हरियाणा भाजपा के भीतर खामोश बगावत समय का इंतजार कर रही है..

 -बदलाव हुआ तो हवा दक्षिण हरियाणा से चलेगी


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


चारों तरफ पड़ोसी राज्यों की विपक्षी सरकारों से घिरते जा रहे हरियाणा में भाजपा- जेजेपी गठबंधन सरकार का बीपी-शुगर एक बार फिर ऊपर नीचे होने लगा है। ऐसा लग रहा है कि हरियाणा में भाजपा एक ऐसे चक्रव्यूह में घिरती जा रही है जिसमें अपनों की पहचान कर पाना ही मुश्किल हो रहा है। भाजपा के लिए खतरा विपक्षी दलों से ज्यादा पार्टी के भीतर फैलती जा रही ऐसी खामोश बगावत से हैं जिसके दुष्परिणाम हिमाचल प्रदेश में हुए चुनावी नतीजों के तौर पर सामने आ चुके हैं। गुजरात में बचाव इसलिए हो गया चुनाव से 14 माह पहले सीएम, डिप्टी सीएम समेत 22 मंत्री व 38 विधायकों को उनकी कार्यप्रणाली व हैसियत के हिसाब से घर बैठा दिया था। यह इसलिए संभव हो पाया देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठे पीएम नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह खुद गुजरात की राजनीति नसों से होकर गुजरे हैं। इसलिए उन्हें पता था कि किसकी नसें दबानी  और खोलनी है। इसे दुरुस्त करने का काम  केंद्रीय श्रम मंत्री एवं गुजरात प्रभारी भूपेंद यादव ने बखूबी निभाया। नतीजा 85 फीसदी 156 सीटें लेकर भाजपा ने देश की राजनीति में इतिहास रच दिया।  हरियाणा में स्थिति एक दम उलट है। यहां संगठन के  तौर पर पार्टी ने अपना जाल चारों तरफ फैला दिया है लेकिन जमीन पर टिके रहने के लिए वह दिल्ली पर निर्भर है। पीएम मोदी की तरह हरियाणा में ऐसा कोई नेता नहीं है जो विपरित हालातों को बदलने की ताकत रखता हो। हरियाणा में सीएम बदलाव को लेकर मीडिया में जितनी भी सूचनाए आ रही हैं वह हवा में है लेकिन हवा हवाई नहीं है। सीएम मनोहरलाल के मनो मस्तिक में जन्म लेने वाले फैसले भाजपा आला कमान की प्रयोगशाला से होकर गुजरते हैं। लिहाजा फेल- पास होने  की स्थिति में अकेले सीएम खटटर को पूरी तरह जवाबदेह बनाना भी तर्कसंगत नहीं है।

बदलाव हुआ तो हवा दक्षिण हरियाणा से चलेगी

राजनीति में हर पल कुछ भी संभव है। हरियाणा में अगर बदलाव भी होता है तो उसकी हवा दक्षिण हरियाणा से चलेगी। इसकी वजह भी मजबूत और साफ सुथरी है। इस क्षेत्र से रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, गुरुग्राम की 11 विधानसभा सीटों ने विशेष तौर से पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा को मजबूती से संभाले रखा। 2019 के चुनाव में आपसी लड़ाई में रेवाड़ी समेत एकाध सीटें जरूर गंवा दी लेकिन दिग्गज नेताओं के चेहरे जमीन व संगठन में मजबूत नजर आए।  सबसे पहला नाम केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव जिसके कुशल प्रबधन ने पीएम मोदी व अमित शाह समेत अनेक ताकतवर नेताओं का दिल जीता हुआ है। वर्तमान में भूपेंद्र यादव की कार्यप्रणाली का कद सीएम के पद को भी पार कर चुका है। हरियाणा उनकी जन्म- कर्म के साथ पहली राजनीति पाठशाला रही है। इसलिए हरियाणा के लिए हाईकमान कभी भी उनका उपयोग कर सकती है। दूसरा बड़ा नाम भाजपा संससदीय बोर्ड एवं चुनाव समिति की सदस्या पूर्व सासंद डॉ. सुधा यादव का सामने आ रहा है। वे भाजपा के पास महिला के तौर पर सबसे मजबूत चेहरा है। वीरांगना, शिक्षिका, ओबीसी एवं लंबे समय से समर्पित कार्यकर्ता का मजबूत बायोडाटा हाईकमान के पास पहले ही जा चुका है। जहां तक केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बात है। जमीनी तौर पर वे पिछले 45 सालों से अपने  मिजाज एवं तौर तरीकों की राजनीति करते रहे हैं। उनके समर्थक राव को ही अपनी पार्टी मानते हैं। दक्षिण हरियाणा से वे सबसे बड़े जमीनी पकड़ नेता है जो इस क्षेत्र की इधर उधर होती राजनीति में अपना अच्छा खासा दखल रखते हैं। उम्र के हिसाब से वे अपनी राजनीति विरासत बेटी आरती राव को सौंपने का मन बना चुके हैं। यहां उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा में परिवारवाद को लेकर बने फार्मूले से हैं। जिसकी कीमत वे पिछले दो विधानसभा चुनाव में बेटी को टिकट नहीं मिलने की वजह से चुकाते रहे हैं। 2024 में ऐसा नहीं होगा वे भाजपा आला कमान को आभास करा चुके हैं। जहां तक सीएम की दावेदारी का सवाल है। भाजपा को राव को समझने और राव को पूरी तरह भाजपाई बनने में अभी भी गुंजाइश बनी हुई है। अमूमन राव जैसी स्थिति पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ढुमरखां, सांसद चौधरी धर्मवीर सिंह, रमेश कौशिक, सांसद डॉ. अरविंद शर्मा की भी अलग अलग कारणों से बन चुकी है।  कुल मिलाकर वर्तमान में हरियाणा की भाजपा का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। यहां कौनसी दवाईं असर करेगी यह हाईकमान को तय करना है।

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