रणघोष की सीधी सपाट बात

मुंबई में पेट्रोल 95 रुपये लीटर, फिर भी खामोशी क्यों!


रणघोष खास. संजय राय अर्थशास्त्री 

देश की संसद और राजनीति आन्दोलनजीवी, परजीवी और क्रोनीजीवी जैसे शब्दों के तर्क-कुतर्क पर उलझी हुई है, जबकि आम आदमी महँगाई की मार से दोहरा होता जा रहा है। प्याज और सब्जी के आकाश छूते दाम, नए साल में 16 बार पेट्रोल – डीज़ल के भाव बढ़ गए, लेकिन इसकी चर्चा न संसद में है न ही अपने आप को मुख्यधारा का कहने वाले तथाकथित मीडिया के स्टूडियो में।


अर्थव्यवस्था पर असर?

सरकारी कागजों में अर्थव्यवस्था के गुलाबी आँकड़े पेश करने वाले यह बताने से कन्नी काट रहे हैं कि महंगे ईंधन का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा। चीन और पश्चिमी देशों से व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने के लिए सस्ती श्रम शक्ति की वकालत करने वाले भी खामोश हैं कि महंगे ईंधन की वजह से वे उन देशों के मुक़ाब


ले बाज़ारू प्रतिस्पर्धा में कैसे टिक पाएंगे। कुल मिलाकर देश का आम आदमी परेशान है। शुक्रवार सुबह जो पेट्रोल डीजल के भावों में वृद्धि हुई है वह क्रमशः 29 व 35 पैसे की हुई है। नए साल यानी 2021 में यह 16 वीं बार वृद्धि हुई है। इन वृद्धि के कारण पेट्रोल और डीज़ल में क़रीब 4.23 रुपए तथा 4 रुपये की वृद्धि हो चुकी है। मुंबई में शुक्रवार को पेट्रोल का भाव 94.64 तथा डीजल का भाव 85.32 रुपये प्रति लीटर हो गया है। दिल्ली में यह भाव क्रमशः 88.14 तथा 78. 38 रुपये है। पेट्रोल- डीज़ल के भावों में वृद्धि का कारण अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में क्रूड ऑयल की क़ीमतों को बताया जाता है।


तेल का खेल

गुरुवार को कच्चे तेल का भाव 61.64 डॉलर प्रति बैरल था, जिसमें 0.33 डॉलर की वृद्धि हुई। पेट्रोल डीजल की कीमतों में वृद्धि को लेकर को ख़बरें मीडिया में सुर्खियाँ बनती थी, वह साल 2013-14 का समय हुआ करता था। उस दौर में कच्चे की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहा करती थी। उस समय बीजेपी जो विपक्ष में थी, पेट्रोल की कीमतों को लेकर आंदोलन करती थी। पिछले 6 साल से बीजेपी सत्ता में है और पेट्रोल पर 23.78 तथा डीजल पर 28.37 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज़ ड्यूटी में वृद्धि की है। यानी पेट्रोल की एक्साइज़ ड्यूटी में 258 प्रतिशत तथा डीजल के एक्साइज शुल्क में 820 फ़ीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। भारत में पेट्रोल और डीज़ल पर कर दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले सर्वाधिक बताया जाता है। इटली में 64 फ़ीसदी, फ्रांस और जर्मनी में 63 तथा ब्रिटेन में करीब 53 फ़ीसदी कर ईंधन पर वसूला जाता है, लेकिन हमारे देश में यह इससे भी ज़्यादा है। हमारे देश में क़रीब 70 फ़ीसदी टैक्स देना पड़ता है। पेट्रोल और डीज़ल पर शुल्क बढ़ाने का क्या असर पड़ता है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इन पर 1 रुपए प्रति लीटर शुल्क बढ़ाने पर सरकार को 13,000 से 14,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त हर साल मिलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *