देश की राजनीतिक दृष्टि को समझने के लिए इस लेख को जरूर पढ़े

मोदी के तौर-तरीकों से संघ में बेचैनी!


रणघोष खास.  डॉ. राकेश पाठक 

बीजेपी का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने के तौर-तरीकों को लेकर बेचैन है। कोरोना से निपटने में ब्रांड मोदी की नाकामी से संघ को अपने एजेंडे के दरकने की चिंता है लेकिन महाकाय मोदी के सामने संघ बेबस अनुभव कर रहा है। संघ को लेकर मोदी के रवैये का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोदी सात साल में न कभी संघ मुख्यालय गए और न वो सोशल मीडिया पर सर संघचालक मोहन भागवत को फॉलो करते हैं।

भागवत से सिर्फ़ एक बार मिले मोदी

नरेंद्र मोदी को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने दो साल पूरे होने वाले हैं। मोदी ने पहले कार्यकाल से ही संघ की अनदेखी शुरू कर दी थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद वे सिर्फ़ एक बार ही संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिले हैं। यह मुलाक़ात 4 सितंबर, 2015 को दिल्ली में मध्यांचल (मप्र भवन) में हुई थी। वहां संघ और बीजेपी की समन्वय समिति की बैठक में मोदी पहली बार शामिल हुए। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी अब तक चार बार नागपुर हो आये हैं लेकिन संघ मुख्यालय तो दूर ‘हेडगेवार स्मृति’ तक में मत्था टेकने तक नहीं गए।

मोदी और भागवत की सार्वजनिक भेंट अंतिम बार अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के समय हुई थी। यह एकमात्र अवसर था जब मोदी और भागवत एक साथ मंच पर थे। तब भी दोनों के बीच अलग से कोई चर्चा नहीं हुई। पूजन के समय औपचारिक राम जुहार ही हुई। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक़, संघ चाहता था कि अयोध्या में कार्यक्रम के बाद सर संघचालक से पृथक से भेंट का प्रस्ताव पीएमओ से आये। इस बारे में संकेत भी पहुंचाया गया कि संघ प्रमुख की ओर से ऐसा आग्रह किया जाना उचित नहीं होगा इसलिये प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से इस भेंट का आग्रह आना चाहिये। लेकिन इस पर पीएमओ ने गौर तक नहीं किया।

भागवत-संघ को फॉलो नहीं करते मोदी

संघ के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि मोदी की संघ के प्रति बेरुखी से नागपुर हैरान है। जिस संघ ने उन्हें पहले गुजरात की गद्दी दिलवाई और फिर दिल्ली का ताज पहनने में एड़ी-चोटी का जोर लगाया, उस संघ के सिरमौर तक को मोदी फॉलो नहीं करते। नरेंद्र मोदी अपने ट्विटर हैंडल पर ढाई हजार लोगों को फॉलो करते हैं लेकिन उसमें मोहन भागवत का नाम नहीं है।

हद तो ये है कि मोदी संघ के आधिकारिक ट्विटर हैंडल rss@org तक को फॉलो नहीं करते। संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा- आश्चर्य है कि मोदी जी तैमूर के नाना जैसे हैंडल तक को फॉलो करते हैं लेकिन संघ प्रमुख और संघ के अधिकृत हैंडल को फॉलो करना ज़रूरी नहीं समझते..!

संघ का प्रधानमंत्री से सीधे संवाद ख़त्म

अटल बिहारी वाजपेयी के युग में संघ और प्रधानमंत्री के बीच संघ के तत्कालीन सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी सेतु का काम करते थे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय या नीतिगत विषयों पर संघ की भावनाओं को सोनी सीधे प्रधानमंत्री को बताते थे। अब यह दायित्व सह सरकार्यवाह कृष्णगोपाल के पास है लेकिन व्यवस्था बदल गयी है। संघ को कह दिया गया है कि आप अपनी बात अमित भाई को बता दीजिये। अब संघ की बात कृष्णगोपाल प्रधानमंत्री के बजाय गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंचाते हैं। फिर वो प्रधानमंत्री को अवगत कराते हैं और वापसी इसी चैनल से प्रधानमंत्री अपने विचार संघ तक पहुंचाते हैं। यह चैनल भी गाहे-बगाहे ही संवाद का माध्यम बचा है। इसकी निरंतरता लगभग समाप्त है।

सरकार, प्रशासन को लापरवाह कहा

इन्हीं सब कारणों के चलते संघ को कट्टर हिंदुत्व के कोर एजेंडे पर चलते मोदी जितना पहली पारी में लुभा रहे थे उतना अब नहीं। ख़ासतौर पर महामारी के दौर में उनके तौर-तरीकों से संघ चिंतित है। संघ को चिंता हो रही है कि सरकार की नाकामी का खामियाजा अंततः संघ को न भुगतना पड़े। उसे अपना आधार खिसकने की चिंता खाये जा रही है। यही वजह है कि संघ प्रमुख ने दो दिन पहले अपनी बेचैनी का इज़हार भी कर दिया है। संघ के कार्यक्रम ‘पॉजिटिविटी अनलिमिटेड’ के समापन सत्र में मोहन भागवत ने साफ कहा- ‘पहली लहर के बाद सरकार, प्रशासन और जनता सब लापरवाह हो गए थे। इसी वजह से संकट इतना बड़ा हो गया है।’संघ सुप्रीमो का सरकार को लापरवाह बताना उसी बेचैनी का सबूत है जो मोदी के रवैये से उपजी है।

इतना तय है कि मोदी के ‘लार्जन देन लाइफ़’ कद से संघ भीतर ही भीतर बेचैन तो है लेकिन बेबस भी है। फिलहाल वह चाह कर भी मोदी का कुछ बिगाड़ने की स्थिति में नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *