आइए इस रियल हीरो को शैल्यूट करें ..

जरूरतमंदों की मदद के लिए इस शख्स ने पीएफ और फ्लैट बेच खर्च कर दिए 50 लाख रूपए, कोरोना में चला रहें ‘राइस एटीएम’


 रणघोष खास. देशभर से


कोरोना महामारी की वजह से लाखों लोगों की नौकरी गई तो कइयों के लिए जीना मुहाल हो गया है। आलम ये हुआ कि दो वक्त की रोटी के लिए लाखों लोग दूसरों के आसरे हो चले। इसी में एक चिराग हैदराबाद के दोसापती रामू के रूप में दिखता है जो जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए 24 घंटे राइस एटीएम चला रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इस काम में वो अब तक 50 लाख से अधिक रूपए खर्च कर चुके हैं। 

रामू एक एचआर हैं। मार्च के महीने में लॉकडाउन लगाया था जब कोरोना ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे। दोसापती रामू इस राइस एटीएम को अप्रैल में शुरू किया था और लॉकडाउन के लगे हुए 250 दिन हो चुके हैं। तब से वो सभी जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। रामू दोसापति एक कॉर्पोरेट फर्म में एचआर एग्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत है।

रामू ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा है कि जिस दिन उनको ये आइडिया आया उस दिन उनके बेटे का जन्मदिन था। उसी दिन उन्होंनों ‘राइस एटीएम’का निर्माण किया।

उन्होंने एक्सप्रेस से बातचीत में बताया, “शुरुआत में ये केवल 193 लोगों के बारे में था, लेकिन जल्द ही हमारे पास आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी। किराना के अलावा, हमें दवा, दूध और सब्जियों की आवश्यकता थी। मैं अपने क्रेडिट कार्ड से भी खर्चों को पूरा नहीं कर पा रहा था। मैं पिछले 16 वर्षों से एक ही कंपनी में काम कर रहा हूं, मैंने अपने भविष्य निधि से 5 लाख रुपए निकालने का प्रबंधन किया।

रामू ने अपने फ्लैट के पैसे भी इस काम के लिए खर्च कर दिए। एक्सप्रेस से बातचीत में वो आगे बताते हैं, “हम पूरे तौर से खर्च करने में सक्षम नहीं थे। जिसके बाद धीरे-धीरे मुझे नलगोंडा में अपनी जमीन की बिक्री से पैसे का उपयोग करना पड़ा जो 3 बेडरूम के एक फ्लैट में निवेश के लिए था।“ उन्होंने कहा, अपने बेटों को बड़े फ्लैट रहने का सपना था। लेकिन हमारी बिल्डिंग के बाहर इतने सारे लोगों को देखकर और मदद के लिए इंतजार करने से हमारा दिमाग बदल गया।”

आगे उन्होंने कहा, मैं एक चिकन की दुकान के बाहर इंतजार कर रहा था। पास की बिल्डिंग के चौकीदार की पत्नी ने 2,000 रुपये के चिकेन खरीदे थे। पूछताछ करने पर पता चला कि वो और उनकी बहू ओडिशा के प्रवासी श्रमिकों को भोजन परोस रही है जो भोजन नहीं कर सकते। वो महिला लक्ष्मम्मा केवल 6 हजार रुपए कमा रही थी और वो उस दिन 2 हजार रुपये खर्च करने को तैयार थी।“ आगे रामू बताते हैं, “मुझे लगा कि मैं अच्छी सैलरी पाता हूं। और मुझे एहसास हुआ कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो मुझे जरूरतमंदों की मदद करने से रोकता है।“

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