रणघोष खास में पढ़िए : असुरा: राम के तीर से घायल रावण के अंतिम शब्द

रणघोष खास. आनंद नीलकंठन


अब  मेरा अंतिम संस्कार है। मैं नहीं जानता कि मुझे एक राजसी व्यक्ति का संस्कार मिलेगा या मुझे नीच शत्रु समझकर दफन कर दिया जाएगा। मगर अब कुछ मायने नहीं रखता। मुझे भेड़ियों का स्वर सुनाई दे रहा है। शायद वे मेरे प्रियजनों का मांस भक्षण करने में व्यस्त हैं। अभी कुछ मेरे पैर के ऊपर से गुजरा है। वह क्या था?। मुझमें गर्दन उठाकर देखने का सामर्थ्य नहीं है। बुद्धिविहीन मनुष्यों के युद्ध करने के पश्चात बड़े, काले, बालों वाले चूहे अब इस रणभूमि को अपने कब्जे में ले चुके हैं। आज उनकी दावत का दिन है, जैसा कि पिछले ग्यारह दिनों तक था। हर तरफ़ हमारे और शत्रु के मांस, रक्त, मवाद, मृत्यु की दुर्गन्ध है। मगर अब फर्क नहीं पड़ता। अब कुछ भी मायने नहीं रखता। मैं जल्द ही गुजर जाऊंगा। यह दर्द भीषण है। उनका प्राणघातक बाण मेरी नाभि को भेद चुका है।मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूं। मैंने कुछ समय से उसी के विषय में सोच रहा था। पिछले कुछ दिनों में हजारों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए। समुद्र की गहराई में कहीं मेरे भाई कुंभकरण का मृत शरीर होगा, जिसे शार्क मछली आधा खा चुकी होगी। कल मैंने अपने पुत्र मेघनाथ की चिता को आग दी थी। या उससे एक दिन पहले? मैं समय का सब ज्ञान खो चुका हूं। मैं कई चीजों की समझ खो चुका हूं। ब्रह्मांड की गहराई में एक अकेला तारा दहक रहा है। ईश्वर की आंख की तरह या कहें शिव के तीसरे नेत्र की तरह, जो सब कुछ भस्म कर देती है। मेरी प्यारी लंका तबाह हो गई। मैं रावण बहुत दूर निकल आया हूं। अब मेरे पास सिवा इन भेड़ियों के, युद्ध करने को कुछ शेष नहीं है। कल शत्रुओं के द्वारा मेरे मस्तक को एक डंडे में टांगकर उन्हीं सड़कों से विजय जुलूस निकाला जाएगा, जहां कभी मेरा विजय रथ चलता था। मेरे लोग भीड़ लगाकर, इस भयावह, पीड़ादायक दृश्य को देखेंगे और उन्हें विकृत सुख मिलेगा। मैं अपने लोगों को जानता हूं, उनके लिए यह विशाल दृश्य होगा। एक बात अभी तक मेरी समझ में नहीं आई है कि मेरे गिरने के बाद, राम क्यों मेरे निकट आकर खड़े हुए थे। वह ऐसे खड़े थे, जैसे मुझे अपना आशीर्वाद दे रहे हों।

उन्होंने अपने भाई से कहा कि मैं इस दुनिया का सबसे ज्ञानी पुरुष हूं और एक महान राजा के रुप में शासन की सीख मुझसे ली जानी चाहिए। मैं लगभग जोर से हंसा था। मैंने इतना कुशल शासन किया था कि आज मेरा साम्राज्य छिन्न भिन्न पड़ा है। मैं अपने योद्धाओं की जलती चिताओं की गंध महसूस कर सकता हूं। मैं अभी भी अपने हाथों में मेघनाथ की प्राणविहीन ठंडी देह महसूस करता हूं। मैं यही जीवन फिर से जीना चाहता हूं। मैं राम द्वारा मेरे लिए आरक्षित की गई स्वर्ग की कुर्सी पर नहीं बैठना चाहता। मुझे मेरी सुन्दर पृथ्वी चाहिए। मैं जानता हूं कि यह नहीं होने वाला। यदि मैं जीवित रहा तो मैं एक नेत्र वाला गंदा, बूढ़ा भिखारी बनकर किसी मंदिर के बाहर पड़ा रहूंगा। मैं जो था, उससे दूर आ गया हूं। मैं अब मरना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि अब यह खत्म हो। मैं दूर जाना चाहता हूं। जलते शहरों को अब अपनी जिम्मेदारी खुद लेनी है। अब असुर खुद देवताओं से युद्ध लड़ें और उनके साथ अभिशप्त हो जाएं। मैं केवल अपने बचपन में लौटना चाहता हूं और हर एक चीज को फिर से शुरु करना चाहता हूं। मैं जब यात्रा करता हूं तो देखता हूं कि झूठे लोग यह दावा कर कि उनके ईश्वर से संबंध हैं, आम लोगों को ठगते हैं। मैं हैरान होता है यह देखकर कि प्राचीन काल के शासक कैसे अचानक ईश्वर बन गए हैं। वह जिस तरह से विशेष शक्ति वाले भगवान बने हैं, यह मुझे और आश्चर्य चकित करता है। मैं नास्तिक नहीं हूं। मैं ईश्वर में मानता हूं और अपनी आध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी करता हूं। मगर मेरे लिए ईश्वर व्यक्तिगत वस्तु है, प्रार्थना खामोशी से दिल में की जाने वाली चीज है। असुर एक जातिविहीन समाज का हिस्सा थे, जहां शक्ति एक राजा की जगह, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई समिति के पास होती थी। वे लोग जीवन यापन के लिए घूमते और शिकार करते थे। मगर 2000 साल पहले यह लोग शहरों में नदी किनारे बस गए। ऐसा कहा जाता है कि असुरों के साम्राज्य में सोने की सड़कें होती थीं। लेकिन उन्होंने क्या भव्य साम्राज्य स्थापित किया। सिंधु नदी के पश्चिम से ब्रह्मपुत्र नदी के पूर्व तक,  उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा तक, उनका ही साम्राज्य था। इसे आसानी से उस समय में  पृथ्वी का सबसे बड़ा साम्राज्य कहा जा सकता है। जब मिस्र में राजा खुद को दफनाने के लिए गुम्बद बनाने में व्यस्त थे, तब असुरों की लोकतांत्रिक ढंग से कार्य करने वाली समिति सड़क, अस्पताल, भवन, जल निकासी व्यवस्था करने में संलग्न थी। वह सब कुछ किया जा रहा था, जिससे लोगों को आसानी हो। मेरी मां का दावा था कि वह असुरों की हेथिस जनजाति से संबंध रखती थी। कुछ लोग उसकी बात पर यकीन करते थे। मुझे यह सोचकर गर्व होता है कि मैं गौरवशाली असुर जनजाति का हिस्सा हूं। असुर कभी भी अधिक धार्मिक नहीं रहे, उनके अपने भगवान थे।

(लेखक साहित्यकार, स्तंभकार, स्क्रीनराइटर, पब्लिक स्पीकर हैं।)

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