रणघोष की सीधी सपाट बात : भाजपा के खिलाफ चुनाव जीतने वालों का भाजपा में हो रहा असली विजेताओं की तरह स्वागत

 यह कैसी जीत,  चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोट मांगे, जीतने के बाद बन रहे भाजपाई


रणघोष खास. वोटर की कलम से


नगर परिषद रेवाड़ी के हुए चुनाव में आए परिणाम के बाद अब विजयी पार्षद शहर में लोकतंत्र की अजीबों गरीब तस्वीर पेश कर रहे हैं हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। आमतौर पर निर्दलीय विजेता सरकार के साथ ही चलना पंसद करते है चाहे वह किसी भी पार्टी की हो।  सवाल यह है कि अगर ऐसा ही होना है तो सिंबल से चुनाव लड़कर मतदाता के मत से खिलवाड़ क्यों की जा रही है, क्यों चुनाव में उम्मीदवार वोट के लिए मतदाता के मन में विरोधी दलों के खिलाफ जनमत बनाता है और जीतने के बाद उन्हीं दलों के साथ खड़ा हो जाता है जिसके विरोध में उसे  वोट मिले थे। ऐसे में जनता के मत की ताकत कहां रही वह तो खिलौना बन गया जिसके हाथ में आया उसी ने चाबी भरकर अपने हिसाब से उसके खिलाफ खेलना शुरू कर दिया।

यहां गौर करिए जो भाजपा के खिलाफ जीतकर आ रहे हैं उनका स्वागत भाजपा की टिकट पर जीतकर आए उम्मीदवारों से भी शानदार हो रहा है। यहां तक की जो भाजपा की टिकट पर हार गए उनकी स्थिति पार्टी में आगे चलकर क्या होने जा रही है। यह बताने की जरूरत नहीं है। उधर जिन मतदाताओं ने भाजपा के खिलाफ जाकर अपने उम्मीदवार को जीताया वह अब आगे चलकर अपने विजेता उम्म्मीदवार पर भरोसा करेंगे या चुप रहकर चलते आ रहे इस तरह के राजनीति सिस्टम में खुद को मर्ज कर लेंगे। यह देखने वाली बात होगी।  नप रेवाड़ी के कुल 31 वार्ड पार्षदों के हुए चुनाव में भाजपा के सिंबल पर कुल 7 प्रत्याशी विजयी हुए थे। अब 20 से ज्यादा पार्षद बिना टिकट के भाजपाई बन गए हैं। नप चेयरमैन भाजपा से पूनम यादव बनी है। उन्हें सदन चलाने के लिए दो तिहाई पार्षदों का समर्थन जरूरी है। इसलिए राज्य में भाजपा सरकार होते हुए शहर में विकास कार्य करवाने के लिए निर्दलियों को अपने खेमें में मिलाने की यह एक्सरसाइज चल रही है। मौजूदा लोकतंत्र प्रणाली में अब इसे गलत परपंरा की बजाय विशेष ताकत माना जा रहा है। यह बेहतर लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत कर रही है या कमजोर यह मतदाता ही तय करेंगे।

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