हिंदुत्वराज में पढ़ना फ़िज़ूल है, सोचना ख़तरनाक

विकास दिव्यकीर्ति की जिस 3 घंटे की क्लास से 45 सेकेंड का टुकड़ा प्रचारित करके हिंदुओं को उत्तेजित करने का प्रयास किया जा रहा है, वह आज की नहीं। कोई 4 साल पुरानी है। उस चर्चा में शामिल कुछ लोग हो सकता है अब प्रशासक या किसी प्रकार के अधिकारी हों। शायद वे कुछ बोलें। इससे अलग एक बात और कहनी है। अब प्रशासनिक सेवाओं के लिए आलोचनात्मकता या विश्लेषणात्मकता की आवश्यकता नहीं। 


रणघोष खास. अपूर्वानंद 

प्रशासनिक सेवाओं के लिए दिल्ली के कुछ सबसे मशहूर कोचिंग संस्थानों में एक ‘दृष्टि’ के संस्थापक और अध्यापक या कोच डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति हिंदुत्ववादी कोप के नए शिकार हैं। उनपर आरोप है कि उन्होंने सीता को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। यह कोप कितना वास्तविक है, यह ख़ुद दिव्यकीर्ति के अनुभव से ही जाना जा सकता है। उनके अनुसार उनके जीवन में पहली बार उनके परिवार के लोग, बच्चे और उनके पड़ोसी तक उनकी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं। उन्हें खबर मिली है कि उत्तर प्रदेश में कहीं उन पर एफआईआर भी की गई है। उत्तर प्रदेश की पुलिस हिंदुत्ववादी भावनाओं के प्रति कितनी संवेदनशील है, यह सब जानते हैं। सामूहिक बलात्कार का इरादा ज़ाहिर करने वाले हिंदुत्ववादी ‘संत’ की आलोचना नहीं, सिर्फ़ उसके इस कथन को प्रकाशित करना कितना जोखिम भरा काम है, यह तो मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी से हमें मालूम हो गया है। पुलिस तो पुलिस, राज्य के महाधिवक्ता भी अदालत में गिरफ़्तारी के पक्ष में दलील देते हैं कि भले ही ‘संत’ ने आपत्तिजनक बयान दिया हो, लेकिन इसके चलते उनकी आलोचना से उनकी प्रतिष्ठा की हानि होती है। वे आख़िर लाखों भक्तों के श्रद्धा के पात्र हैं। मोहम्मद ज़ुबैर ने ‘संत’ के अश्लील बयान को प्रकाशित करके उन श्रद्धालुओं की भावना को ठेस पहुँचाई, इसलिए उन्हें दंडित किया ही जाना चाहिए। इसलिए डॉक्टर दिव्यकीर्ति की यह आशंका निर्मूल नहीं है कि पुलिस कभी भी उनका दरवाज़ा खटखटा सकती है। 

क्या है मामला?

उनका क़सूर यह है कि उन्होंने अपनी एक कक्षा में रामकथा की परंपरा और उसके अलग-अलग रचनाकारों की दृष्टि को समझाने के क्रम में वाल्मीकि की रामायण और महाभारत के रामोपख्यान के प्रसंगों की चर्चा की और उन रचनाओं से उद्धरण दिए। मोहम्मद ज़ुबैर ने अपनी तरफ़ से कुछ नहीं कहा था, सिर्फ़ हिंदुत्ववादी संत को उद्धृत किया था।दिव्यकीर्ति ने भी वाल्मीकि रामायण और महाभारत के प्रसंगों को उद्धृत भर किया था। उसके बाद उन्होंने इन रचनाकारों की दृष्टि का जो विश्लेषण किया, उसमें हिंदुत्ववादियों की रुचि नहीं है। वह इसलिए कि उस विश्लेषण से उन उद्धरणों का संदर्भ स्पष्ट हो जाता है जिनके सहारे यह आरोप लगाया जा रहा है कि डॉक्टर दिव्यकीर्ति ने राम और सीता का अपमान किया है।इस प्रसंग के कारण ऐसी ही एक दूसरी घटना याद हो आई। कुछ वर्ष पहले जोधपुर के विश्वविद्यालय के एक सेमिनार में दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के अध्यापक प्रोफ़ेसर अशोक वोहरा ने भारतीय परंपराओं के पाश्चात्य अध्येताओं की आलोचना में एक पर्चा पढ़ा। उस पर्चे में प्रोफ़ेसर वोहरा ने उन पाश्चात्य अध्येताओं को उद्धृत किया जिनकी वे आलोचना करना चाहते थे। इन उद्धरणों के सहारे वे बताना चाहते थे कि इनसे उनकी असहमति क्यों है। लेकिन उनके ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई कि उन्होंने आपत्तिजनक बातें कही हैं जिनसे हिंदुत्ववादी भावनाओं को चोट पहुँची है। बेचारे वोहरा साहब ने प्रधानमंत्री तक को ख़त लिखा यह बतलाते हुए कि वे तो उन उद्धरणों के सहारे बतलाना चाहते थे कि देखिए, पश्चिमवाले कितनी ग़लत बातें कहते हैं।

जेएनयू की कुलपति का मामला

हाल की घटना आपको याद होगी जिसमें हिंदुत्ववादी भावना आहत हुई। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति के एक वक्तव्य से। उसमें उन्होंने डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को उद्धृत किया था। आजकल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के श्रद्धेय बाबा साहब ने हिंदू धर्म में औरतों की स्थिति के बारे में जो कहा था, उसे ही कुलपति महोदया ने उद्धृत किया था। लेकिन उनपर हमला किया गया कि उन्होंने ऐसी आपत्तिजनक बातें कही ही क्यों। बेचारी ने सफ़ाई दी कि अगर आपत्ति है तो आंबेडकर साहब से बहस करो, मुझसे क्यों! बात मेरी नहीं, उनकी है।

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