काश एक तिरंगा खुद के प्रति ईमानदार होने का भी लहरा दे..

eqwewqeweरणघोष खास. प्रदीप नारायण

 मै प्रदीप नारायण अपनी डयूटी व कार्य के प्रति पूरी तरह से ईमानदार नहीं हूं। यह स्वीकार करना ही मेरी ईमानदारी है। इन दिनों गूंजायमान हो रहा हर घर तिरंगा के विजन में सच्चे भारतीय का स्वाभिमान, सम्मान एवं राष्ट्र- समाज एवं परिवार के प्रति कर्तव्य- अधिकार का भाव कूट कूट कर समाया हुआ है। क्या सच में हम हाथ में तिरंगा लेकर खुद के प्रति गर्व करने की हैसियत मजबूत कर पाए हैं। तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर भारत माता की जय करना बहुत अच्छा लगता है। उस पर भी जब ट्रैफिक वाला टोके और पुलिस वाला रास्ता दे दे तो क्या ही कहने.। सच में लगता है किला फतह हो गया। आते जाते समय ऐसे ही नज़ारे सड़कों पर दौड़ते नजर आ रहे हैं। बाइकों पर बिना हेलमेट नौजवान।  उन्हें पता है हाथ में आज तिरंगा है तो कोई ट्रैफिक वाला रोकने की हिम्मत नहीं करेगा। हम  तिरंगा लेकर भ्रष्टाचार से नफरत की बात करते है। उसे खत्म करना चाहते हैं कौन करेगा। कायदे से इस सवाल का सही जवाब और इलाज वैज्ञानिक भी नहीं खोज पाए हैं इसलिए तो यह महामारी की तरह चारों तरफ अपनी जड़े जमा चुका है। सोचिए क्या सरकारी बाबू, पटवारी, कर्मचारी,  अधिकारी, नेता, हम जैसे पत्रकार, डॉक्टर्स, शिक्षक, मिलावट करने वाले छोटे बड़े व्यापारी हर वह शख्स जिसकी डयूटी में राष्ट्र हित सर्वोपरि की भाषा चिल्लाती रहती है, के हाथ में  तिरंगा आने से सबकुछ बेहतर हो जाएगा। 15 अगस्त के बाद क्या होगा। क्या फिर से अपना काम घूस लेकर या देने की परंपरा खत्म हो जाएगी। मैं चाहता हूं कि मैं ईमानदार हो जाऊं अपने प्रति..। बोलना कितना आसान है लेकिन अंसभव भी नहीं.की खुद को बदल नहीं पाऊ... ऐसा नहीं है कि भारत में सारे लोग ही भ्रष्ट हो गए हैं और ऐसा भी नही है कि घर- कार्यालय में तिरंगा लहराने से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा।  बात ईमानदारी बरतने की है। हाथों में तिरंगा लेकर नजर आ रहे में कितने लोग ईमानदारी से कह सकते हैं कि वो अपना कोई भी काम बिना घूस दिए या लिए नहीं करेंगे। अधिकार- कर्तव्य को साथ लेकर चलेंगे। क्या कभी सड़कों पर अधिकार की जगह कर्तव्य को लेकर धरना प्रदर्शन हुए हैं।  हाथ में तिरंगा ले लेने से और भारत माता के जयकारे लगाने से कोई ईमानदार नहीं हो जाता। ईमानदारी किसी जीवन में रचनेबसने के लिए उसके वजूद पर लगातार हमला करती है और बेहद कठिनाईयां झेलने के बाद  अपनी जगह बनाती है। कुछ परिचित सरकारी अधिकारी हैं। ईमानदार हैं। उनके ख़िलाफ़ उच्च स्तर पर शिकायत की गई है और ट्रांसफर किए जाने का ख़तरा मंडराता रहता है उनके सर पर  लेकिन वो फिर भी ईमानदार हैं। भारत ऐसे ही लोगों से चल रहा है तिरंगा लहराने वालों से नहीं। रही बात हर घर तिरंगा सोच की । इसका उसी तरह स्वागत होना चाहिए जिस तरह हम राष्ट्रीय पर्व मनाते हैं। बस हाथ में तिरंगा लेते समय खुद के प्रति ईमानदार साबित करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए तभी यह  तिरंगा लहराता हुआ गर्व महसूस करेंगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *