हाथ जोड़कर विनती है मीडिया को चौथा स्तंभ कहना बंद किजिए, यह प्रोडेक्ट है…

मौजूदा चल रहे माहौल में बस एक समझ काम करती है। खुद के प्रति ईमानदार रहिए, अपने आप की जिम्मेदारी- जवाबदेही तय करिए। सामने वाले को परखते रहिए उम्मीद मत करिए। कर्म करके आलोचना किजिए, कर्महीन बनकर नहीं।


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


प्रेस दिवस पर बधाई देने वाले समस्तजनों का आभार। कुछ ने इसी बहाने नसीहत दी तो बहुत से मिले संदेशों में उम्मीदें हद से ज्यादा उछाल मारती नजर आईं। इन दिनों मीडिया का अजीब सा चरित्र बना हुआ है। कोई बाजार में खड़े होकर इसे बिकाऊ, गोदी, दलाल, भ्रष्ट, टीआरपी बटोरने वाला हथकंडा बताने में पीछे नहीं हट रहा है तो कुछ बुद्धिजीवियों व समझदारों के सेमिनारों में इसे चौथा स्तंभ बताकर थोक के भाव नसीहत बांटी जा रही है। असल सच यह है कि जो कुछ भी बखान किया जा रहा है वह मौजूदा मीडिया का मूल चरित्र नहीं है। मीडिया को नैतिकता एवं मूल्यों का पाठ पढ़ाने वालों में अधिकांश वो हैं जो खुद के प्रति ईमानदार नहीं है बस दूसरों की जवाबदेही तय कर उसमें अपनी जिम्मेदारी वसूल लेते हैं। मसलन सीवरेज जाम हो गया। इसके लिए सफाई कर्मचारी व संबंधित महकमें को जिम्मेदार माना जाएगा। सीवरेज किस कारण से जाम हो रहा है उस पर कोई नही जाना चाहता। 15 से 18 रुपए की लागत वाले अखबार को 5 रुपए में खरीदकर उससे ईमानदारी की उम्मीद करना कहां की समझदारी है। अखबार मालिकों को पता है कि अखबार की लागत मूल्य से एक या दो रुपए बढ़ाकर लेना शुरू कर दिया तो उसकी प्रसार संख्या वेंटीलेटर पर आ जाएगी। आज का पाठक स्कीम आते ही अखबार बदल देता है। इसी तरह चैनलों में टीआरपी की माया चलती है। दर्शक उसी चैनल की सबसे ज्यादा बुराई करते हैँ जिसे वे सबसे ज्यादा देखते हैं।  मौजूदा चल रहे माहौल में बस एक समझ काम करती है। खुद के प्रति ईमानदार रहिए, अपने आप की जिम्मेदारी- जवाबदेही तय करिए। सामने वाले को परखते रहिए उम्मीद मत करिए। कर्म करके आलोचना किजिए, कर्महीन बनकर नहीं। माता-पिता को नहीं पता कि संतान बड़ी होकर किस दिशा में जाएगी वे बस अपना फर्ज निभाते हैं। समझदार ओर हम पर  भरोसा रखने वाले पाठक व दर्शकों से आग्रह है कि वे मीडिया को सूचनाओं का प्रोडेक्ट मानकर चले जिसकी बाजार में हैसियत के हिसाब से कीमत तय होती है। हम  डॉक्टर को धरती का भगवान मानते है लेकिन इलाज का बिल और उनका स्टाइल उनकी कुछ ओर ही परिभाषा तय करता है। हम शिक्षक को भगवान से बड़ा मानते हें लेकिन ब्यूटी पार्लर की तरह खुले स्कूलों की फीस, ट्यूशन-कोचिंग का बाजार उनका अलग ही चरित्र बता रहा है। इन सबके बीच में कुछ ऐसे भी हैं जो बाजार की तिजोरी में मूल्यों को छिपाए हुए हैँ। इसलिए वे इमेज के साथ बाजार में गर्व के साथ नजर आते हैं।  भाजपा में पीएम नरेंद्र बहुत बड़ी हैसियत रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हमने अटल जी को भूलाना शुरू कर दिया है। नसीहत देने से पहले  खुद में उदाहरण बनिए सबकुछ बेहतर होता चला जाएगा।

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