जय किशोरी का एक एक शब्द डॉलर से भी महंगा, इसलिए सुनना बहुत जरूरी है..

सोचिए अगर वह अपनी कथा की सम्मानजनक फीस नहीं लेती। मिलने मिलाने के कड़े नियम कायदे नहीं बनाती। वहीं जय किशोरी किसी छोटे- बड़े मंदिर में प्रवचन करती नजर आती। वजह नि:शुल्क की मानसिकता जन्म लेते ही सबसे पहले उस अहमियत को खत्म कर देती है जिसके कारण उसका जन्म हुआ था।


रणघोष खास. प्रदीप नारायण  

कथावाचिका जय किशोरी 16 से 22 सितंबर तक रेवाड़ी की जमीं से इंसानी जमात में बेहतर बदलाव का आगाज करने जा रही है। उनके मुख से निकलने वाला एक एक शब्द बेशकिमती है जिसने बटोर लिया उसका जीवन बदल जाएगा। जो वंचित रह गए उनके पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचेगा। इसी सोच व दावे के साथ उनके आगमन को लेकर इतनी जबरदस्त तैयारियां की जा रही है जितनी किसी ने जन्म देने वाले अपने माता-पिता को सम्मान देने में नहीं की होगी। जय किशोरी भी यही बात बताने आ रही है। फर्क इतना है कि वह इसके लिए फीस लेती हैं इसलिए उनका एक एक शब्द कई डॉलर से ज्यादा महंगा होगा। लिहाजा जिसने इस आयोजन में अपनी हैसियत के हिसाब से आर्थिक योगदान दिया उसके लिए जय किशोरी का प्रवचन सुनना बहुत जरूरी है ताकि वह घर आकर यह बता सके कि मनुष्य जीवन होने का मतलब क्या है। उसमें अधिकांश हम जैसे होंगे जो घर में बड़े बुजुर्गों, गुरुजनों की सीख को अनदेखा करते आ रहे हैं वजह वे इसके बदले हमसे कोई चार्ज वसूल नहीं करते।  जरूरतमंदों की मदद करने को हम अक्सर अहसान मानते हैं। इतना ही नहीं अपने रोजमर्रा के जीवन में आर्थिक स्तर को मजबूत करने के लिए तरह तरह का झूठ- पांखड- छल कपट करते हैं। जब यह कचरा दिलो दिमाग में एकत्र होकर फटने को होता है। उसी समय जय किशोरी जैसी मोटिवेशनल स्पीकर का आगमन होता है। जय (जय शर्मा) किशोरी जब 9 वर्ष की थी तभी से आध्यात्म की ओर खींची चली आई थी। लिहाजा उसने कम उम्र में दुनियादारी के संभी रंगों को अपने आध्यात्मक लगाव से समझ लिया था। वे नानी बाई का मायरा और श्रीमद् भागवत की कथा का वाचन करती हैं। वह पूरी तरह से प्रोफेशनल है। 26 साल की जया किशोरी के ऑफिस में काम करने वाले एक कर्मचारी की मानें तो एक कथा करने के लिए वे 10 से 15 लाख रुपये फीस के तौर पर ले लेती हैं। कथा करने से पहले इस फीस का आधा हिस्सा जमा हो जाता है।, बाकी फीस कथा करने के बाद ली जाती है। ऐसा नहीं है कि जया किशोरी कथावाचन के बदले जो फीस लेती हैं, वे सारे पैसे केवल अपने लिए ही खर्च करती हैं। इस कमाई का कुछ हिस्सा नारायण सेवा संस्थान को दान में चला जाता है। यह वह संस्थान है, जो दिव्यांग लोगों की सेवा में लगा हुआ है। जय किशोरी के लिए जीवन का रास्ता स्पष्ट और साफ सुथरा है। सोचिए अगर वह अपनी कथा की सम्मानजनक फीस नहीं लेती। मिलने मिलाने के कड़े नियम कायदे नहीं बनाती। वहीं जय किशोरी किसी छोटे- बड़े मंदिर में प्रवचन करती नजर आती। जय किशोरी के रेवाड़ी आगमन पर करीब एक करोड़ रुपए के आस पास खर्च होने का दावा किया जा रहा है। पहले यह बजट 60-70 लाख तय हुआ था। 16-22 सितंबर तक चलने वाली कथा से हमारे अंत:करण की शुद्धि हो जाए। यह दुआ करिए नहीं तो आने वाले दिनों में इसके लिए फिर करोड़ों रुपए खर्च करने होंगे। जय किशोरी ने आने से पहले यह जरूर अहसास करा दिया है जीवन में जितनी जल्दी हो सके वायरस बनती जा रही नि:शुल्क मानसिकता को खत्म कर डालिए। वजह वह जन्म लेते ही सबसे पहले उस अहमियत को खत्म कर डाल देती है जिसके कारण उसका जन्म हुआ था।

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