क्रेशर संचालकों को हाई कोर्ट में नहीं मिली राहत, याचिका रद्द

रणघोष अपडेट. नांगल चौधरी

पंजाब- हरियाणा हाई कोर्ट ने स्टोन क्रेशर संचालकों की एक याचिका को खारिज कर दिया है। जानकारी के मुताबिक एनजीटी के 3 दिसंबर 2020 के महेंद्रगढ़ ज़िले के 72 स्टोन क्रेशरों  के बंद करने के आदेश के लगभग 5 महीने बाद हरकत में आए हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने जब क्रेशर संचालकों को मई 2021 में क्रेशरों की एनओसी रद्द करने के पत्र जारी करने शुरू किए तो उसके बाद गाँव धोलेडा-बीगोपुर में स्थित कुछ 7 क्रेशरों के संचालक हड़बड़ी व आनन-फानन में एनओसी रद्द करने के हरियाणा प्रदूषण नियन्त्रण विभाग के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे थे।  एनजीटी सुप्रीम कोर्ट दोनों जगह मात खा चुके क्रेशर संचालक केवल मामले को लम्बित व लटकाए जाये रखने की मंशा के चलते 28 मई को हाईकोर्ट पहुंचे थे जिस पर अगली तारीख 11 जून 2021 मुकर्रर की गई थी और 11 जून 2021 को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एक बेंच ने 7 क्रेशरों को कुछ राहत देते हुए हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा एनओसी रद्द करने के पत्रों पर कुछ समय के लिए स्टे दे दिया जिसकी अगली तारीख 12 जुलाई 2021 मुकर्रर की गई थी! जिस पर हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली के मुताबिक यह मामला एक बेंच से स्थानांतरित होकर चीफ जस्टिस की बेंच में जा पहुंचा। चीफ जस्टिस रविशंकर झा व अरुण पल्ली की बेंच ने  सुनवाई करते हुए तेजपाल यादव के वकील के मजबूत तर्कों व साक्ष्यों के आधार पर क्रेशर संचालकों की याचिका को खारिज/डिस्मिस ही कर दिया। याचिकाकर्ता तेजपाल यादव के वकील को सुनने के बाद सरकारी वकील अंकुर मित्तल के समान तर्कों के चलते जस्टिस अरुण पल्ली व चीफ जस्टिस रविशंकर झा ने फैसला सुनाया कि हाई कोर्ट की एक जूनियर बेंच के द्वारा   हरियाणा प्रदूषण नियन्त्रण विभाग के एनओसी रद्द करने के पत्र पर जो 7 क्रेशरों कों कुछ राहत व स्टे दी गयी थी, वों स्टे हमेशा बरकरार रहने की बजाय सिर्फ 10 अगस्त 2021 तक जारी रहेगी, लेकिन हाईकोर्ट ने क्रेशर संचालकों कों कड़ी फटकार लगाते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी।  हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने आगे बोलते हुए अपने आदेश में कहा कि जब पूरा मामला एनजीटी के अंतर्गत चल रहा है तो इस प्रक्रिया में हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा व इसके आगे की सारी प्रक्रिया की सुनवाई एनजीटी ही करेगा।  हाई कोर्ट ने क्रेशर संचालकों कों कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इस पूरे मामले में आपको हाईकोर्ट आने के बजाय प्रथम अपीलीय अधिकारी या एनजीटी के समक्ष जाना चाहिए था!

क्या है मामला

महेंद्रगढ़ जिले व विशेष तौर पर नारनौल-नांगल चौधरी क्षेत्र के सैकड़ों स्टोन क्रेशर व इससे हो रहे पर्यावरण प्रदूषण व जन स्वास्थ्य हो रहे नुकसान के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर तेजपाल यादव ने 3 साल पहले एनजीटी का रुख अपनाया था और एनजीटी में एक लंबी लड़ाई लड़ी गई जिसमें 24 जुलाई 2019 को महेंद्रगढ़ जिले के 72 अवैध स्टोन क्रेशरों को तुरंत बंद करने के आदेश हुए थे। उसके बाद स्टोन क्रेशर संचालक 24 जुलाई 2019 के एनजीटी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे! सुप्रीम कोर्ट में भी सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर तेजपाल यादव की तरफ से मजबूत व प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण  ने पैरवी की और उनकी मजबूत पैरवी के चलते 2 नवंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट को यह मामला वापस एनजीटी को सौंपना पड़ा और एनजीटी में मामला वापस आने के बाद 3 दिसंबर 2020 को माननीय एनजीटी ने अपने 24 जुलाई 2019 के आदेश क़ो दोहराते हुए महेंद्रगढ़ जिले के 72 अवैध स्टोन क्रेशरों के बंद करने के आदेश दिए थे। साथ ही सभी संबंधित भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ हरियाणा के चीफ सेक्रेटरी को कार्रवाई के आदेश व दूरी मापदंड पर अवैध साबित हुए 72 स्टोन क्रेशरों के अलावा जिले के बाकी सभी स्टोन क्रेशरों के खिलाफ पर्यावरण प्रदूषण व वहन क्षमता संबंधित सभी पर्यावरणीय पहलुओं पर जांच के आदेश, व महेंद्रगढ़ जिले के सभी क्रेशर प्रभावित गांवों की स्वास्थ्य जांच के आदेश माननीय एनजीटी ने जिला प्रशासन व हरियाणा सरकार को दिए थे। लेकिन आदेश होने के काफी दिन बीत जाने के बाद जमीन पर कोई कार्यवाही जब नहीं होती दिखी तो तेजपाल यादव ने पुरानी राह आंदोलन की अपनाते हुए फिर से आंदोलन छेड़ दिया और उसी कड़ी में 12 अप्रैल 2021 को हरियाणा सरकार व जिला प्रशासन के खिलाफ एनजीटी के हुए आदेश को लागू कराने के लिए किया गया। नारनौल में हुए इस आंदोलन व विरोध प्रदर्शन में हजारों लोग उपस्थित थे जिसमें महिलाओं की भागीदारी भी एक बहुत बड़ी संख्या में थी!

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