रेवाड़ी में बेकाबू हो रहा किसानों का रोष

स्ट्रक्चर का मुआवजा नहीं दे रही एचएसआईआईडीसी के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन


जिला सचिवालय घेराव के चलते भारी संख्या में तैनात रहा पुलिस बल

-किसानों ने कहा कि नौबत यहां तक आ चुकी है कि अब किसान जिला सचिवालय में आकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर होंगे


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी

राज्य सरकार की एचएसआईआईडीसी ने अब किसानों के प्रति अपना भरोसा खत्म कर लिया है। जिसके चलते गुरुवार को किसानों ने जिला सचिवालय पर  एचएसआईआईडीसी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। किसानों का इरादा सचिवालय का घेराव करना था लेकिन उन्होंने अधिकारियों से मिले दो दिन के आश्वासन पर अपना इरादा टाल दिया। किसानों की चेतावनी को देखते हुए काफी संख्या मे पुलिस बल भी तैनात रहा।

गुरुवार सुबह किसान नई अनाज मंडी स्थित किसान भवन में एकत्र हुए। भाकियू चढुनी संगठन  के अध्यक्ष समे सिंह की अध्यक्षता में पहले मीटिंग हुईं। उसमें तय हुआ कि अब किसान मुआवजा को लेकर करो या मरो की स्थिति में आ चुके हैं। हमारे यहां के नेता गूंगे बहरे हो चुके हैं। उन्हें अपना हित दिखने के अलावा कुछ नजर नही आ रहा है। एक माह से किसान सड़कों पर धरना प्रदर्शन कर सभी नेताओं को ज्ञापन दे रहा है। कोई किसानों का कसूर तो बताए। एचएसआईआईडीसी पूरी तरह से भूमाफिया की तरह काम कर रही है। पहले एमआरटीएस प्रोजेक्ट के तहत 20 गांवों के किसानों की जमीन का अधिग्रहित किया। 2017-18 में जमीन का मुआवजा भी बांट दिया। बाद में जमीन पर बने स्ट्रक्चर की राशि  जल्दी देने का आश्वासन देकर जमीन को रिकार्ड में अपने नाम करा लिया। करीब चार साल से किसान स्ट्रक्चर की राशि को लेकर भिखारियों की तरह कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। उन्हें सरकार के इस विभाग ने किसी लायक नहीं छोड़ा। क्या यही सरकार की कल्याणकारी या विकास की योजनाएं हैं। डीआरओ 15 से ज्यादा बार मुआवजा के लिए पत्र भेज चुका है। एचएसआईआईडीस को लेकर किसानों में जबरदस्त रोष नजर आया। उन्होंने बैनर के माध्यम से उसे भूमाफिया बताया। जिला सचिवालय पर पहुचंकर किसानों ने जमकर नारेबाजी की। किसानों ने कहा कि अब उनका धैर्य जवाब दे चुका है। दो दिन में हमारी एचएसआईआईडीसी अधिकारियों से मीटिंग नहीं कराई तो वे किसान जिला सचिवालय पर आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर हो जाएगा। किसानों का अपने जनप्रतिनिधियों के प्रति भी गहरी नाराजगी थी।

क्या है मामला

रेवाड़ी- धारूहेड़ा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 20 गांवों के किसानों की एमआरटीएस परियोजना (Mass.rapid transit system and allies use and early project DMIC) के विस्तारीकरण हेतु  एचएसआईआईडीसी द्वारा जमीन अधिग्रहण की गई थी। जिसके तहत 2018 में इस परियोजना के तहत कुल मुआवजा 201 करोड़ 53 लाख 62 हजार 130 रुपए अवार्ड हुआ। जिसमें 120 करोड़ रुपए जमीन के नाम पर किसानों को जारी कर दिए। लेकिन उस पर बने स्ट्रक्चर का आज तक नहीं मिल पाया जबकि जमीन एचएसआईआईडीसी सरकार रिकार्ड में अपने नाम करवा चुकी है। यानि किसान ना इधर के ना उधर के। ना वे अपने भवनों के साथ छेड़छाड़ कर सकते है और ना छोड़ सकते है।  उलटा मुआवजा मिलने की उम्मीद में उन्होंने ब्याज पर व जमीन से मिले मुआवजा से अपना अन्य व्यवसाय शुरू करने  के लिए जमीन खरीद ली थी। ऐसे में राशि नहीं मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति दिनप्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। दुखी किसानों ने प्रशासन को लिखित में ज्ञापन देकर और विडियो जारी कर चेताया था कि अगर सात दिन में मुआवजा नहीं मिला तो वे आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाएंगे। यहां गौर करने लायक बात यह है कि एक तरफ मानेसर में किसान जमीन का कम मुआवजा को लेकर संघर्षरत है वहीं रेवाड़ी में स्थिति एकदम उलट है। यहां किसानों को सरकार की तरफ से अवार्ड किया गया मुआवजा ही नहीं मिल पा रहा है।

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