विश्व में तेजी से बदल रहे घटनाक्रम को समझिए

पाकिस्तान के हाथों से तालिबान निकल चुका है?


रणघोष खास. शुमाएला जाफ़री, बीबीसी से


चरमराती अर्थव्यवस्था और सिर उठाता चरमपंथ पाकिस्तान के लिए बड़ी चिंता का सबब बना हुआ है. पाकिस्तान के सामने ये संकट इतना गंभीर हो चुका है कि इससे निपटने के रास्तों पर विचार करने के लिए राजधानी इस्लामाबाद में दो दिनों तक मंथन चला. ये मीटिंग थी पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की. एनएससी पाकिस्तान में नागरिक और सैन्य मसलों पर विचार विमर्श के लिए सबसे बड़ा फोरम है. इसकी मीटिंग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ ने की, जिसमें वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और ख़ुफ़िया प्रमुख के साथ सेना प्रमुख सैयद असीम मुनीर भी शामिल हुए.

मीटिंग में चर्चा किस मसले पर हुई?

दो दिन के गहन विचार विमर्श के बाद एक विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें अफ़गानिस्तान का सीधा ज़िक्र तो नहीं था लेकिन इसमें परोक्ष रूप से अफ़गानिस्तान की तालिबान सरकार को एक चेतावनी ज़रूर थी. पीएम ऑफिस की तरफ़ से जारी प्रेस रिलीज़ में ये साफ लिखा गया है कि पाकिस्तान किसी भी देश में आतंकवाद को पनाह देने, इसे सम्मानित करने का समर्थन नहीं करता. पाकिस्तान अपनी आवाम की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक क़दम उठाने के लिए स्वतंत्र है.”एनएससी ने पूरी ताक़त के साथ हिंसा भड़काने या इसका सहारा लेने वाली सभी संस्थाओं, व्यक्तियों से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. फोरम में आतंकवाद के खिलाफ़ ‘नेशनल एक्शन प्लान’ को नए सिरे से तेज़ करने का फैसला किया गया. साथ ही इस बात पर जोर दिया गया केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें ऐसे सभी क़दमों को लागू करने में अपनी भूमिका निभाएंगी.इसके अलावा एनएससी ने देश की क़ानून व्यस्था संभालने वाली सभी एजेंसियों, ख़ासतौर पर काउंटर टेरेरिज़म डिपार्टमेंट की क्षमता बढ़ाने का फैसला किया. पाकिस्तान में आतंकवाद पर काबू करने के लिए बनाई गई ये संस्था सबसे ज्यादा आतंकी हमलों के निशाने पर रही है.प्रेस रिलीज़ के एक बड़े हिस्से में देश की लगातार बिगड़ती आर्थिक हालत का ज़िक्र था. इसमें कहा गया था कि फोरम को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से चल रही बातचीत की जानकारी दी गई. पाकिस्तान फ़िलहाल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के क्रार्यक्रम को पटरी पर लाने के लिए संघर्ष कर रहा है.कुछ आर्थिक विशेषज्ञ ये आशंका जता रहे हैं कि अगर वक़्त रहते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मदद नहीं मिली, तो लगातार कम होते विदेशी मुद्रा भंडार और डॉलर की कमी की वजह से पाकिस्तान डिफॉल्टर बनने की कगार पर पहुंच जाएगा.यहां गौर करने वाली बात है कि मदद हासिल करने के लिए अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की कुछ आधार शर्ते होती हैं. मसलन सब्सिडी में कमी करना और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की क़ीमते बढ़ाना. लेकिन जनता की नाराज़गी मोल लेने वाले इन क़दमों पर पहल करने से पाकिस्तान की मौजूदा पीडीएम गंठबंधन सरकार हिचक रही है. सरकार के मुताबिक़ देश में डॉलर की कमी की एक वजह है अफ़गानिस्तान के लिए अवैध फ्लाइट. इसे देखते हुए एनएससी ने अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने के लिए हवाला समेत अवैध मुद्रा के दूसरे सभी कारोबारों पर लगाम कसने का फ़ैसला किया है.

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