मीडिया की खबरों में आईजीयू में सबकुछ बेहतर, हकीकत में महिला प्रोफेसर-छात्राएं खुद को मान रही असुरक्षित
रणघोष खास. सीधे आईजीयू के कैंपस से
16 जुलाई को इंदिरा गांधी यूनिवर्सिटी मीरपुर में बनी पुलिस चौकी में एक सहायक महिला प्रोफेसर की शिकायत पर एक महिला प्रोफेसर के बेटे खिलाफ अश्लील हरकतें करने एवं अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ। घटना एक दिन पहले 15 जुलाई की है। इसमें कितनी सच्चाई है यह निष्पक्ष जांच के बाद ही सामने आएगा। यह पहली ऐसी घटना होती तो इसे अनदेखा किया जा सकता है। ऐसा नहीं है। अलग अलग वजहों से इधर उधर की ऐसी बहुत से गंभीर मामले सामने आए दिन आ रहे हैं। अधिकांश में आईजीयू की मर्यादा का हवाला देकर या तो दबा दिया गया या रफा दफा कर दिया गया। कुछ संभल में नहीं आए तो वे आज कोर्ट या यूनिवर्सिटी की कमेटी में विचारधीन होकर तारीख में तब्दील हो रहे हैं। वर्तमान वाइस चांसलर प्रो. एसके गक्खड़ ने स्थिति को काफी हद तक कंट्रोल करने का प्रयास किया लेकिन वे भी एक साथ कई मोर्चे पर लड़ रहे हैं। आईजीयू कैंपस में देश का भविष्य तैयार करने वाले शिक्षकों की हालत यह है कि वे बेहतर शिक्षा का माहौल बनाना तो दूर कई धड़ों में बंट चुके हैं। राजनीति इस कदर हावी हो चुकी है कि जो काम करना भी चाहे तो उसे चौतरफा घेरकर अलग थलग कर दिया जाता है। स्थिति यह है कि हर माह लाखों रुपए का वेतन लेने वाले इन शिक्षकों में कोई यह गर्व एवं गौरव के साथ यह नहीं कह सकता कि उसकी शिक्षा- दीक्षा एवं कड़ी मेहनत से इतने बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण हुआ है। यहीं वजह है कि जब से इस विवि की स्थापना हुई है उसके बाद से आज तक शिक्षा के स्तर पर यह विवि राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर एक भी बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया। इतना जरूर है कि कोविड-19 हमलों के बाद से सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर विवि के शिक्षकों ने अलग अलग विषयों पर अपने ज्ञान का पिटारा इस कदर खोल दिया कि मानो उनकी वजह से विवि में शिक्षा के अंदर गजब की क्रांति का आगाज हो चुका है। मीडिया में आए दिन आईजीयू की कवेरज यह आभास कराती है कि सबकुछ बेहतर हो रहा है। जबकि जमीनी स्तर पर तस्वीर एकदम दूसरी नजर आ रही है। कैंपस का माहौल इस तरह का बन चुका है कि विद्यार्थी भी महज पढ़ाई के नाम पर हाजिरी या मौज मस्ती के लहजे से भ्रमण करते हुए नजर आते हैं। कुछ शिक्षक पढ़ाना भी चाहे तो वे पढ़ना नहीं चाहते। यहां छात्रों की राजनीति करने वाले संगठनों के एजेंडे में कभी कर्तव्य- अधिकार बराबर नजर नहीं आते। वे छोटी- छोटी मांगों एवं सुविधाओं के अधिकारों को लेकर इस कदर मीडिया सुर्खियां बटोरते हैं मानो उनकी पढ़ाई ओर कैरियर 10-15 सूत्रीय मांगों के पूरा नहीं होने की वजह से खत्म हो चुका है। आवाज उठाना उनका अधिकार है लेकिन कर्तव्य भी बराबर नजर आना चाहिए। ऐसे कितने विद्यार्थी जो यह दावा कर सके कि शिक्षकों पर पढ़ाने का दबाव बनाते हो, अलग अलग विषयों पर होने वाली डिबेट में बढ़चढ़ कर भाग लेते हो, सभी कक्षाओं में शत प्रतिशत हाजिरी को लेकर नियम कायदे को मजबूत करते हो। मजाल किसी शिक्षक ने हिम्मत दिखाई हो या किसी छात्र संगठन ने इस दिशा में अनूठी पहल की