रणघोष की सीधी सपाट बात

जब अधिकारी- व्यापारी अतिक्रमण के खिलाफ है तो जिम्मेदार कौन है?


रणघोष सुझाव: सालों से अपनी हद में रहकर व्यापार कर रहे व्यापारियों को सार्वजनिक तौर पर सम्मानित करें नप प्रशासन


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

रेवाड़ी शहर को सलीकेदार और काबिल ए तारीफ बनाने की जिम्मेदारी नगर परिषद की सीट पर बैठे दो बड़े अधिकारियों की सोच से तय होती है। नप में डीएमसी सुभिता ढाका ओर रिटायरमेंट के दो महीने बचाकर वापस लौटे कार्यकारी अधिकारी मनोज यादव के लिए यह शहर नया नहीं है। दोनों अधिकारी इसके कतरा कतरा से बखूबी वाकिफ है। मनोज यादव का इससे पहले यहां से तबादला ही शहर में अतिक्रमण हटाने और इसे साफ सुथरा बनाने की वजह से हुआ था। वजह मनोज यादव यहां अधिकारी से ज्यादा सामाजिक हैसियत ज्यादा रखते हैं और उनके लिए अपनों  के बीच में रहकर अतिक्रमण व इधर उधर हो रहे गलत कार्यों को दुरुस्त करना आसान नहीं रहा है। रिटायरमेंट होने से पहले वे अपने स्तर पर शहर के लिए क्या करके जाते हैं। यह देखने वाली बात होगी लेकिन एक सवाल बार बार जरूर उठता है कि जब शहर के व्यापारिक संगठन और अधिकारी अतिक्रमण के खिलाफ है तो फिर शहर की बदसूरत तस्वीर के लिए जिम्मेदार कौन है। पिछले दिनों व्यापारी- नप प्रशासन की हुई मीटिंग महज चलती आ रही परपंरा की रस्म अदायगी के अलावा कुछ नहीं थी।

कायदे से देखा जाए तो अतिक्रमण सड़कों पर कम अधिकारियों एवं व्यापारियों के दिलों दिमाग में चल रही सोच पर ज्यादा कब्जा करके बैठा हुआ है। कार्रवाई के नाम पर सामान को उठाकर जब्त करना ठोस समाधान होता तो अभी तक शहर पूरी तरह अतिक्रमण से आजाद हो जाता। रणघोष ने अधिकारियों के समक्ष पहले भी  सुझाव रखा था जो पूरी तरह गांधीवादी तौर तरीकों पर आधारित है। हमारा मानना है कि चाहे अतिक्रमण की बात हो या नप में समय पर काम करने या नहीं करने की। बाजार में अधिकारियों की नजरें उन व्यापारियों पर क्यों नहीं जाती जिसने अपनी शुरूआत से आज तक एक इंच पर भी नाजायज कब्जा नहीं किया हुआ है जबकि उसकी अगल बगल में कब्जा ही कब्जा रहता है। अधिकारियों को चाहिए कि वे ऐसे व्यापारियों की सूची बनाए जिसने अपने व्यवसाय में नप की मर्यादा का पूरी तरह से पालन किया हो। अधिकारी व्यापारिक संगठनों से ऐसे व्यापारियों की सूची मांगे जो अपनी हद में रहकर व्यापार कर रहे हो। उन्हें पहले अतिक्रमण के खिलाफ बेहतर उदाहरण के तौर पर  सार्वजनिक तौर पर सम्मानित करें। साथ ही ऐसी व्यवस्था बनाए जिसमें सम्मानित इन व्यापारियों को नप में अपने सही काम के लिए परेशान नहीं होना पड़े और प्राथमिकता पर उनका कार्य पूरा हो। इसी तरह नप में बेहतर डयूटी करने वाले कर्मचारियों की पहचान कर उन्हें सम्मान देने की परपंरा शुरू करें ताकि एक दूसरे के प्रति सम्मान और विश्वास बना रहे। वर्तमान में एकदम उल्टा हो रहा है। जो असरदार है उसका अतिक्रमण ज्यो का त्यो है। उस पर कार्रवाई करने से पहले ही राजनीति शुरू हो जाती है। ऐसे लोगों की नप में सबसे ज्यादा सुनवाई होती है और वहीं सबसे ज्यादा बोलते और चिल्लाते है। नतीजा जो सही होते हैं वे यह ड्रामा देखकर चुप हो जाते हैं ओर उनका धीरे धीरे व्यवस्था पर भरोसा खत्म हो जाता है। यह मानसिकता अतिक्रमण से ज्यादा खतरनाक है जिसे रोका जाना बहुत जरूरी है। यह सकारात्मक सोच व पहल से ही संभव है।

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