पढ़िए गांव कौनसीवास के सरपंच बने 47 वर्षीय सुनील कुमार के इरादों की कहानी

हार-जीत कोई मायने नहीं रखती, बस सोच में ईमानदारी होनी चाहिए  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


सुनील कुमार सरपंच

शहर के लियो चौक से तीन किमी दूर गांव कौनसीवास में 47 साल के सुनील कुमार सरपंच बने हैं। उन्हें कुल मतदान में 55 प्रतिशत वोट मिले। यानि संपूर्ण जनमत पर आधारित जीत। उनकी पहचान अपने कामकाज व व्यवहार से दूर दराज क्षेत्रों में सुगंध की तरह फैली हुई है। शहर के सतीश स्कूल में 2005 में डीपीई की नौकरी छोड़ने के बाद वे पूरी तरह समाजसेवा में समर्पित हो गए थे। बेहद सादगी और शांत स्वभाव की वजह से सभी छोटे- बड़े उन्हें गुरुजी- मास्टरजी के नाम से ज्यादा बुलाते हैं।

सुनील कुमार के बारे में विस्तार से बताना इसलिए जरूरी है कि इस शख्स का सरपंच बनने के पीछे मकसद विकास के साथ साथ मानसिकता में सकारातमक सोच को विकसित करना है। सुनील कुमार का कहना है कि जीवन में या किसी भी क्षेत्र में हार-जीत कोई मायने नहीं रखती बस खुद की सोच में ईमानदारी होनी चाहिए। हम खुद के प्रति जवाबदेह रहेंगे तो सबकुछ स्वत: ही बेहतर होता चला जाएगा। विकास की असल तस्वीर भी इसी मानसिकता से नजर आती है। 2010 में जब उन्होंने पहला चुनाव लड़ा तो मतदान से एक दिन पहले मैदान छोड़ एलान कर दिया कि उनसे बेहतर चेहरे मैंदान में हैं जनता इसमें किसी का चयन कर उन्हें बनाए। 2015 में पत्नी उर्मिला देवी ने चुनाव लड़ा और शानदार पोजीशन के साथ महज 90 वोटों से जीत से दूर रह गईं। सुनील कुमार का कहना है कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में मिली असफलता को उन्होंने हमेशा मजबूत इरादों में बदला है। इसमें बड़े भाई विजय नारायण हमेशा मार्गदर्शक की भूमिका में रहे। इसके बेहतर परिणाम भी इस चुनाव में मिल गए जब कुल 976 मतों में 539 उन्हें प्राप्त हुए। वे 359 वोटों से विजयी हुए। दूसरी पोजीशन वाले उम्मीदवार को 180 वोट मिले। सुनील कुमार का लक्ष्य अपने गांव की मुलभूत समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर खत्म कर गांव को जिला- राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर एक  अलग पहचान दिलाना है। यह बेहतर बदलाव का महायज्ञ है। इसमें सभी की आहुति डलनी बहुत जरूरी है।

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