संवेदना किसान के नाम, आक्रोश गोली चलाने वालों के खिलाफ, धिक्कार उपद्रव मचाने वाली राजनीति पर

रणघोष खास. देशभर से

 यदि आप खेतों से सैकड़ों मील दूर हैं और आपका हल आपकी कलम हैतब तो खेती आपको संसार का सबसे आसान काम लगेगी। आज संवेदना है किसानों के लिए। आज आक्रोश है सरकारों के लिए। आज घृणा है गोलियां चलाने और चलवाने वालों के लिए। आज धिक्कार है उपद्रव मचाने वालों के लिए। आज चीत्कार है उन बच्चों, बुजुर्गों, बीमारों के लिएजिन्हें मिलने वाला दूध ढोला गया, सब्जियां फेंकी गईं, फलों के ठेले पलटा दिए गए। महिलाओं का अपमान किया गया। आज क्रोध है, किसान हों या कोई और; जिन्होंने हिंसा फैलाई, वाहनों को फूंका, आग लगाई।  आज घिन है बिचौलियों से। आज भर्त्सना हैसत्ता या विपक्ष के प्रतिजो मौत में भी राजनीति का पर्यटन ढूंढ, विचरण करने पर आमादा हैं। कितनी बार हमें गिनाया जाएगा कि यदि देश के सारे किसानों के कर्जे माफ़ करने पड़ें, तो इतनो लाख करोड़ रु. लगेंगे। इस बात पर कड़ा विरोध इसलिए क्योंकि प्रत्येक बार यह छुपाया जाता रहा है कि बैंकों ने अमीरों के इससे भी ज्यादा लाख- करोड़ रुपए . बट्टे खाते में डाल रखे हैं। आज यह विषय नहीं है।प्रश्न उठा चुका है। किसानों में भड़के क्रोध का। जहां देखो वही किसानों के नाम पर राजनीति, हिंसा एवं उपद्रव के अलावा कुछ नजर नहीं आता। प्रति वर्ष कोई कोई सरकारी योजना, किसानों को लाभ पहुंचाने की अवश्य बनती है। बनती जा रही है। किन्तु फिर भी किसान त्रस्त, तबाह और टूटा हुआ क्यों है? बहुत सारे कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है संसार बदल गया, सरकारें बदल गईं, लोगों की ज़िंदगी बदल गईकिन्तु नहीं बदली किसानों की मूल स्थिति। आज भी किसान, अपनी पैदावार की कीमत स्वयं तय नहीं कर सकता। आज भी वह सरकार पर आश्रित है। आज भी वह समर्थन मूल्य बढ़ने की बाट जोहता रहता है। आज भी वह दलालों और व्यापारियों की मर्जी से चलने पर मजबूर है। खेती मात्र एक आशा है। विश्वास के बीज लेकर बोए जाते हैं। विश्वासघात की आशंका के साथ हल चलाए जाते हैं। ट्रैक्टर हो या टेक्नोलॉजी, फसल जल्दी नहीं सकती। धैर्य, खेती की आधारशिला है। इसी धैर्य को तोड़ने का, विश्वासघात करते हैं मौसम के रूप, बीजदवाइयोंखाद के दाम, कड़ी मेहनत से टूटते शरीर, मंडियों से खेतों की बढ़ती दूरी और बिचौलियों से घटता नियंत्रण। धैर्य की नींव पर, विश्वास के बीज डाल, आशा की खेती होती है और निर्ममता भरे बाजारों के सीने पर साहस के बोरे खाली किए जाते हैं। कौन बिचौलिये, कौनसी सरकारें यह जानना कभी भी चाहेंगी कि किसान के लिए तो उपजाने का धर्म संतान की तरह प्रिय होता है। बिचौलिये चाहे किसी रूप में होंउन पर कोई रंग नहीं चढ़ता। वे, जबकि सब रंगों पर हावी हो जाते हैं। आज सबसे बड़ी बात है किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ना। जिस दिन ऐसा हो गया कोई नंदीग्राम होगा, कोई सांगली, कोई मंदसौर। आज किसान का प्रमुख दुश्मन बन चुकी है : लागत। यदि अच्छी उपज ले आएतो बिचौलिये कहेंगे : मांग बहुत घट गई है। क्योंकि फसल ज्यादा हो गई। यदि उपज ही कम हुईतो बिचौलिये कहेंगे : ख़रीदेगा कौन? दाम ही इतने ज्यादा हैं! स्तरहीन बात है यह। किसानों को खेती एक संपूर्ण व्यापार बना कर दी जा सके, असंभव है। किन्तु बनानी ही होगी। किसान पहला और अंतिम उपभोक्ता माना जाता है। उसे फसल के अंतिम उपभोक्ता से सीधे जोड़ा जा सके, असंभव है। किन्तु जोड़ना ही होगा। वरना अन्नदाता, कष्टदाता ही तो बन जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *