आइए पढ़े.. इस तरह लड़ा गया था आज़ाद भारत का पहला आम चुनाव

 रणघोष खास. रेहान फजल 

सरदार पटेल के देहावसान और राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति बन जाने के बाद जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वा बन गए और उन्हें सरकार की नीतियाँ बनाने की पूरी आज़ादी मिल गई.सरदार पटेल और पुरुषोत्तम दास टंडन से मतभेद होने के बाद नेहरू ने दो सबक सीखे थे. पहला ये कि गृह और रक्षा मंत्री ऐसे होने चाहिए जो उनके प्रति वफ़ादार हों और दूसरा ये कि कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष ऐसा हो जो उनकी बात माने.उस समय की भारत की राजनीति में कांग्रेस का बोलबाला था, हालांकि उसी दौरान आचार्य कृपलानी ने कांग्रेस से अलग होकर किसान मज़दूर प्रजा पार्टी बना ली थी. मतदाताओं के बीच कम्युनिस्ट पार्टी की एक सीमित लोकप्रियता थी और नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नई पार्टी जनसंघ बनाई थी.नए आज़ाद हुए देश ने कुछ सालों के भीतर ही वयस्क मताधिकार के आधार पर आम चुनाव करवाने का फ़ैसला किया. इसके ठीक विपरीत पश्चिम में पहले ज़मीन जायदाद रखने वाले लोगों को वोट डालने का अधिकार दिया गया था और मज़दूरों और महिलाओं को वोट डालने के अधिकार से वंचित रखा गया था.आज़ाद होने के दो वर्षों के भीतर भारत में चुनाव आयोग की स्थापना हो गई थी और मार्च, 1950 में सुकुमार सेन को पहला मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था.सुकुमार सेन सन 1921 में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी बने थे. बंगाल के कई ज़िलों में काम करने के बाद वो पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के पद पर पहुंचे थे जहाँ से उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर दिल्ली लाया गया था.

मतदाता सूची में महिलाओं का नाम जोड़ना समस्या बना

भारत के पहले आम चुनाव में करीब 17 करोड़ लोगों ने भाग लिया था जिसमें 85 फ़ीसदी लोग लिख पढ़ नहीं सकते थे. कुल मिलाकर करीब 4500 सीटों के लिए चुनाव हुआ था जिसमें 499 सीटें लोकसभा की थीं. रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में लिखते हैं, “पूरे भारत में कुल 2 लाख 24 हज़ार मतदान केंद्र बनाए गए थे. इसके अलावा लोहे की 20 लाख मतपेटियाँ बनाई गई थीं जिसके लिए 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया था. कुल 16500 लोगों को मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर रखा गया था.””उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी महिला मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में जोड़ना. बहुत सी महिलाओं को अपना नाम बताने में झिझक थी. वो अपने आप को किसी की बेटी या किसी की पत्नी कहलाना अधिक पसंद करती थीं. चुनाव आयोग का प्रयास था कि हर मतदाता का नाम मतदाता सूची में लिखा जाए.””इसका परिणाम ये हुआ कि करीब 80 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जा सका. चुनाव करवाने के लिए करीब 56000 लोगों को प्रेसाइडिंग आफ़िसर के तौर पर चुना गया था. उनकी मदद के लिए 2 लाख 28 हज़ार सहायकों और 2 लाख 24 हज़ार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था.”कुछ दुर्गम पहाड़ी इलाकों में मतपेटियाँ पहुंचाने के लिए ख़ासतौर से पुलों का निर्माण किया गया था और हिंद महासागर के कुछ द्वीपों में मतदाता सूची पहुंचाने के लिए नौसैनिक पोतों का इस्तेमाल किया गया था.

पश्चिमी देशों के अधिकतर मतदाता उम्मीदवार को उसके नाम से पहचान सकते थे लेकिन भारत में अधिकतर लोगों के अशिक्षित होने के कारण मतपत्र में मतदाताओं के नाम के आगे चुनाव चिन्ह छापा गया था.हर मतदान केंद्र पर मतपेटियाँ रखी रहती थीं जिस पर पार्टी का चुनाव चिन्ह बना होता था और मतदाताओं को उसमें अपना मत डालना पड़ता था.नकली मतदाताओं से बचने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी स्याही बनाई थी जो मतदाता की उंगली पर एक सप्ताह के लिए बनी रहती थी. भारत भर के 3000 सिनेमाघरों में चुनाव और मतदाताओं के अधिकार से संबंधित वृत्त चित्र दिखाया गया था.

