भाजपा के अंदर अजब- गजब की राजनीति

मीडिया में दूरियां दिखाते हैं, दिल्ली-चंडीगढ़ जाकर मन की बात करते हैं


रणघोष खास. सुभाष चौधरी 

भाजपा रेवाड़ी की राजनीति भी इन दिनों अंदर- बाहर अजब गजब का चेहरा दिखा रही है। 19 जुलाई को भाजपा कार्यालय में हरको बैंक चेयरमैन अरविंद यादव के सम्मान में कार्यक्रम हुआ। अरविंद यादव को हाल ही में प्रदेश स्तरीय पंचायती राज चुनाव प्रबंधन समिति का सदस्य बनाया गया है। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह समर्थित पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने राजनीति के चलते दूरियां बनाईं। मीडिया के माध्यम से राव इंद्रजीत सिंह के पास यह मैसेज भी भेज दिया गया। लगे हाथ कार्यक्रम में नहीं जाने वालों को खास एवं समर्पित होने का प्रमाण पत्र भी मिल गया। क्या इतना कर देने से राव इंद्रजीत सिंह को अपने समर्थकों पर पूरी तरह से भरोसा कर लेना चाहिए। इस सवाल में छिपे सच को समझना बहुत जरूरी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार एवं पार्टी संगठन में महत्वूपर्ण पदों पर बैठे नेता- मंत्री अपनी राजनीति में अपने कुछ वसूलों को मजबूती से पकड़ कर रखते हैं इसलिए इसकी कीमत भी चुकाते हैं तो समय आने पर इसका फायदा भी मिलता है। इसी वजह से वे अपनी अलग पहचान रखते हैं। भाजपा में एक ऐसा धड़ा भी है जो दिखता कुछ ओर है ओर होता कुछ ओर..। कुछ पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता अरविंद यादव से रेवाड़ी मिलने में कतराते हैं लेकिन निजी काम के लिए चंडीगढ़ में मन की बात करते हुए नजर आते हैं। पार्टी में इन कार्यकर्ता, पदाधिकारियों का अपना निजी एजेंडा होता है जिसे पूरा करने के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली राजनीति को ज्यादा पंसद करते हैं। वे कभी राव इंद्रजीत सिंह का छाया का इस्तेमाल करते हुए नजर आएंगे तो मौका लगते ही अरविंद यादव के बढ़ते प्रभाव को भी नमस्कार करते हुए दिखेंगे। हालांकि कुछ चेहरे तो सार्वजनिक हो चुके हैं। इसलिए उनकी स्थिति ना इधर की ना उधर की बनी हुई है। कुछ माह पहले हुए रेवाड़ी नगर निकाय के हुए चुनाव पर गौर करिए। अरविंद यादव विशेष जिम्मेदारी के साथ नजर आए। आज स्थिति क्या है यह बताने की जरूरत नहीं है। जिसका मौका लगे फायदा उठाओ यह असली राजनीति है। कहने को बड़े नेता अलग अलग धड़ों की राजनीति करते हैं असल राजनीति ही पार्टी में बना एक ऐसा धड़ा करता है जो मौका लगते ही अलग अलग नावों पर सवारी करता नजर आता है। ऐसे कार्यकर्ताओं की राजनीति उस समय खतरे में पड़ जाती हैं जब दो बड़े धुर विरोधी नेता अचानक किसी एजेंडे के चलते एक सुर में नजर आते हैं। अक्सर राजनीति में ऐसा होता ही है। कांग्रेस से पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव की राजनीति हमेशा रामपुरा विरोधी रही है। एक समय ऐसा भी आया जब खुद की सरकार में तत्कालीन सीएम भूपेंद्र हुडडा के खिलाफ वे राव इंद्रजीत सिंह के साथ एक मंच सांझा करते नजर आए जबकि गांवों व शहरों में उनके समर्थकों की स्थिति यह थी कि अपने नेताओं के लिए उन्होंने आपसी बोलचाल एवं संबंध ही खत्म कर लिए थे। राजनीति में हर पल ऐसे घटनाक्रम होते रहते हैं जो पल झपकते ही दुश्मनी  को दोस्ती ओर दोस्ती को दुश्मनी में तब्दील करते रहते हैं। किसे पता था कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा- जेजेपी ने सबसे ज्यादा एक दूसरे को निशाने पर रखा। परिणाम आते ही एक एक दूसरे की ताकत बन गए। इसलिए शीर्ष नेताओं को चाहिए कि वे ऐसे कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों की पहचान रखे। वजह अब पहले वाले कार्यकर्ता अब राजनीतिक दलों में नहीं रहे जो वसूलों एवं जनहित की राजनीति को प्राथमिकता पर रखते है। अधिकांश का अपना निजी एजेंडा छिपा रहता है जो बाहर से तो मूल्यों एवं सरोकारों की तरह नजर आता है जबकि असलियत में उनका निजी मकसद छिपा होता है। ऐसे कार्यकर्ताओं के पास खोने को कुछ नहीं होता इसकी कीमत इन पर पूरी तरह भरोसा करने वाले शीर्ष नेताओं को चाहे अनचाहे चुकानी पड़ती है।

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