कोरोना मरीजों को लूटने वाले निजी अस्पतालों पर रेड, परिजनों ने कहा यह कार्रवाई उनके लिए वैक्सीन

–    सबसे बड़ा सवाल क्या सरकारी अस्पताल दूध के धुले हैं..। 


गुरुवार को दैनिक रणघोष ने डंके की चोट में देशभर में  कोरोना के इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों में हो रही लूट का खेल उजागर किया था। दोपहर बाद रेवाड़ी जिले में उपायुक्त यशेंद्र सिंह के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग ने पहली बार बड़ी कार्रवाई करते हुए दो निजी अस्पतालों पर छापेमारी की। पहला अस्पताल शहर का कप्तान नंदलाल अस्पताल एवं दूसरा धारूहेड़ा स्थित मेडी होम अस्पताल है। रेड टीम में मेजिस्ट्रेट के तौर पर नायाब तहसीलदार निशा, डॉ. विशाल राव, डॉ. प्रदीप यादव, डॉ. सुरेश एवं पुलिस बल था। जिला प्रशासन की इस कार्रवाई से इलाज करा रहे कोरोन पीड़ित के परिजनों को कुछ समय के लिए राहत मिली है। उनका कहना है कि यह कार्रवाई उनके लिए वैक्सीन की तरह है।  हालांकि दो अस्पतालों पर कार्रवाई से इस महामारी को अच्छा खासा धंधा बना चुके निजी अस्पतालों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। वजह जब तक उनकी कोरोना काल में हुई इधर उधर की कमाई की ऑडिट ना हो जाए। मरीजों से क्या लिया जा रहा है और रिकार्ड में क्या दिखाया गया है। इस सच को लाना ही लूट के इस वायरस का असल इलाज होगा। ऑडिट की रिपोर्ट से पता चल जाएगा किस अस्पताल ने इस महामारी में मानवता और इंसानियत को सबसे आगे रखा और किसने पैसो की हवस में मर्यादा को तार तार कर दिया। छोटे- बड़े अस्पतालों पर लगातार कार्रवाई करना हालांकि आसान नहीं है। कई तरह के दबाव एवं रसूक साथ में लेन देन का खेल आने वाले समय में कार्रवाई को कागजों में ही पूरा कर देता है। कायदे से होना यह चाहिए कि जिस मरीज को लूटा गया उसकी रिकवरी कराई जाए लेकिन ऐसा कभी नहीं होता। स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत अधिकांश अधिकारियों के कामकाज  का रिपोर्ट कार्ड कितना स्वस्थ्य है। यह बताने की जरूरत नहीं है।  इसलिए सबसे बड़ा सवाल सरकारी अस्पतालों को लेकर भी है। इन अस्पतालों की दुर्गति के चलते इलाज के नाम पर लूटपाट का यह बाजार खड़ा हुआ है। यहां डयूटी करने वाले डॉक्टर्स एवं स्टाफ अगर ईमानदारी से अपने फर्ज को निभा ले तो शायद ही मरीज निजी अस्पतालों में इलाज के लिए जाए। इसलिए इस कार्रवाई से महज दो अस्पताल के बहाने निजी अस्पतालों को ही बलि का बकरा बनाना पूरी तरह तर्कसंगत नहीं होगा। जब भी छोटी बड़ी विपदाएं आई हैं हमारा सरकारी सिस्टम हमेशा फेल रहा है। ले देकर निजी सुविधाओं से हालातों को कंट्रोल करना पड़ा है। इसलिए प्रशासन को निजी अस्पताल पर एक्शन के साथ साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को भी कागजों की बजाय जमीनी स्तर पर जांचना होगा तभी बात बनेगी।    

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