नेहरू के हवाई जहाज़ से चुनाव प्रचार करने पर विवाद

भारत में जिस समय ये चुनाव हो रहा था, वियतनाम में फ़्राँसीसी सैनिक वियत-मिन्ह से लड़ रहे थे और संयुक्त राष्ट्र के सैनिक उत्तर कोरिया के सैनिकों का मुकाबला कर रहे थे. अमेरिका ने उन्हीं दिनों अपने पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था.उस साल दुनिया में तीन राजनीतिक हत्याएं हुई थीं. जॉर्डन के बादशाह, ईरान के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ाँ हत्यारों की गोली का शिकार हो चुके थे.दुर्गा दास अपनी किताब ‘फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर’ में लिखते हैं, “नेहरू को ये ठीक नहीं लगा कि वो उस जहाज़ में चुनाव प्रचार करें जिसे वो प्रधानमंत्री के तौर पर इस्तेमाल करते थे. दूसरी तरफ़ न तो उनके पास और न ही कांग्रेस पार्टी के पास इतने पैसे थे कि वो चुनाव प्रचार के लिए हवाई जहाज़ चार्टर कर सकें.”उस समय के ऑडिटर जनरल ने नेहरू की मदद के लिए एक अच्छा फ़ॉर्मूला सुझाया जिसमें कहा गया कि भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ कोई समझौता न किया जाए. ये तभी हो सकता था कि वो हवाई जहाज़ से यात्रा करें.हवाई जहाज़ से यात्रा करने का एक फ़ायदा ये होगा कि उनकी सुरक्षा के लिए रेल की तुलना में कम लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. चूँकि प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की है, इसलिए सरकार को ये ख़र्च वहन करना चाहिए.इसलिए नियम बनाया गया कि नेहरू सरकार को, एक व्यक्ति को जहाज़ से ले जाने का किराया अदा करेंगे. उनके साथ चलने वाले सुरक्षाकर्मियों का किराया सरकार देगी और अगर उनकी पार्टी का कोई सदस्य उनके साथ जहाज़ में है तो वो अपना किराया खुद अदा करेगा.

इस तरह नेहरू ने हवाई यात्रा में होने वाले ख़र्चे का बहुत थोड़ा हिस्सा ही सरकार को अदा किया.

नेहरू ने भारत के कोने-कोने में प्रचार किया

नेहरू ने चुनाव प्रचार के लिए हवाई जहाज़ के अलावा सड़कों और रेलों का भी इस्तेमाल किया. 1 अक्तूबर, 1952 से उनका चुनाव प्रचार अभियान शुरू हुआ. नौ महीनों के अंदर नेहरू ने देश के कोने कोने में चनाव प्रचार किया.नेहरू ने कुल 25000 मील की दूरी कवर की, जिसमें 18000 मील हवाई रास्ते और 5200 मील कारों, 1600 मील रेल और यहाँ तक कि 90 मील का रास्ता उन्होंने नावों में बैठकर तय किया.

नेहरू का पहला चुनावी भाषण पंजाब में लुधियाना में हुआ. इसमें उन्होंने साँप्रदायिक दलों पर हमला बोलते हुए कहा कि वो लोग हिंदू और सिख संस्कृति के नाम पर साँप्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं जैसा एक ज़माने में मुस्लिम लीग ने किया था.इस भाषण में उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि उनकी पार्टी छुआछूत और ज़मींदारी की प्रथा मिटाने के लिए कृत संकल्प है. करीब डेढ़ घंटे के अपने भाषण में उन्होंने घोषणा की कि अगर कोई शख़्स धर्म के नाम पर किसी दूसरे शख़्स पर हाथ उठाता है, उससे वो अपनी आखिरी साँस तक लड़ेंगे.अंबाला में उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वो पर्दे की प्रथा को छोड़ कर देश के निर्माण के काम में आगे आएं.नेहरू को अपनी चुनावी सभा में वर्दी पहने पुलिसवालों की मौजूदगी से काफ़ी चिढ़ थी. लेकिन उस समय के नौकरशाहों ने इससे निपटने का तरीका भी निकाल लिया.तत्कालीन कैबिनेट सचिव एनआर पिल्लै ने लिखा, “हमने नेहरू के इस विरोध का सामाधान निकाल लिया. हमने तय किया कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में उनका दख़ल नहीं होना चाहिए. इसके लिए हमें उचित क़दम उठाने ही होंगें चाहे इसे प्रधानमंत्री इसे पसंद करें या नहीं. लेकिन हमने उनसे वादा किया कि उनकी सभा में वर्दी पहने पुलिसकर्मी नहीं दिखाई देंगे. प्रधानमंत्री इस व्यवस्था से संतुष्ट थे. उस समय कांग्रेस के टिकट के लिए बहुत मारामारी थी, क्योंकि लोगों का मानना था कि इस टिकट पर एक बिजली का खंभा भी चुनाव जीत जाएगा.”

नेहरू ने की विपक्षी नेताओं की तारीफ़

नेहरू ने इलाहाबाद ईस्ट और जौनपुर वेस्ट की संयुक्त सीट से चुनाव जीता. बाद में इस सीट का नाम बदल कर फूलपुर कर दिया गया.नेहरू मंत्रिमंडल के प्रमुख सदस्य मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से जीत दर्ज की. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 16 सीटें मिलीं जिसमें से 8 सीटें उसने मद्रास से जीतीं.भारतीय जनसंघ ने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें तीन सीटों पर उसे विजय मिली. पार्टी के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी कलकत्ता दक्षिण पूर्व से चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुंचे.किसान मज़दूर प्रजा पार्टी ने 144 सीटों में चुनाव लड़ा लेकिन उसके सिर्फ़ 9 उम्मीदवार ही लोकसभा में पहुंच सके.

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