चीते के साथ डर दौड़ता है, गाय के साथ मां चलती है, इसलिए लंपी वायरस को सीरियस मत लिजिए

रणघोष खास. प्रदीप नारायण


जिस तरह देश में ईडी- इंकम टैक्स- सीबीआई समेत अनेक तरह की जांच एंजेसियां चारों तरफ डर लेकर दौड़ रही है। उसी हिसाब से देश में चीते की एंट्री बनती हैं। जहां तक लंपी वायरस की चपेट में आकर लाखों की संख्या में जान गवां चुकी गाय जिसे हिंदू गौमाता कहकर बुलाता है का सवाल है। इस पर चर्चा करना ठीक उसी तरह है जिस तरह हम जीते जी अपने बड़े बुजुर्गों की देखभाल, सेवा करना तो दूर सम्मान तक नहीं करते हैं लेकिन उनकी मृत्यु के बाद श्राद्ध के नाम पर कई तरह के व्यंजनों का आनंद लेते हुए उन्हें याद करते हैं। इस बात को दिमाग में बैठा लिजिए। आज हम जिस परिवेश में आगे बढ़ रहे हैं उनकी जड़ों से हमारे संस्कार, संस्कृति, खान पान, व्यवहार तेजी से कटकर अलग होेते जा रहे हैं। इसलिए चर्चा के हर प्लेटफार्म पर चिंता चीते की हो रही हैं उन गायों की नहीं जो सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही मानव जाति को बहुत कुछ देती आ रही है और बदले में अपने लिए कुछ नहीं मांगती। गाय पूरे संसार में अलग अलग चेहरों में नजर आती है लेकिन इसका मूल चरित्र एवं स्वभाव एक  है। ना जाने कितने असंख्य परिवार गाय के दूध व घी को बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।  आज के मानसिकता में हिंसक की प्रवृति  ना होना ही इसका दोष बना हुआ है।  यह दयालु है। इसमें मां की तरह सबकुछ बर्दास्त करने की अदभुत क्षमता है। इसलिए रोज सुबह शाम दूध के समय पशुपालक उसके बच्चे को उसके करीब इसलिए लाता है कि वह उसे देखकर अपना दूध पिलाएगी और जैसे ही वह ऐसा करती है झट उसके बच्चे को खींचकर मालिक उसे दूर बांध सारा दूध निकालकर बेच देता है।  वह कुछ नहीं कहती सबकुछ सहन कर लेती है। इसके बछड़े बड़े होकर इन्हीं पशु पालकों की गाड़ी खींचते हैं  ओर  खेतों की जुताई करते हैं। गाय जन्म से लेकर अपनी मृत्यु तक संपूर्ण मां तरह अपना सर्वत्र देकर चली जाती है। बदले में हिंदू उसे अपने त्यौहारों में मूर्तियों की शक्ल में गौ माता का सम्मान देकर अपने फर्ज को अदा कर देता है। इसलिए लंपी वायरस  और  मतलबी- स्वार्थी- लालची इंसान की फिदरत में ज्यादा अंतर नहीं है। यह वायरस तो कुछ समय बाद खत्म हो जाएगा लेकिन इंसानी वायरस तो रोज गाय को अलग अलग तौर तरीकों से मार रहा है। कभी वह हिंदू मुसलमान बनकर तो कभी उसके शरीर को अपना आहार बनाता है। जहां तक चीते का सवाल है। उसका नाम सुनते ही इंसान अपनी औकात में आ जाता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर चीते को भारत में बुलाकर यह अहसास भी कराया है कि डरना बुरी बात नहीं है। इसका होना बहुत जरूरी है। गाय और मा की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि उसके पास डर नहीं ममत्व है। पिता डर का कुछ हिस्सा बचाकर रखता है इसलिए बहुत कुछ कंट्रोल में रहता है। क्या कभी गली मोहल्ले में सड़क छाप बदमाश के अलावा  किसी साहित्यकार, खिलाड़ी, शिक्षाविद से डरते हुए देखा है। वजह वे दूसरों की चिंता करते हैं और बदमाश खुद की। चीता जंगल में किसकी चिंता करता है यह तो एक्सपर्ट ही बेहतर बता सकते हैं। इतना जरूर हे कि चीते के साथ डर दौड़ता है और गाय के साथ मां चलती है। इसलिए जीते जी चीता की चिंता करना और मृत्यु के बाद मां को याद करना बनता है क्योंकि यहीं संसार है। कोविड के बाद लंपी वायरस यहीं बताने आया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *