शहीद सम्मान समारोह कहीं राव इंद्रजीत सिंह के लिए एक नए बदलाव की शुरूआत तो नहीं..

भाजपा से मेल नहीं खा रही राव के मन की बात


पांच बार सांसद, चार बार विधायक बनकर राजनीति की प्रयोगशाला बन चुके राव के इरादे नेक नहीं लग रहे हैं। उनके तेवरों एवं अंदाज से यह साफ हो रहा है कि ने आने वाले दिनों में  दो तरह का नया प्रयोग कर सकते हैं। पहला दबाव का या फिर बदलाव का।


 रणघोष खास. प्रदीप नारायण 

केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में खुश है या बैचेन। इसे समझने के लिए पटौदा में शहीद सम्मान समारोह में उनके भाषण को दो से तीन बार सुनना पड़ेगा। उन्होंने मन की बात में जो कहा वह किसी भी लिहाज से भाजपा के मिजाज से मेल नहीं खा रही थी। पांच बार सांसद, चार बार विधायक बनकर राजनीति की प्रयोगशाला बन चुके राव के इरादे नेक नहीं लग रहे हैं। उनके तेवरों एवं अंदाज से यह साफ हो रहा है कि ने आने वाले दिनों में  दो तरह का नया प्रयोग कर सकते हैं। पहला दबाव का या फिर बदलाव का। राव के भाषण में नसीहत ज्यादा थी। इसलिए उन्होंने बिना नाम लिए हरियाणा भाजपा के उन इरादों की हैसियत बता दी जो पिछले चुनाव में 75 पार का नारा बनकर सड़कों पर दौड़ रही थी। बेटी को टिकट नहीं देने का मलाल पहली बार गुस्से की शक्ल में नजर आया। यहीं तेवर लगे हाथ बेटी आरती राव ने भी दिखा दिए। देर है अंधेर नहीं, परवाना हूं, शाम हूं शम्मा हूं, जलने के लिए हूं तैयार बात तो हो….। इन शब्दों से निकली आवाज यह बता रही है कि राव मानसिक ओर शारीरिक तोर पर अपनी राजनीति विरासत को बचाने ओर मजबूत करने के लिए अब खामोशी की राजनीति नहीं करेंगे। अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें अपने परिवार की राजनीति के इतिहास को दोहराने ओर बताने की जरूरत नहीं होती। राव के भाषण में पैराशूट शब्द का जन्म पिछले दिनों निकली केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव की जन आशीर्वाद यात्रा की वजह से हुआ। यहां राव यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा- कांग्रेस की वर्क स्टाइल एकदम अलग है। उनके पास आज भी कांग्रेस का तर्जुबा ज्यादा है इसलिए यहां वे जोश में बहुत कुछ ऐसा कह गए जो सीधे तौर पर भाजपा के दायरे को सीधी चुनौती थी। राव की राजनीति को समझना है तो उनके लहजे को पकड़ना होगा। जब जब वे बदलाव की दस्तक देते हैं पंडाल में मौजूद भीड़ को ही अपना सबकुछ मान लेते है नहीं तो सामान्य स्थिति में सरकार- पार्टी एवं सीनियर्स नेताओं की तारीफ करने में पीछे नहीं रहते। जिस जगह यह समारोह हुआ वह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का विधानसभा क्षेत्र है जहां से वे पिछले दो चुनाव लड़ चुके हैं। सोचिए यह समारोह महेंद्रगढ़- रेवाड़ी या गुरुग्राम में होता तो क्या धनखड़ की मौजूदगी होती। भाजपा भी यह बेहतर तरीके से समझती हैं कि दक्षिण हरियाणा में राव से बड़ा कोई नेता नहीं है। वह यह भी जानती है कि पीएम मोदी की बदौलत राव की राजनीति का ब्लड प्रेशर बेहतर चल रहा है। राव को भी पूरी तरह आभास है कि उनके दुश्मन विपक्ष से ज्यादा अपनी पार्टी में ज्यादा है। इसलिए वे यह कहना भी नहीं भूले कि अगर जिंदगी में दुश्मन नहीं बना पाया तो कुछ नहीं किया। रेवाड़ी सीट पर भाजपा जीतकर भी हार गईं जयचंदों को पार्टी ने सजा की बजाय ईनाम दे दिया। राव का कटाक्ष हरको बैंक चेयरमैन अरविंद यादव पर था जिसे प्रदेश भाजपा एवं सरकार ने पिछले कुछ माह से हर लिहाज से मजबूत करने का काम किया है। भाषण में राव ने अपने कांग्रेसी मित्र नटवर सिंह को याद किया। राव इस बात पर जोर देते रहे कि बेशक थोड़े दिन के लिए बनो जनता की ताकत से नेता बनो। ऐसा नहीं होने की वजह से         

भाजपा एवं नेता छोटे से क्षेत्र में सिमट कर रह गए हैँ। यहां राव साफ कर गए कि भाजपा में  अभी भी जमीनी नेताओं के चेहरे बहुत कम है। इसलिए उन्होंने लगे हाथ दो बात ऐसी भी कह डाली जो भाजपा के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर सकती है। पहली किसानों से बात करनी चाहिए यानि अभी तक राज्य एवं केंद्र सरकार ने जो भी प्रयास किए हैं उसमें अभी पूरी तरह ईमानदारी झलक नहीं आ रही है। दूसरा राव ने खुद  को जनता का सिपाही एवं फौजी का बेटा बताया। वे चाहते तो लगे हाथ भाजपा का कर्मठ कार्यकर्ता कहकर अपने भाषण में संतुलन ला सकते थे ऐसा उन्होंने नहीं किया। राव ने खुद को उम्र दराज घोषित करने से साफ इंकार करते हुए अपना एजेंडा क्लीयर कर दिया कि अगले चुनाव में पिता- पुत्री हर हाल में चुनाव लड़ेंगे यानि भाजपा या तो राव की ताकत की सामने झुक जाएगी या राव को भाजपा से जाना होगा। इसलिए उन्होंने पंडाल में युवाओं से कहा अपना इतिहास पढ़ो, समझो। तभी सही फैसला ले पाओंगे। समय बदल रहा है सोचो। क्या हम नसीबपुर(महेंद्रगढ़) की लड़ाई से ज्यादा पानीपत की भी लड़ेंगे। यानि राव अब मौजूदा हालात में नजर आ रहे जाट- नॉन जाट की राजनीति में अपने राजनीति कद को गुरुग्राम से बाहर निकलकर हरियाणा के पटल पर लाना  चाहते हैं। वे यह बताना चाहते हैं कि उनकी 40 साल की राजनीति एक दायरे में नहीं सिमटी है। राव का यह कहना मैने ईमान नहीं खोया है। अपनी ओर अपने साथियों की इज्जत के लिए वे कुछ भी करने के लिए तैयार है। वे जिस थाली में खाते हैं उसमें छेद नहीं करते। यह सभी शब्द राव के आक्रोश से जन्में हैं।  कुल मिलाकर राव ने चुनाव से तीन साल पहले ही अपनी राजनीति का होमवर्क शुरू कर दिया है। वे चुनाव की परीक्षा में फेल होंगे या पास यह समय बताएगा।

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