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विंस्टन चर्चिल की क्या भूमिका थी बंगाल में लाखों लोगों की मौत में


रणघोष अपडेट. विश्वभर से 

ब्रिटेन में हर साल 24 जनवरी को पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को श्रद्धांजलि दी जाती है और उन्हें दूसरे महायुद्ध के नायक के तौर पर याद किया जाता है.उन्हें हिटलर जैसे शक्तिशाली तानाशाह से लड़ने और उन्हें हराने वाले नेता की तरह देखा जाता है.इसमें कोई दो राय नहीं है कि ब्रिटेन में वो एक कद्दावर नेता के रूप में देखे जाते हैं, लेकिन ब्रिटेन के उपनिवेशवादी इतिहास में उनके शासन काल से एक काला अध्याय भी जुड़ा है जिसका सीधा संबंध भारत से है.अगर ब्रिटेन में वो नायक हैं तो भारत में खलनायक. भारत की जनता और देश के अधिकतर इतिहासकार चर्चिल को 1943 में बंगाल में भूख से हुई लाखों मौतों का ज़िम्मेदार मानते हैं.इस अकाल में एक अनुमान के मुताबिक़, अन्न न मिलने की वजह से 30 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और ज़्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि ऐसा चर्चिल की नीतियों की वजह से हुआ था, वरना बहुत सारी मौतों को टाला जा सकता था.कई इतिहासकारों के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरूर भी लगातार कहते रहे हैं कि 1943 में सूखे के कारण हुई लाखों मौतों के ज़िम्मेदार विंस्टन चर्चिल हैं.शशि थरूर ने ब्रिटेन में एक बार अपने भाषण में कहा, “मिस्टर चर्चिल के बारे में गहराई से अध्ययन करने की ज़रूरत है, उनके हाथ उतने ही ख़ून से रंगे हैं जितने हिटलर के रंगे हैं, ख़ास तौर पर उन फैसलों के कारण, जिनकी वजह से 1943-44 का बंगाल का भयावह अन्न संकट पैदा हुआ जिसमें 43 लाख लोग मारे गए.”

मानव निर्मित त्रासदी

शशि थरूर ने आगे कहा, “ये वही व्यक्ति हैं जिन्हें अंग्रेज़ लगातार स्वतंत्रता और लोकतंत्र के दूत के रूप में पेश करते रहे रहे हैं, जबकि मेरे विचार में वह 20वीं शताब्दी के सब से दुष्ट शासकों में से एक हैं.”

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर सुगता बोस पिछले 40 वर्षों से बंगाल के अकाल पर लिखते आ रहे हैं. बीबीसी हिंदी से एक बातचीत में वो कहते हैं कि बंगाल का भयंकर अकाल एक ‘ख़ामोश प्रलय’ था जिसकी ज़िम्मेदार ब्रिटिश सरकार और चर्चिल दोनों थे.वो कहते हैं, “ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था का शोषण अंततः अकाल के लिए जिम्मेदार था लेकिन चर्चिल को दो कारणों से ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए, पहला ये कि वह उस समय प्रधानमंत्री थे और दूसरे उनके इर्द-गिर्द सलाहकारों का एक समूह था जो अपने दृष्टिकोण में गहरे नस्लवादी थे. उनकी सोच थी कि भारतीय वास्तव में पूरी तरह से विकसित नहीं हैं और इसीलिए उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था कि बंगाल में लाखों की संख्या में लोग मर रहे थे.”

क्या चर्चिल ने जान-बूझ कर बंगाल में होने वाली मौतों को नज़रअंदाज़ किया?

प्रोफ़ेसर सुगाता बोस कहते हैं कि चर्चिल को सब मालूम था. वो कहते हैं, “मुझे लगता उन्हें सब कुछ पता था कि बंगाल में क्या हो रहा था क्योंकि भारत में ब्रिटिश प्रशासन के लोगों ने भी उन्हें अपनी रिपोर्टें भेजी थीं. उन रिपोर्टों में बंगाल की त्रासदी की पूरी जानकारी दी जा रही थी. हम सभी जानते हैं कि चर्चिल का रवैया नस्लवादी था.”

