इंसानी खाल में हम भेड़िए- लोमड़ी बन गए, रोज एक दूसरे का कर रहे शिकार

सबसे बड़ा सवाल यही है कि लोगों के बीच से क्यों मरती जा रही है इंसानियत। क्या यह सवाल चारों तरफ एक क्रांति की तरह पैदा नहीं होना चाहिए। याद रखिए बेहतर बदलाव मानसिक- वैचारिक ओर सामाजिक क्रांति से आता है। एक दूसरे का इस्तेमाल, खून बहाकर नहीं..।


 रणघोष खास. प्रदीप नारायण


भेड़िए- लोमड़ी की कहानियां जरूर सुनी-पढ़ी होगी। भूल गए तो गुगल पर सर्च करिए इन जानवरों का इतिहास सामने आ जाएगा। उसके बाद इंसानी फिदरत पर गौर करिए। तीनों की तुलना करिए।  शरीर की बनावट, रहन- सहन, बोलचाल एकदम अलग मिलेगा लेकिन चरित्र, तौर तरीका, प्रवृति, सोच, मानसिकता, इरादे इस कदर आपस में मिलते नजर आएंगे मानो तीनों एक ही पूर्वज की संतान हो। सिलसिलेवार ढंग से तीनों के चरित्र को सामने रखते हैं। उसके बाद खुद से सवाल करिए कि हमारी इंसानी खाली में भेड़िए- लोमड़ी का स्वभाव हावी है या इंसानी जज्बात..।

भेड़िया: यह जानवर एक कुत्ते के रूप में जंगली जानवर है। एक समय में पूरे यूरेशिया, उत्तर अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में इनका दबदबा था। इंसानों की आबादी बढ़ने से इनका क्षेत्र बहुत कम हो गया। भेड़िये एक नर और एक मादा के परिवारों में रहते हैं जिसमें उनके बच्चे भी पलते हैं। यह भी देखा गया है के कभीकभी भेड़ियों के किसी परिवार के नरमादा किसी अन्य भेड़ियों के अनाथ बच्चों को भी शरण देकर उन्हें पालने लगते हैं। भेड़ियों का शिकार करने का तरीक़ा सामाजिक होता है। यह अकेले शिकार नहीं करता बल्कि गिरोह बनाकर अपने से कमजोर, शरीफ, किसी का बुरा नहीं करने वाले चरित्र के  हिरणगाय जैसे चरने वाले जानवरों पर हमला करते हैं। ये अपने से ताकतवर या बराबर वाले पर हमला करने का दुस्साहस नहीं करते। इंसानों की तरह इनकी भी बहादुर- शैतान जैसी अलग अलग प्रवृति होती हैं लेकिन शिकार करते समय सबकुछ भूल जाते हैं। इनका वजन भी इंसानों की तरह  50 से 55 किलोग्राम होता है। ये 105 से 160 सेमी लम्बे और 80 से 85 सेमी कन्धे तक ऊंचे होते हैं। 60 किमी प्रति घण्टे की रफ़्तार से कई दूर तक भाग सकते हैं। फर्क इतना है कि इनके चार पैर होते हैं इंसान के दो पैर दो हाथ।

 लोमड़ी:

लोमड़ी और अंगूर की कहानी जरूर सुनी होगी। उसे एक बेल में अंगूर लटके हुए नजर आए। उसके मुंह में पानी गया। लोमड़ी ने सोचा यदि वह अंगूर का पूरा गुच्छा ले लेती है तो दिनभर उसे खाने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। वह अंगूर को खाने के लिए लपकी, किंतु अंगूर बहुत ऊंचाई में लगे थे और वह उन तक नहीं पहुँच पा रही थी। हार कर एक जगह बैठ गई।उसने यह कह कर अपने मन को समझा लिया कि अंगूर खट्टे हैं इन्हें खाकर कोई फायदा नहीं है। अपने घर वापस चली गई। यानि जब जब कोई मूर्ख किसी वस्तु को प्राप्त नहीं कर पाता, तो अपनी कमजोरी छिपाने के लिए बहाना बनाता है और उस वस्तु को ही तुच्छ साबित करने की कोशिश करता है। इतना ही नहीं लोमड़ी रास्ते में आने जाने वाले जानवरों को भी यह कहती रही कि अंगूर दिखे तो मत खाना वे खट्‌टे हैं। पेट- दांत खराब कर देंगे।

इंसान:

वैसे तो  भोजन करना, नींद लेना, भयभीत होना तथा संतान उत्पत्ति करना, ये चार बातें इंसान- जानवरों में एक जैसी होती हैं बाकि दिनचर्या एकदम अलग है।  मनुष्य अपने दो पैरों का उपयोग करके घूमते हैं। इंसान भी सर्वाहारी होते हैं जिसका अर्थ है कि वे शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करने में सक्षम होते हैं। ये खुद का भोजन निर्मित करने में और उसे विभिन्न प्रकारों से बनाने में सक्षम होते हैं। इंसान में चीजों को जानने की जिज्ञासा होती है, जिससे वो अलग अलग उपकरण, प्रौद्योगिकी और विज्ञान का विकास करते है। इसलिए उसे पृथ्वी का सबसे समझदार प्राणी कहा गया है। इंसान अपने निजी जीवन को जीने की पूरी व्यवस्था खुद कर सकते हैं जबकि जानवरों में ऐसा कुछ नहीं है।

हमारा क्रिया कलाप भेड़िए- लोमड़ी की तरह बन गया

परिवार- समाज में हो रही घटनाए यह सोचने के लिए मजबूर कर रही हैं कि इंसान अपने ओर जानवर के अंतर को मिटाने में लगा हुआ है। कई बार तो वह. जानवर से भी खतरनाक नजर आता है जब आए दिन सुनते हैं कि छोटे- छोटे मासूम बच्चों को हवस का शिकार बनाया गया। गुरु की गरिमा, धर्म की आस्था, डॉक्टर्स की इंसानियत, देश को चलाने वालों का भरोसा सबकुछ तो दांव पर लग चुका है। एक इंसान को हम इंसान की श्रेणी में तभी रख सकते है जब उसके अंदर की इंसानियत जिंदा हो। एक दूसरे के दर्द समझे, उसके हर सुखदुख में काम आए , तभी जाकर उसको इंसान की श्रेणी में रखना जायज होगा। सबसे बड़ा सवाल यही है कि लोगों के बीच से क्यों मरती जा रही है इंसानियत। क्या यह सवाल चारों तरफ एक क्रांति की तरह पैदा नहीं होना चाहिए। याद रखिए बेहतर बदलाव मानसिक- वैचारिक ओर सामाजिक क्रांति से आता है। एक दूसरे का इस्तेमाल, खून बहाकर नहीं..।

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