पोलिंग पार्टियों के लिए वाहन जुटाने का मामला

डीसी के नाम पर आरटीए कर्मचारियों के पास गुंडागर्दी का लाइसेंस


-इनके व्यवहार में ना तो अपने सीनियर्स का खौफ होता है और ना हीं ये नौकरी से निकाले जाने का डर पालते हैं। इन्हें पता है कि जिन लेन देन के आरोप में ये दबोचे जाते हैं उसी लेन देन से ये छूटकर वापस सीट पर आ जाते हैं।


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी

सोचिए क्या डीसी यह फरमान जारी कर सकता हैं कि सड़क पर दौड़ रहे निजी वाहनों को रोककर उसमें बैठे मरीज व्यक्ति को उतार उसका वाहन इंपाउंड कर लो। क्या डीसी यह कह सकता है कि अगर कोई विरोध करता है तो उसका 10 हजार से ज्यादा का चालान कर दो ताकि हिम्मत ना दिखा सके। क्या उपायुक्त महोदय आरटीए कर्मचारियों को यह छूट दे सकते हैं कि वाहन चालकों से इस तरह से व्यवहार करो मानो वे देश के नागरिक नहीं होकर उनके दास हो।

इन तमाम सवालों का जवाब लेने के लिए रणघोष ने जब आरटीए सहायक सचिव द्वारका प्रसाद से बातचीत की तो उन्होंने दो टूक कहा कुछ गलत नहीं किया। इस बारे में डीसी साहब से बात करो। उनके आदेश पर हमने अपनी डयूटी की है। यही जवाब आरटीए कर्मचारी इस तरह की कार्रवाई का विरोध करने वालों को देते नजर आए। सहायक सचिव ने माना कि छह निजी वाहनों को भी इंपाउंड किया गया है।  जब बस स्टैंड के आस पास वाहनों को जब्त किया जा रहा था उस समय कर्मचारियों का रैवया गुंडागर्दी का लाइसेंस लेकर काम करने वालों की तरह था। वे किसी की परेशानी का भद्दे तरीके से मजाक उड़ा रहे थे। एक गाड़ी में तो मरीज अस्पताल जा रहा था। उसे काफी देर तक रोक कर रखा। हाथ पैर जोड़े और मरीज की जान का हवाला दिया तो गाड़ी छोड़ी। एक युवा अपने बीमार पिता 75 साल के अर्जुनलाल को गाड़ी में बैठाकर गांव कुंड अपनी दुकान पर जा रहा था। वह ढंग से चल नहीं सकते। उसकी गाड़ी को इंपाउंड कर लिया। मजबूरी में रोडवेज बस में बैठकर इस बुजुर्ग को जाना पड़ा और बेटा गाड़ी छुड़ाने के लिए दिन भर संघर्ष करता रहा।

ऊपर से नीचे तक  दागदार आरटीए कर्मचारी, कोई असर नहीं

आरटीए के कर्मचारी ऊपर से नीचे तक दाए से बाए तक पूरी तरह दागदार है। इसके तमाम खुलासे आए दिन होते रहते हैं। इन कर्मचारी एवं अधिकारियों की आय- संपत्ति की जांच की जाए तो बेहिसाब धन दौलत के मालिक मिलेंगे। इसलिए इनके व्यवहार में ना तो अपने सीनियर्स का खौफ होता है और ना हीं ये नौकरी से निकाले जाने का डर पालते हैं। इन्हें पता है कि जिन लेन देन के आरोप में ये दबोचे जाते हैं उसी लेन देन से ये छूटकर वापस सीट पर आ जाते हैं। ऐसे बहुत से कर्मचारी ऐसे हैं जिसे हरियाणा विजिलेंस ने रंगे हाथों पकड़ा लेकिन वे आज भी मजे से नौकरी कर रहे हैं। दरअसल इन कर्मचारियों को सिस्टम के अंदर  बने सुरागों से अंदर बाहर जाने के रास्ते का पता है। एक रास्ता ऊपर से नीचे आता है और दूसरा नीचे से ऊपर तक पहुंचता है।

कर्मचारियों को पता है वे गलत कर रहे हैं फिर भी आंनद आता है

गाड़ियों को इंपाउंड करते समय कर्मचारियों को मौके पर स्थिति का पता होता है कि उन्होंने किस गाड़ी को गलत ढंग से पकड़ा है। इसके बावजूद वे अपने रौबीले अंदाज में चालान की धमकी देकर सामने वाले को चुप करा देते हैं। ये उनके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा ये अवैध वाहनों को जब्त करते या ले देकर छोड़ते समय करते हैं।

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