शिक्षा विभाग की कागजी और जमीनी अंतर का सच सामने आया

शिक्षा विभाग के एक आदेश से 82 विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगा, कागजों में शिक्षक को सरप्लस बता कर दिया ट्रांसफर


 शिक्षा अधिकारियों द्वारा स्कूलों की सही रिपोर्ट नहीं देने का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। शिक्षा विभाग एवं सरकारी स्कूलों के हालात यह है कि अधिकारी- कर्मचारी एवं शिक्षकों को बस अपने समय पर मिलने वाले वेतन की चिंता रहती है। विद्यार्थियों का भविष्य किस दिशा में जा रहा है इससे उनका कोई मतलब नही। वजह 90 प्रतिशत से ज्यादा सरकारी शिक्षकों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। एक ऐसे ही एक मामले से सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को समझा जा सकता है।

दो-तीन दिन पहले शिक्षा निदेशालय ने सरप्लस बैठे शिक्षकों के तबादला के आदेश जारी कर दिए। निदेशालय को परीक्षा के समय ही शिक्षक किसी स्कूल में ज्यादा नजर क्यों आते हैं। शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले क्यों नहीं यह सबसे बड़ा सवाल है। सरप्लस है इसलिए तबादला करने में कोई दिक्कत नहीं है। क्या हकीकत मे ही शिक्षक सरप्लस है। इस पर गौर करना जरूरी है। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कुंड में अनुबंधित हिंदी अध्यापक राजेश कुमार यादव का तबादला भी सरप्लस बताकर बावल खंड के गांव रानौली के मिडिल स्कूल में कर दिया गया है। पता चलते ही स्कूल के विद्यार्थियों में खलबली मच गईं। कक्षा छठीं से 10 वीं तक के विद्यार्थियों को अकेले यही शिक्षक पढ़ा रहे थे। यहां तक की कक्षा 9 वीं-10 वीं के लिए भी कोई शिक्षक नहीं है। प्राचार्य सुनील कुमार ने स्थिति को समझते हुए शिक्षा अधिकारियों को वास्तु स्थिति से अवगत कराया कि कागजों में राजेश कुमार सरप्लस है लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। खोल खंड शिक्षा अधिकारी महेंद्र सिंह एवं जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सुरजभान ने भी मुख्यालय को स्थिति से अवगत कराया कि कुंड स्कूल में एक ही हिंदी अध्यापक है। उनका तबादला होने से 82 विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लग जाएगा।  जहां शिक्षक को भेजा जा रहा है। वहां कुल 28 विद्यार्थी है। इतना सबकुछ होने के बाद बावजूद राजेश कुमार यादव के तबादला होने के आदेश जारी हो गए। उनके स्थान कोई शिक्षक नहीं आएगा क्योंकि कागजों में वे सरप्लस है। इस आदेश के बाद अधिकारी खामोश है। उनका कहना है कि वे अब क्या करें ऊपर से आदेश आ चुके हैं। यही सोच ही शिक्षा के स्तर को कमजोर करती है। कायदे से स्थानीय अधिकारियों को आगे आकर उच्च अधिकारियों को जमीनी हकीकत बतानी चाहिए लेकिन वे इसे बेवजह की परेशानी समझकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते  हैं। ऐसा नहीं है कि उच्च अधिकारियों को पूरी तरह से समझाने के बाद स्थिति ना सुधरे। इस संवादहीनता की वजह से अधिकारी या शिक्षकों के वेतन पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन विद्यार्थियों का भविष्य जरूर दांव पर लग गया है। हालांकि  स्थानीय शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने विश्वास दिलाया है कि वे अपने सीनियर्स को सही रिपोर्ट से अवगत कराकर कोई ना कोई समाधान निकाल लेंगे। उधर विद्यार्थी भी हैरान है कि परीक्षा के समय एक मात्र हिंदी अध्यापक को बदलकर शिक्षा विभाग उनकी कौनसी चिंता कर रहा है।

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