हो। हालात यह है कि आधे से ज्यादा विद्यार्थी अपने माता-पिता की खून पसीने की कमाई को फीस व अन्य तरह की सुख सुविधाओं पर पानी की तरह बहा रहे हैं। वहीं शिक्षक भी हर माह लाखों का वेतन लेकर इस अंदाज में खुद को प्रस्तुत कर रहे हैं मानो विवि में ज्वाइन करने के बाद उनका शेष जीवन सुरक्षित होकर परिवार ओर अपने खुद के बच्चों की बेहतर परिवेश के लिए बना हो। जिन बच्चों के नाम पर उन्हें यह वेतन मिल रहा है वे बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं यह अब उनकी प्राथमिकता नहीं है। इसलिए गुरु- शिष्य के पवित्र संबंधों में भी गिरावट का कोई आधार नहीं बचा है।
आइए कुछ बड़ी घटनाओं से जाने कैसे शर्मसार होती चली गईं आईजीयू
मीरपुर पुलिस चौकी में आईजीयू से जुड़ी पिछले पांच- सात सालों की शिकायतों पर गौर करें तो हैरानी होगी कि शिक्षा के इस मंदिर में किस कदर दुर्गंध फैली हुई है।
इस कैंपस में पीएचडी कर रही कुछ छात्राओं की यौन प्रताड़ना की शिकायतों पर अभी तक पूरी तरह कंट्रोल नहीं हुआ है। ऐसा भी नहीं है छात्राएं अपने निजी हित के लिए अपने चरित्र को दांव पर लगा देगी। इनकी शिकायतों पर निष्पक्ष जांच नहीं हुईं। वजह इसमें कुछ पुरुष प्रोफेसर के नाम सामने आ रहे थे। राजनीति एवं अन्य कारणों से इन्हें दबा दिया गया। कुछ कोर्ट में विचाराधीन है। कुछ प्रोफेसरों के द्वारा पढ़ाई के नाम पर विद्यार्थियों के एक धड़े से मिलकर राजनीति करने की शिकायतों का सिलसिला जारी है। गलत ढंग से प्रमोशन लेने की जांच में दोषी होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई है। दो से तीन सालों तक विद्यार्थियों को डिग्रियां तक नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं एक पूर्व रजिस्ट्रार जिसकी शैक्षणिक योग्यता का रिकार्ड ही गड़बड़ निकला, उस पर भी सच सामने नहीं आया। आईजीयू अपनी स्थापना से लेकर आज तक होने वाली भर्तियों को लेकर भी सबसे ज्यादा विवादों में रही है। नतीजा अनेक मामले हाईकोर्ट में चल रहे हैं। छात्र- शिक्षक के बीच मारपीट के मामले हुए वह भी समझौते की शक्ल में खत्म हो गए जिसकी वजह से गलत संगति के विद्यार्थियों को हौसला मिलता आ रहा है।
वीसी प्रो. एसके गक्खड़ कर रहे प्रयास लेकिन कहां तक लड़े
वीसी प्रो. एसके गक्खड़ की जानकारी में सबकुछ है लेकिन ढांचा इस कदर बिगड़ा हुआ है कि वे कहां कहां सिस्टम को ठीक करें। शिक्षकों पर सख्ताई करते हैं तो वे अलग अलग धड़ों में उन पर अप्रत्यक्ष तौर पर हमला कर देते हैं। विद्यार्थियों पर अनुशासन एक्शन लेते हैं तो छात्र संगठनों को शिक्षकों का एक धड़ा उन्हें उकसाने में लग जाता है। अलग अलग नियु्क्तियों को लेकर भी घमासान जारी है। चार से ज्यादा वीसी इस विवि में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। हर कोई किसी ना किसी विवादों में घिरा रहा। विवि में जितने भी शिक्षक और गैर शिक्षक नियुक्तियां हुई है उसमें आधे से ज्यादा राजनीति सिफारिशों एवं सेवा शुल्क के रास्ते के चलते चयनित हुए हैं। हालांकि इसका कोई सबूत या रिकार्ड नहीं होता इसलिए कार्रवाई कुछ नहीं होती जानते सभी हैं। कुल मिलाकर आईजीयू को जिस गर्व के साथ उदाहरण के तौर पर नजर आना चाहिए था उसे वहीं लोग ही शर्मसार कर रहे हैं जिनका घर का चूल्हा इसी विवि के अंतर्गत मिलने वाले वेतन से जलता है।