सोनिया पर्नेल ने ‘फर्स्ट लेडी, द लाइफ एंड वर्क्स ऑफ़ क्लेमेंटाइन चर्चिल’ नामक पुस्तक लिखी है. उन्होंने लिखा है कि चर्चिल पर सबसे अधिक जीवनी लिखी गई है, वो हीरो भी हैं और विलेन भी. उनके अनुसार, चर्चिल की ज़िम्मेदारियाँ अनेक थीं क्योंकि उस समय द्वितीय विश्व युद्ध जारी था और युद्ध की आपात स्थिति और अपने समय की अन्य सभी ज़िम्मेदारियों से वो निपटने की एक साथ कोशिश कर रहे थे.

ब्रिटेन में एक्सेटर यूनिवर्सिटी के इतिहासकार रिचर्ड टोए बीबीसी से एक बातचीत में कहते हैं कि चर्चिल ने जानबूझकर बंगाल के सूखे को नज़र अंदाज़ नहीं किया. रिचर्ड कहते हैं, “वो भारतीयों के ख़िलाफ़ जानबूझकर नरसंहार नहीं करना चाहते थे. उनकी भी अपनी मजबूरियाँ थीं.”ब्रिटेन में इतिहासकार यास्मीन ख़ान ने हाल ही में बीबीसी के दिए एक इंटरव्यू में कहा कि युद्ध के दौरान वैश्विक परिस्थितियों के कारण अकाल पड़ा. अनाज की कमी मानव निर्मित थी. उन्होंने कहा, “हम उन्हें दक्षिण एशियाई लोगों पर गोरों को प्राथमिकता देने के लिए ज़रूर दोषी ठहरा सकते हैं जो ज़ाहिर है कि भेदभावपूर्ण रवैया था.”

एक दर्दनाक अध्याय

जब लोगों को गाँवों में अनाज नहीं मिला तो वे भोजन की तलाश में शहरों में गए जहाँ उन्होंने भूख से दम तोड़ दिया. कई लेखकों और इतिहासकारों ने दर्ज किया है कि कलकत्ता की सड़कों से हर दिन हज़ारों लाशों को हटाना पड़ता था.क्रिस्टोफ़र बेली और टिम हार्पर अपनी किताब ‘फॉर्गॉटन आर्मीज़ फॉल ऑफ़ ब्रिटिश एशिया 1941-1945’ में लिखते हैं, “अक्टूबर के मध्य तक कलकत्ता में मृत्यु दर 2000 प्रति माह पहुंच गई थी. हालत ये थी कि जब ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिक सिनेमा हॉल से पिक्चर देख कर निकलते थे तो उन्हें सड़क पर भूख से पीड़ित लोगों की लाशें दिखाई देती थी जिन्हें चील और कौवे खा रहे होते थे.”

ज़ाहिर है, ये सारी बातें चर्चिल तक भी पहुँच रही थीं लेकिन उन पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा था.वयोवृद्ध चित्रकुमार शामंतो 1943 में बहुत कम उम्र के थे लेकिन वह अब भी दुखद दृश्यों को याद करते हैं, “मैं और मेरा परिवार कई दिनों तक भूखे रहे, लोगों को कंकाल बनते देखना डरावना लगता था, जब आप किसी को देखते थे तो ये बताना मुश्किल था कि आप इंसान को देख रहे हैं या किसी भूत को. मैं एक नहर के पास जाता था और देखता था कि ढेर सारी लाशें आस-पास पड़ी हैं कुत्ते उन्हें खा रहे हैं, गिद्ध उन्हें खा रहे हैं, ब्रिटिश सरकार ने हमें भूखा रखकर मार डाला था.”

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