होई जबै द्वै तनहुँ इक
थे ईसर म्हें गौरा : आधा मैं ( अध्याय 13)
उसने आरंभ किया:
“महादेव एक ऐसे भगवान हैं जिन्होने मृत्युलोक में, अर्थात धरती पर बहुत समय बिताया। जहाँ जहाँ धरती पर उनका अंश गिरा, जीवन उत्पन्न हुआ। मनुष्य आया। कबीले बने। महादेव हम सबके पूर्वज हैं। मरूधरा में महेश्वर और धरा के सहवास से ईसर जी जन्मे। ईसर देवकुमार थे। उनके कौमार्य में ही उनका देवत्व था।”
वह रुका:
” देखो दोस्त, मैं विज्ञान का बेटा हूँ। इन पौराणिक कथाओं को केवल कथा मानता हूँ। चूँकि मानव मन भावनाओं का पुंज है, तो वहाँ पहुँच कर वास्तविकता गौण हो जाती है, और भाव विशेष। हम विज्ञान के सिद्धांतों को भूल कर जी सकते हैं, मन के भावों को भूल कर नहीं। सही कहा?”
फिर आगे बढ़ा :
” ईसर प्रेम कर सकते थे, सहवास या विवाह नहीं। धरती की जो भी कुमारी कन्या उन्हें देखती, उन पर मुग्ध हो जाती। परंतु जो आप की महिमा जान कर भी आप पर आकर्षित नहीं हो, वह आप से ऊपर ही रहता है। ईसर को आज तक वह स्त्री नहीं मिली थी जो उन्हें देख कर मुँह फेर ले। एक बार जब वे मरूभूमि की कँटीली झाड़ियों से गुजर रहे थे, उन्हें एक गंध आई। यह सुगंध नहीं थी। ऐसी मदमयी गंध थी जो तपती मरु पर पहली बौछार से आती है। आकाश से तो चिलचिलाती धूप गिर रही थी। यह गंध थी, ईंधन बीनती हुई गौरा की, जो पूरी बनी में फैली थी। स्त्री की ऐसी गंध से ईसर अपरिचित थे। वे इस गंध को अपनी नासिकाओं में भरते हुए इसे खोजने लगे। आख़िर उन्हें अकेली गीत गाती हुई, ईंधन चुगती हुई गौरा दिखी। तब तक उसकी इस कौमार्य गंध से ईसर कामोत्तेजित हो चुके थे। बरस के किसी एक महीने में, और महीने के किसी एक दिन, यह गंध इतनी मादक होती है कि पुरुष को ही नहीं, देवता को भी स्त्री का दास बना सकती है। और यह तो किसी सामान्य कन्या की गंध नहीं थी। गौरा के पवित्र कौमार्य की गंध थी।
समीप पहुँचते ही अनुनय के साथ कहने लगे, ‘ मैं तुम्हारे प्यार में बिन्ध गया हूँ कुमारी, मुझे स्वीकार कर लो।’
गौरा ने अपने अल्हड़पन में उत्तर दिया:
“फूल सैं जे थारो नेह तो मतना पाथर मार!
हिया मा भरि कै बास तू बैठयो दूर निहार !!”
ईसर आवेश में आ गये। कुमारी लड़कियाँ क्या, विवाहित स्त्रियाँ जिन पर पतंगों की तरह मोहित होकर लोक लाज त्याग देती हैं। प्राण देने को उद्यत हो जाती हैं, उस देव कुमार की ऐसी अवहेलना करने वाली यह लड़की कौन है? ईसर ने अपना परिचय दिया।
“ईंधन चुगती बावरी हठ में मति मत मार!
झोली कर ईसर खड़ा प्रेम की बिकशा डार !!”
ईसर ने गौरी को समझाया। मैं देवपुत्र ईसर हूँ, तू अपने भाग्य को मत ठुकरा। मेरे आलिंगन में आ जा। मैं तुम्हें पाने के लिए अपना देवत्व त्यागने को तैयार हूँ। तुम्हारे भीतर मेरा आधा देवत्व समा जाएगा। देर मत कर, आ जा।
“गोरां ताइं प्रीत सै जीवन भर को साथ !
बाबासा के पाँव पड़ माँग ले मेरो हाथ !!”
गौरी ने अब तक ईसर को नज़र उठा कर भी नहीं देखा था। ईसर ने आग्रह किया कि मुझे एक बार देख तो लो। ईसर को विश्वास था कि स्त्री एक बार उसे देख ले तो मोहित हुए बिना नहीं रह सकती। मगर नहीं, गौरा नहीं मानी। पता है क्या जवाब दिया।
“हियो सै मंदर प्रेम को आँख्याँ ताको द्वार!
दो हिय जब नहीं एक तो आँख्याँ काईं चार !!”‘
उसने मेरी ओर देखा:
” तुम भी सोच रहे होगे मित्र कि मुझे बावरी का बताया एक एक पद भी कैसे याद है। कोई नहीं समझ सकता इस बात को। बावरी जीवित है। मेरे अंदर जीवित है। मैं केवल आधा मैं हूँ।