त कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे। लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी। यह खबर उनके मन में घर कर गई। उन्होंने बस्तर की लड़कियों की हिम्मत और ताक़त को सकारात्मक बनाने की ठानी।कुछ सालों बाद अपने गुरु विनोबा भावे से बस्तर जाने की अनुमति मांगी लेकिन शुरू में वे नहीं माने। कई बार निवेदन करने के बाद विनोबा जी ने उन्हें 5 रुपये का एक नोट थमाया और इस शर्त के साथ अनुमति दी कि वे कम से कम दस साल बस्तर में ही रहेंगे। आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स ग्रेजुएट सैनी खुद भी एथलीट रहे हैं। वे बताते हैं कि जब वे बस्तर आए तो देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी 15 से 20 किलोमीटर आसानी से चल लेते हैं। बच्चों की इस क्षमता को खेल और शिक्षा में इस्तेमाल करने की उन्होंने योजना बनाई। उनके डिमरापाल स्थित आश्रम में हजारों की संख्या में मेडल्स और ट्रॉफियां रखी हुई हैं। आश्रम की छात्राएं अब तक स्पोर्ट्स में ईनाम के रूप में 30 लाख से ज्यादा की राशि जीत चुकी हैं। 

साक्षरता का ग्राफ बढ़ा

धर्मपाल जी को बालिका शिक्षा में बेहतर योगदान के लिए 1992 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। 2012 में ‘द वीक’ मैगजीन ने सैनी को मैन ऑफ द इयर चुना था। सैनी के बस्तर में आने के बाद साक्षरता का ग्राफ 10 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत के करीब पहुंच चुका है। उनके विद्यालय की बच्चियां एथलीट, डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं में जा चुकी हैं। सैनी जी 92 साल के हैं और उनसे राकेश्वर सिंह को सकुशल लाने का अनुरोध मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया था। खबर तो यह भी है कि वे कई महीने से नक्सलियों से शांति वार्ता के लिए प्रयास कर रहे थे। वार्ता के शुरू होने से पहले केंद्रीय बलों ने यह दबिश दी और वार्ता पटरी से नीचे उतर गई। 

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