प्राकृतिक प्रकोप, मानव जाति के विनाश का संकेत है कोरोना महामारी

 कोरोना चाहे किसी देश की साजिश का परिणाम हो या प्राकृतिक प्रकोप, मानव जाति के विनाश का संकेत है कोरोना  महामारी। यह कहना है आकाशवाणी, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) की निदेशक तथा प्रख्यात साहित्यकार डॉ नीरजा माधव का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट, नारनौल (हरियाणा) द्वारा ‘कोरोना-केंद्रित हिंदी-साहित्य’ विषय पर आयोजित ‘वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय विचार-गोष्ठी’ में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य में अपने युग का संपूर्ण घटनाक्रम दर्ज होता है। अतः कोरोना-केद्रित साहित्य को कोरोना-काल का जीवंत दस्तावेज कहा जा सकता है। केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के सहायक निदेशक डॉ दीपक पांडेय ने, साहित्य को समाज का दर्पण बताते हुए, अपने अध्यक्षीय वक्तव्य स्पष्ट किया कि कोरोना-साहित्य कोरोना महामारी की विभीषिका, व्यवस्था की विसंगतियों और मानवीय सरोकारों की अभिव्यक्ति का साक्षी तो है ही, इस दौर का प्रामाणिक इतिहास भी है। इस अवसर पर शिक्षण प्रसारक मंडल, सोलापुर (महाराष्ट्र) के प्रोफेसर डॉ धन्यकुमार बिराजदार और गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद (गुजरात) की सहायक प्रोफेसर डॉ भानुबहन  वसावा ने, ‘कोरोना’ (डॉ नीरजा  माधव), ‘कितने धूमकेतु’ (डॉ उषा यादव), ‘लॉकडाउन डेज’ और ‘गंगा साक्षी है’ (कामना सिंह), ‘दृश्य से अदृश्य का सफर’ (सुधा ओम ढींगरा), ‘आधा जीवन, पूरा लॉकडाउन’ (कृष कुणाल), ‘लॉकडाउन’ (धन्यकुमार बिराजदार), ‘नई सुबह की ओर’ (डॉ मंजुला चौहान), ‘कोरोना विकराल’ (आचार्य भगवत दुबे), ‘बदल गए दस्तूर’ (डॉ रामनिवास ‘मानव’), ‘लॉकडाउन’ (डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल), ‘कोरोना के कवि’ (संपादक : संजय कुंदन), ‘खबरदार! बाहर कोरोना है’ (बलजीत सिंह) आदि कृतियों की चर्चा करते हुए, कोरोना-काल में रचित साहित्य के‌ महत्त्व और मूल्यवत्ता को रेखांकित किया। चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’ के प्रेरक सान्निध्य तथा डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में हुई इस विचार-गोष्ठी के द्वितीय सत्र में आधा दर्जन देशों के कवियों ने अपनी कोरोना-केंद्रित कविताओं का पाठ किया। ओस्लो (नॉर्वे) के वरिष्ठ कवि डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल ने भौतिक विकास को कोरोना का मूल कारण तथा  विनाश की सीढ़ी बताया-‘विकास का कोरोना-यह विकास की सीढ़ी बहुत ऊंचाई तक जाती है, पर वहां कोई नहीं रहता।’ वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) के कवि राकेश खंडेलवाल ने कोरोना के भय और आतंक का वर्णन कुछ इस प्रकार किया-‘खालीपन नि:शब्द घरों में अब आ करके पसर गया है। ऐसा लगता, कोई हादसा अभी यहां से गुजर गया है।’ स्टॉकहोम (स्वीडन) के कवि सुरेश पांडेय की कविता में विनाश के बाद नवसृजन का भाव भी दिखा-‘मेरा ही अस्तित्व यहां पर ठुकराता है मेरे तन को। इसीलिए अंकित करता हूं मैं निर्जन में नवसृजन को।’ विख्यात कवि-दोहाकार डॉ रामनिवास ‘मानव’ ने जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मानवता के दुश्मनों की भर्त्सना करते हुए लिखा-‘संकट‌ में भी नोंचते मानवता को गिद्ध। कोरोना के काल में पुनः हुआ यह सिद्ध।।’ वाक्वा (मॉरीशस) की कवयित्री कल्पना लालजी ने लोगों को कोरोना का रोना-धोना बंद करके आगे बढ़ने का संदेश दिया-‘बहुत रो चुके, बहुत खो चुके बीते इन दो वर्षों में। आओ, आगे देखें हम, पीछे मुड़ना बंद करें।’ कुछ ऐसा ही आशावादी स्वर सिंगापुर सिटी (सिंगापुर) की कवयित्री आराधना श्रीवास्तव का भी था, देखिए-‘हो कितनी भी रात अंधेरी, हम मंगल दीप जलाएंगे। फिर सोई आस जगायेंगे।’लगभग अढाई घंटों तक चली इस रोचक, महत्त्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक विचार-गोष्ठी में विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति और कंसलटेंट प्रो सिद्धार्थ रामलिंगम, नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमांडू की मुखपत्रिका ‘समकालीन साहित्य’ के संपादक डॉ पुष्करराज भट्ट, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली की सहायक निदेशक डॉ नूतन पांडेय, हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के पूर्व निदेशक डॉ पूर्णमल गौड़, पूर्व जिला बाल कल्याण अधिकारी विपिन शर्मा, ट्रस्टी डॉ कांता भारती और भारतीय साहित्य परिषद् तथा भारत विकास परिषद्, नारनौल के अध्यक्ष डाॅ ‌जितेंद्र भारद्वाज के अतिरिक्त चितवन नेपाल की रचना शर्मा, मोका (माॅरीशस) की अंजू गुरवरुन, बेंगलुरु (कर्नाटक) की अंकिता पाठक, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के सत्यवान सोनटके, गांधीनगर (गुजरात) के श्रीप्रकाश मिश्र और प्रियंका यादव, अहमदाबाद (गुजरात) के आनंद वसावा तथा आस्था वसावा, तलश्शेरी (केरल) के डाॅ पीए‌ रघुराम, शिमला (हिमाचल प्रदेश) की उज्ज्वल राठौड़, हिसार (हरियाणा) के डॉ राजेश शर्मा, अशोक वशिष्ठ, बलजीत सिंह और राजबाला ‘राज’ तथा डॉ राजेंद्र परमार, सुभाषचंद्र मिश्र, निर्मला बी, राकेशकुमार ओझा, सुषमा कुलकर्णी, प्रियंका कमानिया, डॉ प्रभास गोराई, मधु आनंदम, डॉ राजा राम, मल्ली बिराजदार, अभिषेककुमार पांडेय आदि की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।

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