राव अजीत सिंह हर लिहाज से मजबूत लेकिन…

राजनीति और परिवार में अपनों से हारता चला गया यह दिग्गज

अपने राजनीति उत्तराधिकारी बेटे राव अर्जुन सिंह को अपनी विरासत से भी बेदखल करने के फैसले ने रही सही कसर भी पूरी कर दी।


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह के पुत्र होने से अपनी पहचान की शुरूआत करने वाले राव अजीत सिंह का एक समय ऐसा भी था जब वो अपने मिजाज से  रेवाड़ी- महेंद्रगढ़ की राजनीति का गणित बनते और बिगाड़ते थे। उनके दिमाग में क्या चल रहा होता है और वे अचानक क्या बोलकर परिस्थितियों को एकाएक बदल दे यह किसी अहसास तक नहीं होता था। जो दिल में होता वहीं उनके दिमाग के रास्ते जुबान पर आ जाता। अपने समर्थकों के लिए वे किसी भी हद तक चले जाते हैं। इसलिए उनकी छवि बेबाक और दबंग नेता के तौर पर रही। वे राजनीति में अपने पिता और बड़े भाई केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की सोच के साथ चलने की बजाय अपने फैसलों को ताकत बनाकर आगे बढ़ते रहे हैं। हालांकि चुनाव में वे खुद सफल नहीं हो पाए लेकिन किसे हराना और जीत की दहलीज पर पहुंचाना है। इतनी ताकत वे जरूर जुटा चुके थे।  2019 के विधानसभा चुनाव में अटेली सीट से कांग्रेस की टिकट पर उतरे अर्जुन राव की तरकश में अपने दादा और पिता के दो मजबूत तीर थे। इसे दुर्भाग्य कहिए या मौजूदा राजनीति के बदलते हालात अर्जुन राव उसका बखूबी इस्तेमाल नहीं कर पाए। थोड़ा इतिहास में जाए तो बावल विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शकुंतला भगवाड़िया को जीताना हो या अपने दम पर रोडवेज बस कंडेक्टर रामेश्वर दयाल को विधायक बनाना । इसी तरह अटेली व पटौदी सीट पर भी वे अपने प्रभाव से राव अजीत सिंह उल्टफेर करते रहे है। राजनीति में शायद ही राव अजीत सिंह अपने बड़े भाई के साथ नजर आए हो। कुछ राजनीति जानकारों का यह भी कहना था कि यह रामपुरा हाउस की अपनी राजनीति वर्क स्टाइल है जिसमें वे पक्ष और विपक्ष की आवाज को अपने हिसाब से ताकत देते हैं। दक्षिण हरियाणा की राजनीति को चलाने वाले इस परिवार में एक समय ऐसा भी आया जब वर्ल्ड बैंक की नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरे अर्जुन राव राजनीति में सपाट दौड़ते जा रहे थे। अगर वे राजनीति ट्रेनिंग ताऊ देवीलाल परिवार के पड़पौते दुष्यंत चौटाला की तरह लेते तो दक्षिण हरियाणा में रामपुरा हाउस की जमीन से अभी तक अपनी पहचान को नया नाम दे चुके होते लेकिन यहां भी राव अजीत सिंह का परिवार मात खा गया। राव अजीत सिंह का लगातार अस्वस्थ्य रहना और पिछले चुनाव में अटेली विधानसभा से अर्जुन राव को मिली हार के बाद इस परिवार की परिस्थितियां  बिगड़ते हुए पारिवारिक लड़ाई की उस दहलीज पर पहुंच गईं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। दूसरे शब्दों में कहे तो इसके बाद अब कोई गुंजाइश नहीं बची है। राव अजीत सिंह स्वाभिमानी और अपने मिजाज से बहुत कम समझौता करते हैं। अगर करते तो शायद बेटे को सार्वजनिक तौर पर बेदखल करने का घोषणा पत्र जारी नहीं करते। यह एक ऐसे शख्स की राजनीति कहानी है जो खुद मैदान में हारता रहा लेकिन अपने सेनापतियों को विजयी श्री दिलाने में जरूर कामयाब रहा। जब उसने अपने बेटे पर दांव खेला तो यहां भी झटका खाते चले गए। रही सही कसर सार्वजनिक हुए इस झगड़े ने पूरी कर दी। कुल मिलाकर राव अजीत सिंह एक ऐसे किरदार बन चुके हैं जो हर लिहाज से मजबूत थे लेकिन राजनीति और परिवार में अपनों से लड़ते रहे..। राव की जिंदगी में यह एक ऐसा संघर्ष है जिसमें ना कोई हार या जीत नहीं है और ना ही कोई दिशा और दशा.।

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