ईरानी महिलाओं के हिजाब उतार फेंकने के मायने क्या हैं?

रणघोष खास. विश्वभर से

क्या ईरान में अब महिलाओं की क्रांति होगी? उस ईरान में जहाँ इस्लामिक लॉ यानी शरिया क़ानून चलता है। जहाँ औरतों के बाल और सिर पूरी तरह ढंके होने चाहिए। हिजाब न पहनने या फिर ठीक से न पहनने पर जेल की सजा और जुर्माना है। जहाँ महिलाओं के हर क़दम पर एक तरह की बेड़ियाँ हैं। क्या वहाँ अब महिलाओं ने उन जंजीरों को तोड़ फेंकने की ठान ली है और वे उस दौर में लौटने को बेताब हैं जहाँ क़रीब 45 साल पहले महिलाएँ पूरी तरह आज़ाद थीं?इसी ईरान में क़रीब चार दशक पहले की हकीकत आज से बिल्कुल उलट थी। पश्चिमी देशों की तरह रहन-सहन था। पहनावा भी और खान-पान भी। लेकिन तब ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति नहीं हुई थी। उस क्रांति से पहले के ईरान के समाज में खुलापन था। महिलाओं को भी पहनावे और खानपान को लेकर कोई रोकटोक नहीं थी और उन्हें पूरी आज़ादी थी। चार दशक पहले के ईरान की अभी भी ऐसी तसवीरें सोशल मीडिया और इटंरनेट पर मिल जाती हैं जिसमें पुरुष और महिलाएँ स्वीमिंग पूल या फिर बीच पर वैसे कपड़े पहनकर नहाते थे जिसकी आज के ईरान में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। महिलाएँ लॉन्ग बूट पहनती थीं। वैसे कपड़े पहनती थीं जो उन्हें ठीक लगते थे।

कहा जाता है कि 70 के दशक में ईरान के लोग पश्चिमी पहनावे से काफी प्रेरित नज़र आते थे और वे उस पहनावे और संस्कृति को अपना चुके थे। सत्तर के दशक में ईरान में मशहूर पॉप गायिका गूगूश हुआ करती थीं। 1979 में गूगूश को ईरान छोड़कर ब्रिटेन में बसना पड़ा था।दरअसल, 1979 से पहले ईरान में जो खुलापन था वह वहाँ के शासक के खुलेपन की नीति की वजह से था। ईरान में शिया पंथ के मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी की हुकूमत थी। शाह 1941 से सत्ता में थे। वह आधुनिक सोच वाले शख्स थे। उन्होंने आधुनिक स्कूल-कॉलेज खोलने, महिलाओं को उसके अधिकार देने, उन्हें उनकी मर्ज़ी के कपड़े पहनने की आज़ादी देने, नौकरी देने, उदारवादी नीतियों को अपनाने और आधुनिक सुधारों को लागू करने की वकालत की। तब देश में सिनेमा हॉल खुलने लगे थे। कहा जाता है कि उनके उन फ़ैसलों की वजह से उनके विरोधी उन्हें पश्चिमी देशों का पिट्ठू कहने लगे।लगातार विरोध करने वाले धार्मिक नेताओं से निपटने के लिए शाह ने इस्लाम की भूमिका को कम करने, इस्लाम से पहले की ईरानी सभ्यता की उपलब्धियाँ गिनाने और ईरान को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने के लिए कई क़दम उठाए।शाह के इस फ़ैसले से मुल्लाह और चिढ़ गए। ईरान के धार्मिक नेता आयतुल्लाह ख़ोमैनी भी शाह के सुधारों के ख़िलाफ़ थे।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी वजह से ख़ोमैनी को गिरफ़्तार करके देश से निकाल दिया गया था। इस बीच असंतोष बढ़ा और शाह का दमन चक्र भी। उसी दरम्यान आयतुल्लाह के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक कहानी छपी तो लोग भड़क उठे। 1978 में लाखों लोगों ने शाह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। जब सेना को उनपर कार्रवाई करने भेजा गया तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि इसी दौरान उनकी आर्थिक नीतियों से असमानताएँ बढ़ीं। ईरान के पहलवी शासकों का पश्चिमी देशों के अनुकरण की नीति तथा सरकार के असफल आर्थिक प्रबंधन की वजह से क्रांति की ज़मीन तैयार हुई।इसी बीच जनवरी 1979 को शाह और उनकी पत्नी ईरान छोड़कर चले गए या कहें कि उन्हें जाना पड़ा। फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. शापोर बख़्तियार ने सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया और ख़ोमैनी को ईरान आने दिया। यही वह दौर था जब 1979 की क्रांति हुई। इसी का परिणाम था कि ईरानियों ने शासक शाह पहलवी की हुकूमत को सत्ता से बेदखल कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री चुनाव कराना चाहते थे लेकिन ख़ोमैनी ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने ख़ुद ही एक अंतरिम सरकार बना ली। उन्होंने ईरान को एक इस्मालिक राज्य घोषित कर दिया और देश में शरिया क़ानून लागू कर दिया।इसके बाद जब से शरीया कानून ईरान में लागू हुआ तबसे नियम-कायदे बहुत ज़्यादा सख़्त हो गए हैं। इनका पालन नहीं करने वालों को बेहद कड़ी सजा मिलती है।

कुछ साल पहले की ही बात है कि ईरान में 8 सेलिब्रिटीज को सोशल मीडिया पर मॉडलिंग की फोटो शेयर करने के लिए जेल भेज दिया गया। उन आठों सेलिब्रिटीज पर आरोप लगा कि उन्होंने इस्लाम विरोधी संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया था और ये शरीया कानून के खिलाफ है इसलिए इन्हें जेल में डाला गया।अब ऐसा ही मामला एक 22 साल की लड़की का आया है। महसा अमिनी नाम की इस लड़की की कुछ दिन पहले ही मौत हो गई है। आरोप है कि हिरासत में उनके साथ मारपीट के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें ईरान की मोरलिटी पुलिस यानी हिंदी में कहें तो ‘नैतिकता बघारने वाली पुलिस’ ने हिरासत में रखा था। महसा अमिनी का गुनाह इतना था कि उन्होंने कथित तौर पर ग़लत तरीक़े से हिजाब पहना था। उन्होंने अपने बालों को पूरी तरह से ढका नहीं था। यानी पुलिस के ही अनुसार उन्होंने हिजाब तो पहना था, लेकिन पहनने का तरीक़ा ‘गड़बड़’ था। इसी वजह से उनकी जान चली गई। अब अमिनी के साथ हुई इस घटना के बाद ईरान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। इसमें ईरानी महिलाएँ सार्वजनिक रूप से अपने हिजाब को हटाकर जला रही हैं। सोशल मीडिया पर महिलाएँ विरोध में अपने बाल काट रही हैं। तो सवाल है कि इस मामले में महिलाओं की जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है, उसे क्या महिलाओं की क्रांति की शुरुआत कहा जा सकता है? क्या महिलाएँ अपने अधिकार फिर से पाने में कामयाब होंगी? इसका जवाब तो आने वाला वक़्त ही बताएगा!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *