पढ़िए रेवाड़ी जिला के गांव डहीना के एक ऐसे शख्स की कहानी जो देश की सबसे ताकतवर पीएम रही इंदिरा गांधी के अंगरक्षक रहे ओर फिर बाद में चारों वेदों के प्रंखड विद्धान संत बन गए
32 साल दिल्ली पुलिस में कड़क अधिकारी, इंदिरा गांधी के अंगरक्षक, से बन गए स्वामी इंद्रमुनि
रणघोष खास. नवजीत की कलम से
जीवन का मतलब क्या है। किसी तरह पेट भरना ओर दिन रात अपने परिवार की जिम्मेदारी एवं चिंता करते हुए एक दिन दुनिया से विदा हो जाना। क्या यही मनुष्य होने की परिभाषा है। इसी सवाल का सही जवाब जानने के लिए गांव डहीना का एक शख्स दिल्ली पुलिस में 32 साल की अधिकारी की सर्विस करने के बाद गृहस्थ जीवन छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलते हुए समाज को समझने ओर सेवा करने के मकसद से सनातम धर्म एवं चार वेदों के अध्ययन में लीन हो गया।
हम बात कर रहे हैं श्री इंद्र मुनिया आर्य की। जिनका जन्म 31 जनवरी 1929 गांव डहीना में हुआ। 14 मई 2021 में उन्होंने दुनिया से विदा ले ली। 92 साल की इस महान विभूति ने अपने जीवन को किस अंदाज और तौर तरीकों से जीया इसे समझना बहुत जरूरी है। श्रीइंद्र मुनि आर्य बेहद जरूरमंद परिवार से संबंध रखते थे। उनके पिता लीलाराम एवं माता श्योदेई दिन रात कड़ी मेहनत कर अपनी 9 संतानों के साथ परिवार का भरत पोषण कर रहे थे। श्रीइंद्र मुनि भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थे। परिवार के कड़े संघर्ष को उबारने के लिए वे बचपन में ही परिवार का काम में हाथ बंटाने लग गए थे। उनकी कद काठी मजबूत होने की वजह से उनके गुरुजनों ने उन्हें पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। 1949 में उन्हें रेलवे पुलिस की नौकरी मिल गईं। इसी दौरान उनकी शादी अंगूरी देवी से हो गईं। आगे चलकर बेटी संतान का सुख प्राप्त हुआ। जिसका नाम उन्होंने शकुंतला देवी रखा। चार साल जीआरपी रेलवे पुलिस की नौकरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस ज्वाइन कर लिया। यहां बतौर थानेदार रहे। डयूटी के दौरान कड़क मिजाज- अनुशासित अधिकारी को देखते हुए उन्हें स्पेशल तत्काल पीएम इंदिरा गांधी का अंगरक्षक लगाया गया। दिल्ली पुलिस की 32 साल की नौकरी करने के बाद 1986 में उन्होंने रिटायरमेंट ले ली। सर्विस के दौरान दिल्ली में लोधी कालोनी में रहते हुए उन्होंने अपने सभी भाई बहनों को पढ़ाया और कामयाब बनाकर उनके गृहस्थ जीवन की सभी जिम्मेदारियों को पूरा किया। उनकी पत्नी अंगूरी देवी बेहद शांत स्वभाव की महिला थी। वह हमेशा उनके साथ चटटान की तरह खड़ी रहती थी। उन्होंने अपनी बेटी की शादी एयरफोर्स में कार्यरत श्रीजय भगवान से की। श्रीइंद्र मुनिया आर्य स्वास्थ्य को लेकर हमेशा अलर्ट रहते थे। 1986 में जब वे रिटायरमेंट लेने लगे तो उनके सीनियर्स ने उसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि वे अब बाकी का जीवन समाज को समझने ओर सेवा करने में लगाना चाहते हैं। गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को उन्होंने पूरी तरह निभाया है। अधिकारियों को यह भरोसा नहीं था कि एक पुलिस अधिकारी इतनी आसानी से संतों का चोला पहनकर कैसे समाज को बदल सकता है। नौकरी छोड़ने के बाद जब इंद्रमनी आर्य ने सनातन धर्म एवं चारों वेदों को पढ़ना शुरू किया तो उनके साथ संस्कृत भाषा को लेकर चुनौती खड़ी हो गईं। उन्हें इस भाषा का कोई ज्ञान नहीं था। उन्होंने पहले संस्कृत की पुस्तकें खरीदी साथ में ही टेप रिकार्डर। साथ ही जीवन के तीन वसूल बना लिए। पहला राजनीति से दूर रहेंगे, जाति- धर्म की मानसिकता को पटकने नहीं देंगे ओर किसी भी जनमानस के लिए थाना तहसील या कोर्ट के कार्यों में शामिल नहीं होंगे।1986 से 1988 तक लगभग 2 साल में उन्हें संस्कृत भाषा का ज्ञान होने लगा। स्वामी शरणानंद महाराज व स्वामी सोमानंद महेंद्रगढ़ वाले के सानिध्य में अपना अध्यात्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय चिंतन एवं वैदिक जीवन शुरू किया। सन 1995 तक उन्होंने स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद की जीवनी के साथ चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त कर अपने आपको समाज में एक विद्वान स्तंभ के तौर पर स्थापित किया। सालों साल हवन यज्ञ कर लाखों आहुतियों से क्षेत्र में संस्कारों व वैदिक जीवन की सुगंध को फैलाते रहे। साथ ही सामाजिक संस्थाओं में जिम्मेदारी निभाते रहे। उनके योगदान की चौतरफा गूंज होने लगी। समाज के लिए एक आर्य प्रतिनिधि बनकर उन्होंने वेदों ,शास्त्रों के बारे में हमेशा बड़े आसान तरीके व सरल भाव से समझाया व बताया। इस वैदिक कार्य में उनकी पत्नी अंगूरी देवी ने उनका अच्छा साथ दिया। 2006 में उनका देहांत हो गया। पत्नी चले जाने के बाद उनकी देखरेख उनके भाई के बेटे कुलदीप व उनकी पत्नी मीना देवी ने की। उन्होंने वैदिक ज्ञान किताबों के जरिए आशीर्वाद के तौर पर भी फैलाया। किसी का जन्मदिन हो किसी का विवाह हो या किसी को बच्चा हुआ सभी को वे हवन कर आशीर्वाद के तौर पर किताबें व पुरस्कार भेंट करते आए। उनके पद चिन्हों पर अब सैकड़ों जनमानस चल रहे हैं। ऐसे महानायक कल्याणकारी आर्य समाजी देवात्मा को ग्राम वासियों की तरफ से शत-शत नमन। 14 मार्च 2021 को यह महानायक हमारे बीच नहीं रहे। वह हमारे लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। ओम शांति, ओम शांति, ओम..।